फांसी की सजा देने के बाद जज अपनी पेन की निब क्यों तोड़ देते हैं ,जानिए क्या है कारण (Why judge breaking nib of pen after death sentence in hindi)
Breaking nib of pen : आप लोगों ने अक्सर कई फिल्मों में जज को दोषी को मौत की सजा का फैसला सुनाते हुए देखा होगा. जब भी कोई अपराधी दोषी साबित हो जाता है, तो जज द्वारा उसको फांसी का दंड सुनाते ही पेन
आखिर क्यों तोड़ी जाती है पेन की निब (Why Judges Break The Pen Nib after death sentence in hindi)
जज के पेन की निब तोड़ देने को सिम्बोलिक एक्ट कहा जाता है, जो किसी को फांसी की सजा देने के बाद किया जाता है और ऐसा करने के पीछे एक नहीं बल्कि कई सारे कारण हैं. इन्हीं में से कुछ कारणों के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं और इनमें से कुछ कारण इस प्रकार हैं-
- किसी का जीवन खत्म होना- ऐसा माना जाता है कि जज अपने सुनाए गए फैसले पर दस्तखत करने के बाद अपने पेन की निब इसलिए तोड़ देते हैं क्योंकि फांसी की सजा देने से दोषी का जीवन खत्म हो जाता है. इसलिए मौत जैसी दर्दनाक सजा फैसला लिखते ही इस मनहूस पेन के निब की भी कुर्बानी दे दी जाती है.
- फिर ना हो ऐसा अपराध- दूसरा कारण जो निब के तोड़ने के पीछे है, वो ये है कि इसके बाद किसी भी इंसान के द्वारा वो अपराध ना किया जाए. जज उस उम्मीद में पेन की निब को तोड़ देतें हैं कि लोगों इस अपराध को करने से बचें
- फैसला बदला ना जा सके- जब जज एक बार अपना फैसला सुना देते हैं तो उनके पास भी अपने फैसले को बदलने की ताकत नहीं होती है. इसलिए जज अपने फैसले को बदल ना सकें या उस पर पुनर्विचार ना करें इसलिए वो पेन की निब तोड़ देते हैं. और निब तोड़ने से ये साफ हो जाता है कि फांसी का फैसला एक बार सुनाने के बाद बदला नहीं जा सकता. इस फैसले को बदलने की ताकत सिर्फ उच्च न्यायालय के पास ही होती है.
- दुख के कारण- जब भी किसी दोषी को जज के द्वारा मौत की सजा मिलती है, तो जज अपना दुख प्रकट करते हुए भी अपने पेन की निब तोड़ देते हैं. इसके अलावा ये भी माना जाता है कि उस पेन का दोबारा इस्तेमाल ना किया जाए. क्योंकि उस पेन से किसी व्यक्ति की मौत की सजा पर दस्तखत किए गए हैं.
भारत में पहली निब कब तोड़ी गई थी
भारत में पेन की निब तोड़ने की प्रथा ब्रिटिश शासन के काल के समय शुरू हुई थी. जिसको आज भी फांसी का फैसला सुनाने के बाद निभाया जाता है. ब्रिटिश शासन के दौरान तो कई भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी की सजा दी गई है. मगर आजाद भारत में किसी जज के द्वारा पहली बार पेन की निब 1949 में तोड़ी गई थी. भारत में सन् 1949 को महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे फांसी की सुनाई गई थी. गोडसे को पंजाब उच्च न्यायालय द्वारा ये सजा सुनाई थी. इस सजा के अनुसार उनको 15 नवंबर 1949 में अंबाला की जेल में फांसी दे दी गई थी.