Explore George Soros’s journey from childhood to becoming a billionaire. Learn about his biography and net worth on this comprehensive website dedicated to his life.
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George Soros Early Life and Education:
George Soros was born into a Jewish family during a tumultuous period in Europe. His family changed their name from Schwartz to Soros to avoid persecution during the rise of Nazism. Soros survived the Nazi occupation of Hungary by adopting a Christian identity. After World War II, in 1947, he emigrated to England to escape the rise of communism in Hungary.
Soros attended the London School of Economics (LSE), where he studied under the philosopher Karl Popper. Popper’s ideas, especially those on the “Open Society,” deeply influenced Soros, shaping his future endeavors in both finance and philanthropy.
George Soros began his career in finance in the early 1950s, working at various merchant banks in London before moving to New York in 1956. In 1969, he founded his first hedge fund, Double Eagle, which later evolved into the Soros Fund Management. His most famous investment strategy, known as “The Quantum Fund,” gained notoriety for its high returns and bold moves.
One of Soros’s most famous financial feats occurred on September 16, 1992, known as “Black Wednesday.” Soros bet against the British pound, leading to its devaluation and earning over $1 billion in profit. This event solidified his reputation as “The Man Who Broke the Bank of England.”
Philanthropy and the Open Society Foundations:
Inspired by his philosophical mentor Karl Popper, Soros established the Open Society Foundations (OSF) in 1979. The OSF aims to promote democracy, human rights, and social reform. Over the decades, Soros has donated billions of dollars to various causes, including education, public health, and justice reform.
His contributions have had a significant impact on post-communist countries in Eastern Europe, where he funded initiatives to promote democratic governance. In the United States, Soros has been an advocate for criminal justice reform, voting rights, and progressive political causes.
Controversies and Criticism:
Despite his philanthropic efforts, George Soros has been a controversial figure. His financial success and political activism have made him a target of conspiracy theories and criticism, particularly from right-wing groups. Critics often accuse him of using his wealth to influence political outcomes, though his supporters argue that his efforts are aimed at fostering open and democratic societies.
George Soros Personal Life:
George Soros has been married three times and has five children. His children, particularly Jonathan and Alexander Soros, are also involved in philanthropy and finance. Despite his advanced age, Soros remains active in his philanthropic endeavors, continually advocating for the values of an open society.
Legacy:
George Soros’s legacy is multifaceted. As a financier, he is celebrated for his strategic brilliance and boldness in the market. As a philanthropist, his contributions to global civil society are unparalleled. Through the Open Society Foundations, Soros has made lasting impacts on the world, championing causes that align with his belief in democracy, transparency, and human rights.
Faqs
Who is George Soros?
George Soros is a Hungarian-American financier, philanthropist, and founder of the Open Society Foundations.
What is George Soros known for?
Soros is known for his success in finance, particularly for his role in the devaluation of the British pound on Black Wednesday, and for his extensive philanthropic work.
What are the Open Society Foundations?
The Open Society Foundations is a network of organizations founded by George Soros that supports democracy, human rights, and social reform across the globe.
Why is George Soros a controversial figure?
Soros is controversial due to his significant influence on global politics and finance, with some accusing him of using his wealth to sway political outcomes.
What is George Soros’s net worth?
As of 2024, George Soros’s net worth is estimated to be around $8.6 billion, much of which he has donated to various philanthropic causes.
Conclusion:
George Soros’s life is a testament to the power of resilience, intellect, and philanthropy. From surviving the horrors of World War II to becoming one of the world’s wealthiest individuals, Soros has used his wealth and influence to advocate for a more just and open world. Whether lauded as a hero of democracy or criticized as a meddling billionaire, Soros’s impact on the world is undeniable.
द्रौपदी मुर्मू का जीवन परिचय [जीवनी, जाति, उम्र, पति, सैलरी, बेटी, बेटा, आरएसएस, शिक्षा, राष्ट्रपति, जन्म तारीख, परिवार, पेशा, धर्म, पार्टी, करियर, राजनीति, अवार्ड्स, इंटरव्यू] Draupadi Murmu Biography in Hindi [caste, age, husband, income, daughter, rss, president, sons, qualification, date of birth, family, profession, politician party, religion, education, career, politics career, awards, interview, speech]
आदिवासी समुदाय से संबंध रखने वाली और उड़ीसा राज्य में पैदा हुई द्रौपदी मुर्मू को हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के द्वारा भारत के अगले राष्ट्रपति के पद के उम्मीदवार के तौर पर सिलेक्ट किया गया है और यही वजह है कि इंटरनेट पर आजकल द्रौपदी मुर्मू के बारे में जानना चाहते हैं, इस प्रकार आइए इस आर्टिकल में द्रौपदी मुर्मू के बारे में जानने का प्रयास करते हैं। इस आर्टिकल में हम आपके साथ द्रौपदी मुर्मू की जीवनी शेयर कर रहे हैं।
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द्रौपदी मुर्मू का जीवन परिचय [Draupadi Murmu Biography in Hindi]
हाल ही में एनडीए के द्वारा द्रौपदी मुर्मू को भारत के राष्ट्रपति के उम्मीदवार के तौर पर प्रस्तुत किया गया है। द्रौपदी मुर्मू का जन्म साल 1958 में एक आदिवासी परिवार में भारत देश के उड़ीसा राज्य के मयूरभंज इलाके में 20 जून को हुआ था।
इस प्रकार से यह एक आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली महिला है और एनडीए के द्वारा इन्हें भारत के अगले राष्ट्रपति के उम्मीदवार के तौर पर प्रस्तुत किया गया है और यही वजह है कि आजकल इंटरनेट पर द्रोपति मुर्मू की काफी चर्चा हो रही है।
द्रोपदीमुर्मूकीशिक्षा
जब इन्हें थोड़ी समझ प्राप्त हुई, तभी इनके माता-पिता के द्वारा इनका एडमिशन इनके इलाके के ही एक विद्यालय में करवा दिया गया, जहां पर इन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई को पूरा किया। इसके पश्चात ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के लिए यह भुवनेश्वर शहर चली गई। भुवनेश्वर शहर में जाने के पश्चात इन्होंने रामा देवी महिला कॉलेज में एडमिशन प्राप्त किया और रामा देवी महिला कॉलेज से ही इन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई कंप्लीट की।
ग्रेजुएशन की एजुकेशन पूरी करने के पश्चात ओडिशा गवर्नमेंट में बिजली डिपार्टमेंट में जूनियर असिस्टेंट के तौर पर इन्हें नौकरी प्राप्त हुई। इन्होंने यह नौकरी साल 1979 से लेकर के साल 1983 तक पूरी की। इसके बाद इन्होंने साल 1994 में रायरंगपुर में मौजूद अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में टीचर के तौर पर काम करना चालू किया और यह काम इन्होने 1997 तक किया।
द्रौपदीमुर्मूकापरिवार
इनके पिताजी का नाम बिरांची नारायण टुडू है और द्रौपदी मुरमू संताल आदिवासी फैमिली से संबंध रखती हैं। झारखंड राज्य के बनने के पश्चात 5 साल का कार्यकाल पूरा करने वाली द्रोपदी मुर्मू पहली महिला राज्यपाल है। इनके पति का नाम श्याम चरण मुर्मू है।
द्रौपदी मुर्मू का राजनीतिक जीवन || Draupadi Murmu Biography in Hindi
उड़ीसा गवर्नमेंट में राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार के तौर पर द्रौपदी मुर्मू को साल 2000 से लेकर के साल 2004 तक ट्रांसपोर्ट और वाणिज्य डिपार्टमेंट संभालने का मौका मिला।
इन्होंने साल 2002 से लेकर के साल 2004 तक उड़ीसा गवर्नमेंट के राज्य मंत्री के तौर पर पशुपालन और मत्स्य पालन डिपार्टमेंट को भी संभाला।
साल 2002 से लेकर के साल 2009 तक यह भारतीय जनता पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के मेंबर भी रही।
भारतीय जनता पार्टी के एसटी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष के पद को इन्होंने साल 2006 से लेकर के साल 2009 तक संभाला।
एसटी मोर्चा के साथ ही साथ भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के मेंबर के पद पर यह साल 2013 से लेकर के साल 2015 तक रही
झारखंड के राज्यपाल के पद को उन्होंने साल 2015 में प्राप्त किया और यह इस पद पर साल 2021 तक विराजमान रही।
1997 मेंचुनीगईथीजिलापार्षद
साल 1997 का वह समय था, जब ओडिशा के रायरंगपुर जिले से पहली बार इन्हें जिला पार्षद चुना गया, साथ ही यह रायरंगपुर की उपाध्यक्ष भी बनी। इसके अलावा इन्हें साल 2002 से लेकर के साल 2009 तक मयूरभंज जिला भाजपा का अध्यक्ष बनने का मौका भी मिला। साल 2004 में यह रायरंगपुर विधानसभा से विधायक बनने में भी कामयाब हुई और आगे बढ़ते बढ़ते साल 2015 में इन्हें झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्य के राज्यपाल के पद को संभालने का भी मौका मिला।
अभी तक काफी लोग द्रौपदी मुर्मू के बारे में नहीं जानते थे परंतु हाल ही में चार-पांच दिनों से यह काफी चर्चा में हैं। लोग इंटरनेट पर यह सर्च कर रहे हैं कि द्रोपदी मुर्मू कौन है तो बता दे कि द्रौपदी मुरमू झारखंड की राज्यपाल रह चुकी है। इसके अलावा यह एक आदिवासी महिला है। इन्हें एनडीए के द्वारा हाल ही में भारत के अगले राष्ट्रपति के उम्मीदवार के तौर पर घोषित किया गया है।
इस प्रकार अगर द्रौपदी मुर्मू भारत की राष्ट्रपति बनने में कामयाब हो जाती है, तो यह पहली ऐसी आदिवासी महिला होगी, जो भारत देश की राष्ट्रपति बनेगी, साथ ही यह दूसरी ऐसी महिला होंगी, जो भारत देश के राष्ट्रपति के पद को संभालेंगी। इसके पहले भारत देश के राष्ट्रपति के पद पर महिला के तौर पर प्रतिभा पाटिल विराजमान हो चुकी है।
पतिऔरदोबेटोंकाछूटचुकाहैसाथ
श्याम चरण मुर्मू के साथ द्रौपदी मुर्मू की शादी हुई थी, जिनसे इन्हे संतान के तौर पर टोटल 3 बच्चे प्राप्त हुए थे, जिनमें दो बेटे थे और एक बेटी थी। हालांकि इनका व्यक्तिगत जीवन ज्यादा सुखमय नहीं था, क्योंकि इनके पति और इनके दोनों बेटे अब इस दुनिया में नहीं है। इनकी बेटी ही अब जिंदा है जिसका नाम इतिश्री है, जिसकी शादी द्रौपदी मुर्मू ने गणेश हेम्ब्रम के साथ की है।
द्रोपदीमुर्मूकोप्राप्तपुरस्कार
द्रौपदी मुरमू को नीलकंठ पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए साल 2007 में प्राप्त हुआ था। यह पुरस्कार इन्हें ओडिशा विधानसभा के द्वारा किया गया था।
Life introduction, precious words Tenzin Gyatso Dalai Lama | Dalai Lama Tenzin Gyatso | biography | quotesDate of birth
Dalai Lama Tenzin Gyatso biography and quotes . Tenzin Gyatso is the 14th religious teacher and spiritual leader of the nation of Tibet. Along with this, he was also a head of state. At present, he is known as Dalai Lama, who occupies the position of a peace leader and state leader at the international level. The Dalai Lama is the spiritual head of Tibetan Buddhism, a Mongolian title meaning an ocean of knowledge. Bodhisattvas are such people who have dedicated themselves to public service for the protection of humanity, and have decided to take birth again for human service. He is a very respected person in the world community. Because when Tibet was struggling for its independence, at that time he refused to use violence for independence, and he also appealed to the United Nations to resolve the issue of Tibet and China peacefully. Accepting which the United Nations held three meetings in the General Assembly and kept the issues. In this way, he had also achieved independence in a peaceful way. Because of this, he also received the Nobel Peace Prize. After this, he was also invited by New Zealand to convey his peace message to the people.
Biography of Tenzin Gyatso Dalai Lama
Name
Tenzin Gyatso
Full Name
Jetsun Jamfel Ngawang Lobsang Yeshe Tenzin Gyatso
Birth
6 July 1935
birth place
Taktser, Amdo, Tibet
age
82 years
profession
Tibetan spiritual leader, former political leader of Tibetans, author
Meditation, Gardening, Reading, Writing books and quotes, Photography
Prize
Nobel Peace Prize in 1989 Four Freedom Prizes in 1994 Annual World Security Peace Prize in 1994 Lifetime Achievement Award in 1999 Congressional Gold Medal in 2007 German Media Prize in Berlin in 2009 Lanton Prize for Human Rights in 2009 Human Rights Prize in 2009 International Freedom Driver in 2010 Awards Templeton Prize in 2012
father’s name
choekyong tsering
mother’s name
dicky tsering
brother’s name
Gyalo Throndup, Thubten Jigme Norbu
sister name
Jetsun Pema, Tsering Dolma
net worth
150 million
The Dalai Lama is a Buddhist monk and scholar. He has visited many countries due to which he has met the heads of many countries, presidents of countries, prime ministers and many scientists along with many big personalities. During his travels he has spoken about the welfare of Tibetans, economics, women’s rights, nonviolence, interfaith dialogue, physics, Buddhism and science, cognitive neuroscience. He has also spoken on various topics like reproductive health and sex knowledge.
Birth and early life of Tenzin Gyatso Dalai Lama (14th Dalai Lama tenzin gyatso)
Tenzin Gyatso was born on 6 July 1935 in a small village in the Taktsar region of north-eastern Tibet, into a family of farmers and horse traders. Taktsar was located in Qinghai, a Chinese province at the time of Tenzin Gyatso’s birth. At that time the chieftain of Qinghai province was Ma Lin, who was appointed by the governor Kumimang.
Tenzin Gyatso’s childhood name was Lhamon Dhoddup. He was recognized as the Dalai Lama only when he was two years old, which was recognized by the 13th Dalai Lama Thubten Gyatso in 1937 and was formally recognized as the 14th Dalai Lama. Which was publicly announced in 1939 near the city of Bumen. The installation ceremony as the Dalai Lama took place on 22 February 1940 in Lhasa. Dalai Lama is not a name in Tibet, rather it is a title given to those who attain enlightenment. In Tibet, the Dalai Lama is known as an incarnation of Lord Buddha. In this way, after the invasion of Tibet by the People’s Republic of China on 15 November 1950, on 17 November 1950, he attained his political position in full.
Keeping in mind the condition of Tibet, the Dalai Lama made a five-point plan to solve the problem peacefully, in which he initiated talks with China keeping in mind the future of Tibet peacefully. The Dalai Lama lived as a refugee in India during the Tibetan rebellion in 1959. He tried a lot to solve the problem of Tibet and China, but could not solve it and failed in his efforts, due to which he had to face the pain of exile.
Family of Tenzin Gyatso Dalai Lama
His father’s name was Choekyung Sering and mother’s name was Dickie Sering. Apart from these, he has seven siblings. Four of his siblings had died before his birth. The elder sister was 18 years older than her whose name was Sering Dolma.
Education of Tenzin Gyatso Dalai Lama
After being identified as the Dalai Lama at the age of three, Tenzin Gyatso was brought to a monastery in Lhasa, and was taught Buddhism at the Jorwang Temple there. After that he learned to write in a school. Then his education started according to the discipline of Buddhism, in which a fixed time was fixed for all the daily activities right from getting up in the morning to pray. After receiving the education of Buddhism, he received the degree of Lama as well as Lamparra. This is the biggest degree in Tibet. Dalai Lama considers Mahatma Gandhi and Buddha as the inspiration of his life, he sees them as his ideal.
Career of Tenzin Gyatso Dalai Lama
He has received more than 60 doctorate degrees so far and has written more than 50 books. Peace talks with China were also a part of his career, for which he was awarded the Nobel Peace Prize. In his speech in Washington DC in 1987, Dalai condemned the race for nuclear power and called it worrying. Everyone praised his non-violent thinking on this matter. In 1950, he was invited to assume full power. In 1963, the Dalai Lama prepared the outline of the democratic constitution in Tibet, then it was accepted in 1990 after making some improvements. In 1992, Tibet was declared democratic. He is known for his spiritual statements while visiting most of the countries of the world. Along with this, his sociable nature also attracts people towards him.
Books of Tenzin Gyatso Dalai Lama (Dalai lama Tenzin Gyatso books)
Tenzin Gyatso authored many books, some of which are Heart of Meditation, Activating Bodhichitta and Meditation on Compassion, Advice from Buddha Sakyamuni, Anser, Art of Happiness in a Troubled Word, Art of Living, Art of happiness; A Handbook for Living, Awakening the Mind, Lightning the Heart, Beyond Dogma, Beyond Religion: Ethics for a Whole Word, Bodh Gaya Interview, Buddha Heart, Buddha Mind, Buddha Nature: Death and Eternal Soul in Buddhism, Buddhism of Tibet, Compassionate Life, Dalai Lama at Harvard.
Awards and achievements of Tenzin Gyatso Dalai Lama (Dalai lama Tenzin Gyatso awards)
Year
Prize
1958
Roman Magsaysay Award for Community Leadership
1989
Nobel Peace Prize
1994
World Security Annual Peace Prize
1994
four freedom awards
1999
Life Achievement Award
2003
International League for Human Rights Award
2003
Jaime Brunet Prize for Human Rights
2006
US Congressional Gold Medal
2008
Nanak Interfaith Award from Inaugural Hofstra University
2009
German Media Awards Berlin
2009
Jan Langos Human Rights Award
2009
Hanno R. Ellenbogen Citizenship Award
2010, 2011, 2013
honorary degree
2012
Templeton Prize
2010
International Freedom Conductor Award
Tenzin Gyatso Dalai Lama in controversy
The Dalai Lama was accused by the People’s Daily of betraying Tibetan Buddhism and Chinese Buddhism. In 2008, the Dalai Lama for the first time cited the Shimla Agreement of 1914, saying that South Tibet is a part of Arunachal Pradesh, which was highly disputed. China has always been speaking against the Dalai Lama coming to India. His meeting with US President Barack Obama was also very controversial.
Famous precious words of Tenzin Gyatso Dalai Lama (Dalai lama Tenzin Gyatso quotes)
Give the people you want to see flying with lovely wings, root for them to come back and reasons to stay.
Time flies by without stopping. When we make mistakes, we cannot change that time, we can try again. Whatever we do, we learn, we do it for the good use of the present.
An open heart is like an open mind.
Until we create peace within ourselves, we can never achieve peace in the world.
The ultimate source of happiness is not money and power but affection is definitely the perfection.
Silence also sometimes gives a good answer.
The real hero is the one who has gained victory over his anger and hatred.
Truth is the only weapon we have in our struggle for freedom.
One should know the rules well so that when needed, you can break them effectively.
Love and sympathy are necessary, wealth is not necessary, without love and sympathy, humanity cannot survive.
Choose a path to be optimistic that makes it feel better.
We should always be ready for the challenges that come in front. If the goal is big, then it may or may not be fulfilled while we are alive, but to achieve it, we should always and continuously try.
Our first and foremost main aim in this life is to help others and if we cannot help them then at least they should not hurt us.
If the problem is certain, if you can do something to solve the problem, then you do not need to worry. And if the problem is not definite then nothing can be achieved by worrying in vain, so there is no use in worrying.
FAQ
Q- When was Tenzin Gyatso born?
Ans- Tenzin Gyatso was born on 6 July 1935.
Q- Where is Tenzin Gyatso from?
Ans- Resident of Tenzin Gyatso Taktser, Amdo, Tibet.
Q- When did Tenzin Gyatso get the Nobel Peace Prize?
Ans- He was awarded the Nobel Peace Prize in 1989.
Q- How many awards did Tenzin Gyatso get?
Ans- Tenzin has received more than 84 awards so far.
भगत सिंह जीवन परिचय, जन्म, कहानी, निबंध, अनमोल वचन, पुण्यतिथि, शहीद दिवस, कब मनाया जाता है, सुविचार, कितने भाई थे, परिवार, मृत्यु (Bhagat Singh Biography in Hindi) (Birth, Death Reason, Quotes, Shayari, Father Name, Family, Shaheed Diwas, Day, Celebrated on)
भारत के सबसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद भगत सिंह भारत देश की महान विभूति है, मात्र 23 साल की उम्र में इन्होंने अपने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए. भारत की आजादी की लड़ाई के समय भगत सिंह सभी नौजवानों के लिए यूथ आइकॉन थे, जो उन्हें देश के लिए आगे आने को प्रोत्साहित करते थे. भगत सिंह सिख परिवार में जन्मे थे, बचपन से ही उन्होंने अपने आस पास अंग्रेजों को भारतियों पर अत्याचार करते देखा था, जिससे कम उम्र में ही देश के लिए कुछ कर गुजरने की बात उनके मन में बैठ चुकी थी. उनका सोचना था, कि देश के नौजवान देश की काया पलट सकते है, इसलिए उन्होंने सभी नौजवानों को एक नई दिशा दिखाने की कोशिश की. भगत सिंह का पूरा जीवन संघर्ष से भरा रहा, उनके जीवन से आज के नौजवान भी प्रेरणा ग्रहण करते है.
भगत सिंह जीवन परिचय, जन्म, कहानी, निबंध, अनमोल वचन, पुण्यतिथि, शहीद दिवस, कब मनाया जाता है, सुविचार, कितने भाई थे, परिवार, मृत्यु (Bhagat Singh Biography in Hindi) (Birth, Death Reason, Quotes, Shayari, Father Name, Family, Shaheed Diwas, Day, Celebrated on)
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भगत सिंह जीवन परिचय (Bhagat Singh Biography in Hindi)
भगत सिंह का जन्म, परिवार एवं आरंभिक जीवन (Birth, Family and Early Life)
भगत का जन्म सिख परिवार में हुआ था, उनके जन्म के समय उनके पिता किशन सिंह जेल में थे. भगत सिंह ने बचपन से ही अपने घर वालों में देश भक्ति देखी थी, इनके चाचा अजित सिंह बहुत बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिन्होंने भारतीय देशभक्ति एसोसिएशन भी बनाई थी, इसमें उनके साथ सैयद हैदर रजा थे. अजित सिंह के खिलाफ 22 केस दर्ज थे, जिससे बचने के लिए उन्हें ईरान जाना पड़ा. भगत के पिता ने उनका दाखिला दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में कराया था.
1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड से भगत सिंह बहुत दुखी हुए थे और महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलन का उन्होंने खुलकर समर्थन किया था. भगत सिंह खुले आम अंग्रेजों को ललकारा करते थे, और गाँधी जी के कहे अनुसार ब्रिटिश बुक्स को जला दिया करते थे. चौरी चौरा में हुई हिंसात्मक गतिविधि के चलते गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन बंद कर दिया था, जिसके बाद भगत सिंह उनके फैसले से खुश नहीं थे और उन्होंने गाँधी जी की अहिंसावादी बातों को छोड़ दूसरी पार्टी ज्वाइन करने की सोची.
भगत सिंह लाहौर के नेशनल कॉलेज से BA कर रहे थे, तब उनकी मुलाकात सुखदेव थापर, भगवती चरन और भी कुछ लोगों से हुई. आजादी की लड़ाई उस समय जोरों पर थी, देशप्रेम में भगत सिंह ने अपनी कॉलेज की पढाई छोड़ दी और आजादी की लड़ाई में कूद गए. इसी दौरान उनके घर वाले उनकी शादी का विचार कर रहे थे. भगत सिंह ने शादी से इंकार कर दिया और कहा “अगर आजादी के पहले मैं शादी करूँ, तो मेरी दुल्हन मौत होगी.” भगत सिंह कॉलेज में बहुत से नाटक में भाग लिया करते थे, वे बहुत अच्छे एक्टर थे. उनके नाटक, स्क्रिप्ट देशभक्ति से परिपूर्ण होती थी, जिसमें वे कॉलेज के नौजवानों को आजादी के लिए आगे आने को प्रोत्साहित करते थे, साथ ही अंग्रेजों को नीचा दिखाया करते थे. भगत सिंह बहुत मस्त मौला इन्सान थे, उन्हें लिखने का भी बहुत शौक था. कॉलेज में उन्हें निबंध में भी बहुत से प्राइस मिले थे.
भगत सिंहस्वतंत्रता की लड़ाई (Bhagat Singh War of Independence)
भगत सिंह ने सबसे पहले नौजवान भारत सभा ज्वाइन की. जब उनके घर वालों ने उन्हें विश्वास दिला दिया, कि वे अब उनकी शादी का नहीं सोचेंगे, तब भगत सिंह अपने घर लाहौर लौट गए. वहां उन्होंने कीर्ति किसान पार्टी के लोगों से मेल जोल बढ़ाया, और उनकी मैगजीन “कीर्ति” के लिए कार्य करने लगे. वे इसके द्वारा देश के नौजवानों को अपने सन्देश पहुंचाते थे, भगत जी बहुत अच्छे लेखक थे, जो पंजाबी उर्दू पेपर के लिए भी लिखा करते थे, 1926 में नौजवान भारत सभा में भगत सिंह को सेक्रेटरी बना दिया गया. इसके बाद 1928 में उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) ज्वाइन कर ली, जो एक मौलिक पार्टी थी, जिसे चन्द्रशेखर आजाद ने बनाया था. पूरी पार्टी ने साथ में मिलकर 30 अक्टूबर 1928 को भारत में आये, सइमन कमीशन का विरोध किया, जिसमें उनके साथ लाला लाजपत राय भी थे. “साइमन वापस जाओ” का नारा लगाते हुए, वे लोग लाहौर रेलवे स्टेशन में ही खड़े रहे. जिसके बाद वहां लाठी चार्ज कर दिया गया, जिसमें लाला जी बुरी तरह घायल हुए और फिर उनकी म्रत्यु हो गई.
लाला जी की म्रत्यु से आघात भगत सिंह व उनकी पार्टी ने अंग्रेजों से बदला लेने की ठानी, और लाला जी की मौत के लिए ज़िम्मेदार ऑफीसर स्कॉट को मारने का प्लान बनाया, लेकिन भूल से उन्होंने असिस्टेंट पुलिस सौन्देर्स को मार डाला. अपने आप को बचाने के लिए भगत सिंह तुरंत लाहौर से भाग निकले, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उनको ढूढ़ने के लिए चारों तरह जाल बिछा दिया. भगत सिंह ने अपने आप को बचाने के लिए बाल व दाढ़ी कटवा दी, जो की उनके सामाजिक धार्मिकता के खिलाफ है. लेकिन उस समय भगत सिंह को देश के आगे कुछ भी नहीं दिखाई देता था.
चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजदेव व सुखदेव ये सब अब मिल चुके थे, और इन्होंने कुछ बड़ा धमाका करने की सोची. भगत सिंह कहते थे अंग्रेज बहरे हो गए, उन्हें ऊँचा सुनाई देता है, जिसके लिए बड़ा धमाका जरुरी है. इस बार उन्होंने फैसला किया, कि वे लोग कमजोर की तरह भागेंगे नहीं बल्कि, अपने आपको पुलिस के हवाले करेंगे, जिससे देशवासियों को सही सन्देश पहुंचे. दिसम्बर 1929 को भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार की असेंबली हॉल में बम ब्लास्ट किया, जो सिर्फ आवाज करने वाला था, जिसे खाली स्थान में फेंका गया था. इसके साथ ही उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाये और पर्चे बाटें. इसके बाद दोनों ने अपने आप को गिरफ्तार कराया.
शहीद भगत सिंह की फांसी (Bhagat Singh Death Reason)
भगत सिंह खुद अपने आप को शहीद कहा करते थे, जिसके बाद उनके नाम के आगे ये जुड़ गया. भगत सिंह, शिवराम राजगुरु व सुखदेव पर मुकदमा चला, जिसके बाद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई, कोर्ट में भी तीनों इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते रहे. भगत सिंह ने जेल में रहकर भी बहुत यातनाएं सहन की, उस समय भारतीय कैदियों के साथ अच्छा व्यव्हार नहीं किया जाता था, उन्हें ना अच्छा खाना मिलता था, ना कपड़े. कैदियों की स्थिति को सुधार के लिए भगत सिंह ने जेल के अंदर भी आन्दोलन शुरू कर दिया, उन्होंने अपनी मांग पूरी करवाने के लिए कई दिनों तक ना पानी पिया, ना अन्न का एक दाना ग्रहण किया. अंग्रेज पुलिस उन्हें बहुत मारा करती थी, तरह तरह की यातनाएं देती थी, जिससे भगत सिंह परेशान होकर हार जाएँ, लेकिन उन्होंने अंत तक हार नहीं मानी. 1930 में भगत जी ने Why I Am Atheist नाम की किताब लिखी.
23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को फांसी दे दी गई. कहते है तीनों की फांसी की तारीख 24 मार्च थी, लेकिन उस समय पुरे देश में उनकी रिहाई के लिए प्रदर्शन हो रहे थे, जिसके चलते ब्रिटिश सरकार को डर था, कि कहीं फैसला बदल ना जाये, जिससे उन लोगों ने 23 व 24 की मध्यरात्रि में ही तीनों को फांसी दे दी और अंतिम संस्कार भी कर दिया.
शहीद दिवस (Shahid Diwas)
शहीद भगत सिंह के बलिदान को व्यर्थ न जाने देने के कारण हर साल उनके मुत्यु तिथि को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है. इन दिन उन्हें देश के सभी लोग श्रद्धांजलि देते हैं.
“इतिहास में गूँजता एक नाम हैं भगत सिंह शेर की दहाड़ सा जोश था जिसमे वे थे भगत सिंह छोटी सी उम्र में देश के लिए शहीद हुए जवान थे भगत सिंह आज भी जो रोंगटे खड़े करदे ऐसे विचारो के धनि थे भगत सिंह ..”
भगत सिंह अनमोल वचन (Bhagat Singh Quote)
Bhagat Singh Quote 1: Lovers, Lunatics and poets are made of same stuff.
प्रेमी, पागल एवम कवि एक ही थाली के चट्टे बट्टे होते हैं अर्थात सामान होते हैं
Bhagat Singh Quote 2: Every tiny molecule of Ash is in motion with my heat I am such a Lunatic that I am free even in Jail.
मेरी गर्मी के कारण राख का एक-एक कण चलायमान हैं मैं ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी स्वतंत्र हैं .
Bhagat Singh Quote 3: If the deaf are to hear, the sound has to be very loud. When we dropped the bomb, it was not our intention to kill anybody. We have bombed the British Government. The British must quit India and make her free.
Bhagat Singh Quote 4: One should not interpret the word “Revolution” in its literal sense. Various meanings and significance are attributed to this word, according to the interests of those who use or misuse it.
किसी को “क्रांति” को परिभाषित नहीं करना चाहिए . इस शब्द के कई अर्थ एवम मतलब हैं जो कि इसका उपयोग अथवा दुरपयोग करने वाले तय करते हैं
Bhagat Singh Quote 5: Revolution did not necessarily involve sanguinary strife. It was not a cult of bomb and pistol.
क्रांति में सदैव संघर्ष हो यह आवश्यक नहीं . यह बम और पिस्तौल का राह नहीं हैं .
Bhagat Singh Quote 6: The people generally get accustomed to the established order of things and begin to tremble at the very idea of a change. It is this lethargical spirit that needs be replaced by the revolutionary spirit.
सामान्यत: लोग परिस्थती के आदि हो जाते हैं और उनमे बदलाव करने की सोच मात्र से डर जाते हैं . अतः हमें इस भावना को क्रांति की भावना से बदलने की आवश्यकता हैं .
Bhagat Singh Quote 7: Any man who stands for progress has to criticize, disbelieve and challenge every item of the old faith.
जो व्यक्ति उन्नति के लिए राह में खड़ा होता हैं उसे परम्परागत चलन की आलोचना एवम विरोध करना होगा साथ ही उसे चुनौति देनी होगी .
Bhagat Singh Quote 8: I emphasize that I am full of ambition and hope and of full charm of life. But I can renounce all at the time of need, and that is the real sacrifice.
मैं यह मानता हूँ कि मैं महत्वकांक्षी, आशावादी एवम जीवन के प्रति उत्साही हूँ लेकिन आवश्यकता अनुसार मैं इस सबका परित्याग कर सकता हूँ सही सच्चा त्याग होगा .
Bhagat Singh Quote 9: Non-violence is backed by the theory of soul-force in which suffering is courted in the hope of ultimately winning over the opponent. But what happens when such an attempt fail to achieve the object? It is here that soul-force has to be combined with physical force so as not to remain at the mercy of tyrannical and ruthless enemy.
अहिंसा को आत्म विश्वास का बल प्राप्त हैं जिसमे जीत की आशा से कष्ट वहन किया जाता हैं लेकिन अगर यह प्रयत्न विफल हो जाये तब क्या होगा ? तब हमें इस आत्म शक्ति को शारीरक शक्ति से जोड़ना होता हैं ताकि हम अत्याचारी दुश्मन की दया पर न रहे .
Bhagat Singh Quote 10: The elimination of force at all costs is Utopian and the new movement which has arisen in the country and of whose dawn we have given a warning is inspired by the ideals which Guru Gobind Singh and Shivaji, Kamal Pasha and Reza Khan, Washington and Garibaldi, Lafayette and Lenin preached.
किसी भी कीमत पर शक्ति का प्रयोग ना करना काल्पनिक आदर्श है और देश में जो नवीन आन्दोलन शुरू हुआ हैं जिसके शुरुवात की हम चेतावनी दे चुके हैं वो गुरु गोबिंद सिंह और शिवाजी, कमाल पाशा और राजा खान , वाशिंगटन और गैरीबाल्डी , लाफायेतटे और लेनिन के आदर्शों का अनुसरण है।
Bhagat Singh Quote 11:
Man acts only when he is sure of the justness of his action, as we threw the bomb in the Legislative Assembly.
कोई व्यक्ति तब ही कुछ करता हैं जब वह अपने कार्य के परिणाम को लेकर आश्वस्त होता हैं जैसे हम असेम्बली में बम फेकने पर थे
Bhagat Singh Quote12: Merciless criticism and independent thinking are the two necessary traits of revolutionary thinking.
कठोरता एवम आजाद सोच ये दो क्रातिकारी होने के गुण हैं
Bhagat Singh Quote 13: I am a man and all that affects mankind concerns me”
मैं एक इंसान हूँ और जो भी चीज़े इंसानियत पर प्रभाव डालती हैं मुझे उनसे फर्क पड़ता हैं .
Bhagat Singh Quote14: Life is lived on its own…other’s shoulders are used only at the time of funeral.
जीवन अपने दम पर चलता हैं दूसरों का कन्धा अंतिम यात्रा में ही साथ देता हैं
Bhagat Singh Quote 15: Revolution is an inalienable right of mankind. Freedom is an imperishable birth right of all. Labour is the real sustainer of society.
क्रांति मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार हैं साथ ही आजादी भी जन्म सिद्ध अधिकार हैं और परिश्रम समाज का वास्तव में वहन करता हैं .
भगत सिंह जैसी महान हस्ती के बलिदान के लिए पूरा भारत देश उनका ऋणी है, आज के सभी नौजवान उन्हें अपनी प्रेरणा मानते है. उनके बलिदान की कहानी देश विदेश में चर्चित है. इनके जीवन पर कई फ़िल्में भी बन चुकी जिन्हें देख देशभक्ति की ललक सभी के अंदर जागृत हो जाती है.
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जीवन परिचय, जीवनी, बागेश्वर धाम, महाराज, भागवत कथा, ताज़ा न्यूज़,आयु, उम्र, भजन, विवाद, परिवार, शादी किससे हुई, धर्म, जाति (Dhirendra Krishna Shastri Biography in Hindi) (Bageshwar Dham, Kahan hai, Maharaj, Date of Birth, Age, Latest News, Wife, Family, Net Worth, Katha, Location, Temple, Caste, Religion)
आजकल सोशल मीडिया पर जो एक सन्यासी छाया हुआ है वो है महाराज धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री। मध्य प्रदेश के बागेश्वर धाम में अपना दरबार लगाने वाले धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने इंटरनेट की दुनिया में तहलका मचाया हुआ है। लाखों लोग उनके भक्त हैं और उनकी शेयर की हुई वीडियो देखते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वो लोगों के मन की बात बिना बताए जो जान जाते हैं। उनकी यही खास बात लोगों को काफी पसंद आती है जिसके कारण उनके भक्त उन्हें हनुमान जी का अवतार मानते हैं। देशभर के इसी चहीते महाराज के जीवने के बारे में आज हम आपको बताएगे कि कैसे बने महाराज धीरेन्द्र कृष्ण चमत्कारी बाबा।
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जीवन परिचय (Dhirendra Krishna Shastri Biography in Hindi)
नाम
श्री धीरेन्द्र कृष्ण जी
उपनाम
बागेश्वर धाम महाराज
प्रसिद्ध नाम
बालाजी महाराज, बागेश्वर महाराज, धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री
जन्म
4 जुलाई 1996
जन्म स्थान
गड़ा, छतरपुर, मध्य प्रदेश
धर्म
हिन्दू
पिता का नाम
राम कृपाल गर्ग
माता का नाम
सरोज गर्ग
दादाजी का नमा
भगवान दास गर्ग
भाई-बहन
शालिग्राम गर्ग जी महाराज (छोटा भाई), एक बहन
जाति
पंडित
वैवाहिक स्थिति
अविवाहित
शैक्षिक योग्यता
कला वर्ग में स्नातक
भाषा
बुंदेली, संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी
व्यवसाय
सनातन धर्म प्रचारक, कथावाचक, दिव्य दरबार, प्रमुख बागेश्वर धाम, यूट्यूबर
गुरू
श्री दादा जी महाराज सन्यासी बाबा
नेटवर्थ
19.5 करोड़
महाराज धीरेन्द्र शास्त्री का जन्म, उम्र, परिवार एवं शुरूआती जीवन (Birth, Age, Family and Early Life)
महाराज धीरेन्द्र कृष्ण का जन्म 4 जुलाई 1996 को मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के गड़ा पंज गांव में एक ब्राह्मण घर में हुआ। उनके पिता राम कृपाल गर्ग औऱ मां सरोज गर्ग है। उनके घर में दादाजी उनकी एक बहन और एक छोटा भाई भी है। महाराज धीरेन्द्र कृष्ण ने अपना शुरूआती जीवन गांव में बिताया। आपको बता दें कि, उनका परिवार काफी गरीब था। जिसके कारण उन्हें सुख-सुविधाओं से वंचित रहना पड़ा। महाराज धीरेन्द्र कृष्ण को बचपन से आध्यात्मिक चीजें का काफी शौक रहा है। जिसकी शिक्षा उन्होंने अपने दादाजी से प्राप्त की है।
महाराज धीरेन्द्र शास्त्री की शिक्षा (Dhirendra Shastri Education)
महाराज धीरेन्द्र कृष्ण ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव के एक स्कूल से प्राप्त की। लेकिन बड़ी कक्षा में आने के बाद उन्हें गांव से 5 किलोमीटर दूर एक सरकारी स्कूल में पढ़ने जाना पड़ा। इसके बाद उन्होंने कॉलेज में दाखिला लिया और वहां से बीए कंप्लीट की। लेकिन पढ़ाई में ज्यादा मन ना लगने के कारण उन्होंने अपने दादाजी से महाभारत, रामायण, भागवत कथा और पुराण महाकाव्य की शिक्षा ली और दरबार लगाना शुरू किया। जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने हनुमान जी की साधना करनी शुरू कर दी और कम उम्र में ही सिद्धि प्राप्त कर ली।
महाराज धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के गुरू (Dhirendra Shastri Guru)
महाराज धीरेन्द्र कृष्ण जिस परिवार में जन्म थे। वो बागेश्वर धाम को काफी माना करते थे। उनके दादाजी बागेश्वर धाम में ही रहा करते थे। यहीं पर उनके दादाजी गुरू सन्यासी बाबा की समाधि भी मौजूद है। आपको बता दें कि, सन्यासी बाबा भी इनके वंश के थे। जिन्होंने करीबन 320 साल पहले समाधि ली थी। धीरेन्द्र के दादाजी बहुत समय से बागेश्वर धाम में दरबार लगाया करते थे। जिसको देखकर उनके अंदर भी इसकी आस्था जागी और उन्होंने दादाजी के दरबार में अर्जी लगाई। उन्होंने परिवार की हालत देखकर उनसे इससे छुटकारा मांगा। जिसके बाद उनके दादा जी ने उन्हें अपना शिष्य बना लिया। वहीं से उन्होंने इन सिद्धियों की शिक्षा प्राप्त की और बाग्शेवर धाम की सेवा करनी शुरू कर दी।
बागेश्वर धाम क्या है (What is Bageshwar Dham)
बागेश्वर धाम एक हनुमान जी का मंदिर है जो मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के गड़ा में मौजूद है। यह वही गांव है जहां महाराज धीरेन्द्र कृष्ण का जन्म हुआ था। यहीं पर उनके दादाजी ने समाधि भी ली थी। दुनियाभर के लोग यहां आते हैं और अपने नाम की अर्जी लगाते हैं। यहां पर मंगलवार के अलावा कभी और अर्जी नहीं लगाई जाती। मंगलवार का दिन अर्जी के लिए इसे चुना गया है क्योंकि ये दिन हनुमान जी का दिन होता है। आपको बता दें कि, जो लोग भी यहां आकर अर्जी लगाते हैं वो एक नारियल को लाल कपड़े में बांधकर जरूर लाते हैं। ऐसी मान्यता है कि, अगर जो कोई भी इस नारियल को उस मंदिर में बांधकर जाता है उनकी मनोकामना जरूरत पूर्ण होती है। जिसके कारण लाखों लोग यहां मंगलवार को नारियल बांधने आते हैं। यहीं पर लगता है महाराज धीरेन्द्र कृष्ण का भव्य दरबार। जहां आकर लोग अपनी समस्या का समाधान पाते हैं।
बागेश्वर धाम के टोकन क्या होते हैं(What is Token)
अगर कोई व्यक्ति यहां दर्शन के लिए आता है तो उसे इस बात पर गौर करना चाहिए कि, यहां पर सेवा समिति की तरफ से टोकन जारी किए जाते हैं। अगर आप पहली बार मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं तो आपको टोकन लेना होगा। जिसपर आपका मोबाइल नंबर और आपके नाम की जानकारी दर्ज होगी।
बागेश्वर धाम में दर्शन करने के लिए कैसे प्राप्त होता है टोकन(How to Get Token)
बागेश्वर धाम में जो टोकन दिए जाते हैं उसमे दर्शन का महीना और तारीख लिखी जाती है। उसके अनुसार ही आपको वहां दर्शन प्राप्त होते हैं जिसके बाद आपकी अर्जी इस धाम में लगाई जाती है। इसके बिना आप कभी भी दर्शन नहीं कर सकते।
घर बैठे लगाए अर्जी (How to Apply at Home)
ये जानकारी उन भक्तों के लिए है जो बागेश्वर धाम नहीं आ पाते। वो अपनी अर्जी घर बैठे दे सकते हैं बस उन्हें इतना करना होगा कि, एक लाल कपड़े में नारियल को बांधना होगा और ओम बागेश्वराय नम: का जाप करना होगा। इसके बाद जो भी आपके मन में प्रश्न है उन्हें बोलना होगा। इससे आपकी अर्जी बाबा तक पहुंच जाएगी और जल्द ही आपकी मनोकामना भी पूरी हो जाएगी।
बागेश्वर धाम कैसे पहुंचे(How to Reach Bageshwar Dham)
बागेश्वर धाम पहुंचने के लिए आप ट्रेन से रिजेरवेशन कराकर जा सकते हैं। इसके लिए आपको खजुराहे स्टेशन का टिकट लेना होगा। उसके बाद 20 किमी और आगे जाना होगा। क्योंकि रेल वहां तक नहीं जाती है। इसके लिए आप बस, ऑटो जैसे साधन ले सकते हैं जो आपको मंदिर तक आसानी से पहुंचा देंगे। इससे आप आसानी से वहां तक पहुंकर दर्शन कर पाएंगे।
महाराज धीरेन्द्र कृष्ण बने कथावाचक(Dhirendra Shastri BageshwarBaba Katha)
महाराज धीरेन्द्र कृष्ण बचपन से ही की गरीबी में पले बड़े हैं। उन्हें कई चीजे पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा है। जिसके कारण वो एक ऐसा जरिया ढ़ूंढना चाहते थे। जिससे उनके परिवार की गरीबी दूर हो सके। इसलिए उन्होंने आगे बढ़कर काम करना शुरू किया। उसके बाद वो सत्यनारायण भगवान की कथा सुनाने लगे। जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आने लगा। जिसके बाद वो जगह-जगह जाकर कथावाचन करने लगे।
महाराज धीरेन्द्र कृष्ण पीठाधीश्वर कैसे बने(Dhirendra Shastri Bageshwar Baba)
महाराज धीरेन्द्र कृष्ण अपने दादाजी के साथ बागेश्वर धाम में गद्दी लगाते थे। लेकिन दादाजी के समाधि लेने के बाद वो ही एक अकेले थे जो उसे संभाल सकते थे। इसलिए उन्हें वहां का पीठाधीश्वर बना दिया गया। अब वही यहां का सारा कार्यभार देखते हैं। हर मंगलवार को वो ही यहां पर हनुमान जी की आराध्ना और लोगों के संकट दूर करते हैं।
महाराज धीरेन्द्र को मिला सम्मान (Dhirendra Shastri Achievement)
बागेश्वर धाम के महाराज 1 जून से 15 जून तक ब्रिटेन यात्रा पर गए थे। जब वो लंदन पहुंचे तो उनका भव्य स्वागत किया गया। जिसके बाद उन्होंने लंदन और लेस्टर शहर में जाकर श्रीमत भागवत कथा और हनुमत कथा का वाचन किया। जिसके कारण उन्हें ब्रिटिश संसद की ओर से तीन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ये तीन पुरस्कार हैं संत शिरोमणि, वर्ल्ड बुक ऑफ लंदन और वर्ल्ड बुक ऑफ यूरोप। इस पुरस्कार से सम्मानित होना अपने में ही काफी गर्व की बात है। ये पुरस्कार पाकर उन्होंने श्रीराम के जयकारे लगाए
महाराज धीरेन्द्र कृष्ण के चमत्कार(Dhirendra Shastri Bageshwar BabaMagic)
महाराज धीरेन्द्र कृष्ण एक कथावाचक हैं। वो बागेश्वर धाम में मंगलवार को अपनी गद्दी लगाते हैं। वो लोगों को ये बताते हैं कि, जिस परेशानी में आप हैं उससे कैसे छुटकारा पाया जाए। लेकिन लोगों ने उनके लिए धारणा बनाई है कि, वो बिना बताए लोगों के मन की बात जानकर उसका समाधान कर देते हैं जो कि, सच है। जिसके कारण लोग उन्हें चमत्कारी बाबा भी कहने लगे हैं। लाखों लोग उनके पास जाकर अपनी परेशानी बताकर उनका हल जानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो भी यहां हाजरी लगाता है वो कभी खाली हाथ वापस नहीं लौटता है। ये हाजरी एक पर्ची के द्वारा लगाई जाती है। जिसपर भक्त सिर्फ अपना नाम लिखता है और बॉक्स में इस पर्ची को डाल देता है। जिसके बाद पर्ची निकाली जाती है और उसे बुलाया जाता है। महाराज उसके बारे में नाम पढ़कर ही सब बता देते हैं। लोगों का कहना है कि, जो भी महाराज कहते हैं अगर वो किया जाए तो कभी आपके कोई भी काम नहीं रूक सकते।
महाराज धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री पर विवाद (Dhirendra Shastri Bageshwar Baba Controversy)
महाराज धीरेन्द्र कृष्ण पर कई लोगों ने अंधविश्वास फैलाने का आरोप लगाया है। अभी हाल ही में सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ एक कैंपेन देखने को मिला। जिसमें उनके विरोध में बाते लिखी गई और लोगों को बताया गया कि, वो उनकी भावना के साथ कैसे खिलवाड़ कर रहे हैं। ये आरोप नागपुर की एक संस्था द्वारा लगाया गया है। जिन्होंने उनपर आरोप लगाया है उनका नाम है श्याम मानव। श्याम मानव संस्था अंध श्रद्धा उन्मूलन समिति के सदस्य हैं। उन्होंने महाराज धीरेन्द्र कृष्ण को चुनौती दी है कि, वह नागपुर आकर अपना चमत्कार दिखाएं। उन्होंने कहा की अगर महाराज धीरेन्द्र कृष्ण ऐसा करने में सफल हो जाते हैं तो उन्हें 30 लाख रूपये का इनाम दिया जाएगा। लेकिन महाराज धीरेन्द्र कृष्ण ने उनकी चुनौती को स्वीकार नहीं किया है।
महाराज धीरेन्द्र कृष्ण का विवाद पर बयान(Dhirendra Shastri Bageshwar BabaStatement)
महाराज धीरेन्द्र कृष्ण का विवाद पर बयान जारी करते हुए कहा है कि, हाथी चले बाजार, कुत्ते भोंके हजार। इसका मतलब ये है कि, बोलता ही है जिसमें कुछ करने का दम नहीं होता। हम सालों से बोल रहे हैं कि, हम चमत्कारी नहीं हैं, ना ही कोई गुरू हैं। हम सिर्फ बागेश्वर धाम सरकार बालाजी के सेवक हैं। अगर कोई हमें चुनौती दे रहा है तो वो खुद यहां आकर हमारे काम को देख सकता है। हम अपनी जगह छोड़कर कहीं नहीं जाने वाले।
महाराज धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के पास कार (Dhirendra Shastri Car Collection)
महाराज धीरेन्द्र कृष्ण के पास कई सारी पर्सनल कारे हैं। जो अक्सर बाहर जाने के लिए काम आती हैं। जिसमें से एक है टाटा मोटर की फेवरिट एसयूवी टाटा सफारी जिसमें सवार होकर अक्सर वो मंदिर या आसपास प्रवचन देने के लिए जाते हैं। इनके पास जितनी भी गाड़ियां है वो काफी कीमती हैं।
महाराज धीरेन्द्र कृष्ण का नेटवर्थ (Dhirendra Shastri Net Worth)
महाराज धीरेन्द्र कृष्ण वैसे तो काफी गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। लेकिन आजकल काफी पैसे कमा रहे हैं। आपको बता दें कि, उनके प्रतिदिन की कमाई 8 हजार रूपये है। वहीं प्रतिमाह वो 3.5 लाख रूपये कमा लेते हैं। जिसके कारण उनका नेटवर्थ करीबन 19.5 करोड़ के आसपास पहुंच गया है।
FAQ
Q : बागेश्वर धाम कहां है?
Ans : बागेश्वर धाम मध्यप्रदेश में स्थित है।
Q : महाराज धीरेन्द्र कृष्ण किस परिवार से ताल्लुक रखते हैं?
Ans : महाराज धीरेन्द्र कृष्ण एक ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते हैं।
Q : धीरेंद्र शास्त्री की उम्र कितनी है?
Ans : 26 साल
Q : क्या महाराज धीरेन्द्र कृष्ण की शादी हो चुकी है ?
Ans : नहीं, वो अभी भी अविवाहित ही हैं।
Q : महाराज धीरेन्द्र कृष्ण के गुरू का क्या नाम है?
Ans : महाराज धीरेन्द्र कृष्ण के गुरू उनके दादाजी का नाम भगवान दास गर्ग है।
Q : महाराज धीरेन्द्र कृष्ण पर किसने विवादित टिप्पणी की?
Ans : महाराज धीरेन्द्र कृष्ण पर नागपुर की एक संस्था ने विवादित टिप्पणी की।
Ajay Singh (Weightlifter) biography, Wiki, Age, Family, net worth,girlfriend, wife, income,& More
Ajay Singh is an Indian weightlifter who has won several medals in national and international weightlifting tournaments. He holds multiple national weightlifting records and is considered one of the best Indian weightlifters.
Table of Contents
Wiki/Biography
Ajay Singh Shekhawat
was born on Thursday, 17 April 1997 (age 25 years; as of 2022) in Khadot village of Chirawa tehsil in Jhunjhunu district, Rajasthan, India. His zodiac sign is Aries. He studied at MG Public School in Jhunjhuno till the 5th standard. He played sports actively as he did not find his studies interesting. He played Kabaddi, Athletics, and competed in 20 km walking events, and occasionally in 600-meter races; however, in 2010, after he was inducted into the Army Sports Institute, his coaches recommended weightlifting to him after reviewing his body structure and muscle movements.
A childhood photo of Ajay Singh
Physical Appearance
Height (approx.): 5′ 10″
Weight (approx.): 80 kg
Hair Colour: Black
Eye Colour: Black
Family
Parents & Siblings
His father’s name is Dharampal Singh who is an ex-army person. He has 4 siblings. His elder brother works in the Indian Army.
A family photo of Ajay Singh
Wife & Children
He is unmarried.
Relationships/Affairs
He is single.
Career
He trained at Army Sports Institute, Pune for 2-3 years under Subedar Rajender and trained at the Netaji Subhas National Institute of Sports, Patiala under senior coach Vijay Sharma and assistant coach Pramod Sharma. He participated in various local weightlifting tournaments in Jhunjhunu. He competed in the 8th National Youth Weighlifting Tournament in 2012 in the under 69 kg category and secured 5th position. In 20165, he participated in the 67th Men Senior National Weightlifting Championships held in Jaipur, Rajasthan and came in 4th place. He participated in the Commonwealth Junior Championship in 2015, 2016, and 2017, and in 2018, he secured 5th place in the 18th Asian Games. In the 2018 IWF World Championships, he came in 26th place and in the 2019 IWF World Championships, he came in 18th place. In 2020, he competed in the 6th International Solidarity Championships and came 4th. He won gold medals in the 2019 and 2021 Commonwealth Senior Championships. In 2021, he secured 13th position in the 2021 IWF World Championships and came 4th in the 22nd Commonwealth Games held in Birmingham, UK.
Medals
Gold
2015: 68th Men Senior National Weightlifting Championships held in Patiala, Punjab in the 77kg category
2016: Commonwealth Weightlifting Championships held in Bayan Baru, Penang, Malaysia in the 77 kg category
2017: Junior Commonwealth Championships held at Gold Coast, Australia in the 77 kg category
2018: 70th Men Senior National Weightlifting Championships held in Moodbidri, Mangalore, Karnataka in the 77 kg categoryAjay Singh (in the centre) after winning gold in the 70th Men Senior National Weightlifting Championships in 2018
2019: Commonwealth Weightlifting Championships held in Apia, Samoa in the 81 kg category
2021: Commonwealth Weightlifting Championships held in Tashkent, Uzbekistan in the 81 kg category
2021: 73rd Men Senior National Weightlifting Championships held at Netaji Subhas National Institute of Sports, Patiala in the 81 kg categoryAjay Singh (in the centre) after winning gold in the 2021 Commonwealth Weightlifting Championships
2022: IWLF Senior National Weightlifting Championships held at KIIT, Bhubaneswar, Odisha in the 81 kg category
2023: IWLF Senior National Weightlifting Championships held at Nagercoil, Tamil Nadu in the 81 kg category
Silver
2015: Junior Commonwealth Championships held in Apia, Samoa in the 77 kg category
2022: 36th National Games held in Gandhinagar, Gujarat in the 81 kg category
Bronze
2015: 51st Men Junior National Weightlifting Championships held in Yamuna Nagar, Haryana in the 85 kg category
2017: Asian Junior Championships held in Kathmandu, Nepal in the 77 kg category
2021: 64th Inter services Weightlifting Championship 2021 in Pune in the 81 kg category
Awards & Honours
Maharana Pratap Award in 2017 by the Rajasthan state governmentAjay Singh received Maharana Pratap Award in 2017
Felicitated by then-Army Chief General Bipin Rawat in 2018
Felicitated by the Chief of Army Staff General Manoj Pande in 2022Ajay Singh felicitated by Chief of Army Staff Manoj Pande
Facts/Trivia
In December 2019, he was not allowed to board the flight due to a torn passport following which he returned to his home from the airport and could not compete in the Olympic qualifier weightlifting tournament held in Doha and subsequently from the 2020 Tokyo Olympics.
Dr Daniel Aronov Wiki, Name, Age, Wife, Children, Family, Biography
Dr Daniel Aronov is an Australian medical practitioner who was banned by the Australian Health Practitioner Regulation Agency (AHRPA) from performing cosmetic surgeries in Australia. He was a TikTok sensation and had many followers on Instagram. In 2021. the AHRPA ordered Aronov to remove all his social media posts.
Table of Contents
Wiki/Biography
Dr Daniel Aronov became the most-followed cosmetic surgeon on TikTik with 13.4 million followers and 500,000 followers on his Instagram account. He was a senior associate of the controversial Dr Daniel Lanzer. Dr Daniel Lanzer was a celebrity cosmetic surgeon who was extremely popular on social media, he resigned as a medical practitioner when investigations were launched against him in 2021 following the complaints of patients who were traumatized after being treated and operated on by Lanzer and his associates. Aronov also faced serious allegations after the investigations were launched against Dr Daniel Lanzer, at first, he denied all the allegations and branded them as “misinformation,” however in 2021, he was banned from performing cosmetic or any kind of surgical procedures including minor surgeries by the Australian Health Practioner Regulation Agency.
Daniel Lanzer (left) and Dr Daniel Aronov (right)
Physical Appearance
Hair Colour: Black
Family
Dr Daniel Aronov hails from Australia.
Parents & Siblings
There is not much information about his parents and siblings.
Wife & Children
There is not much information about his wife and children.
Career
Doctor
Dr Daniel Aronov is an Australian doctor who became famous through TikTok and social media. Aronov was famous for his skits, dances and educational content on medicine, however, he also posted extremely graphic surgical videos. Dr Daniel Aronov is a General Practitioner (GP), but in Australia, the cosmetic surgeon does not require specialist training like plastic surgeons. Aronov, like many others, moved to the lucrative field of cosmetic surgery, which is almost a billion-dollar industry in Australia. He was formerly associated with Dr Daniel Lanzer and faced severe criticism after a joint investigation led by Four Corners, The Age, and Sydney Morning Herald exposed the untold horrors behind the fame of the cosmetic surgeons. Since being banned from performing cosmetic or other surgeries Aronov has tried to minimize the punishment or limit the ban, however, he has not been given any exemption by the medical association.
Controversies
Extreme graphic surgical videos shared on social media platforms
Dr Daniel Aronov had a large number of followers on his TikTok account and Instagram account, he was one of the most popular medical practitioners on social media platforms around the globe. He posted short skits, dance videos and educational clips about medicine and health practices. He also posted videos that show parts of his surgeries, there were nearly-nude women in the videos and Aronov was seen singing and cracking jokes with his colleagues while the patients were undergoing procedures. Aronov once shared a video, in which he was seen throwing the body parts of a patient while the patient was awake, this went viral on TikTok. He was criticised and exposed by the patients who were shocked to find themselves in his videos on public platforms and insisted that they had not permitted him to post the videos.
Dr Lanzer Class Action
Dr Daniel Aronov is a defendant in the class action filed by Maddens Lawyers at the Victorian Supreme Court of Australia, spearheaded by Kathyrn Emeny. The class action is on behalf of everyone who has suffered loss or damage because of cosmetic surgery done at Dermatology and Cosmetic Surgery Services Pty Ltd (DCSS) or by one or more than one of the defendants. This class action alleges that the cosmetic surgeries were not done with an adequate level of skill and care. It also alleges that the defendants engaged in misleading and deceiving conduct. More than 540 patients have joined in this class action against the defendants.
Allegations of negligence and botched surgeries
After the joint investigation that exposed the untold side of the cosmetic field in Australia, many patients came forward sharing their shocking experiences with the media. A 42-year-old woman from Sydney, who had a tummy tuck and liposuction procedure by Dr Daniel Aronov was found in critical condition by her husband hours after she had undergone the procedures. She was rushed to St Vincent’s Hospital on 16 November 2021, and the officials from the hospital commented that it was a miracle that she was even alive. The hospital authorities expressed concern over patient care provided at the cosmetic clinic and said they would report it to the officials. Many patients came forward confirming that they had to endure horrendous pain for long periods and even had to seek the help of other hospitals and re
Facts/Trivia
In Australia, there is no special training required to be a cosmetic surgeon, unlike a plastic surgeon. Loopholes in the law allow people with a basic medical degree to call themselves cosmetic surgeons and to perform major surgeries.
The Australian Health Practioner Regulation Agency’s (AHRPA) decision to let Dr Daniel Aronov continue his as a general practitioner (GP) received severe criticism from the public. He was banned from performing cosmetic or surgical procedures in Australia, however, they allowed him to continue as a GP under the supervision of an AHRPA-approved supervisor. Dr Aronov has not worked as a medical practitioner since November 2021, when his appeal at the Federal court was rejected.
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का जीवन परिचय (Sadhvi Pragya Thakur Biography, story in hindi)
वर्तमान में भारत की राजनीति में कई ऐसे चेहरे सामने आये, जिनका राजनीति से कभी कोई रिश्ता नहीं रहा हैं, लेकिन उनकी स्वतंत्र पहचान रही हैं, ऐसे ही कई फिल्म-स्टार, खिलाड़ियों और उद्योगपतियों के साथ साधू-संतों को भी राजनीति में शामिल किया गया हैं, इस सूचि में ही मध्य-प्रदेश की साध्वी प्रज्ञा का नाम भी शामिल हैं. हालांकि साध्वी राजनीति की मुख्य धारा में 2019 के लोकसभा चुनावों से आई हैं, लेकिन गत 10-12 वर्षों से वो कई कारणों से चर्चा का विषय रही हैं.
Table of Contents
क्र. म.(s.No.)
परिचय बिंदु (Introduction Points)
परिचय (Introduction)
1.
पूरा नाम ((Full Name)
साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर
2.
जन्म दिन (Birth Date)
2 फरवरी 1970
3.
जन्म स्थान (Birth Place)
मध्य प्रदेश के भिंड जिले में
4.
पेशा (Profession)
साध्वी और लोकसभा उम्मीदवार
5.
राजनीतिक पार्टी (Political Party)
भारतीय जनता पार्टी
6.
अन्य राजनीतिक पार्टी से संबंध (Other Political Affiliations)
–
7.
राष्ट्रीयता (Nationality)
भारतीय
8.
उम्र (Age)
49 वर्ष
9.
गृहनगर (Hometown)
भोपाल
10.
धर्म (Religion)
हिन्दू
11.
जाति (Caste)
राजपूत
12.
वैवाहिक स्थिति (Marital Status)
अविवाहित
13.
राशि (Zodiac Sign)
–
साध्वी प्रज्ञा का बचपन और प्रारम्भिक जीवन (Sadhvi Pragya :Childhood and Early Life)
साध्वी का जन्म मध्यम वर्ग परिवार में हुआ था, उन के पिता आयुर्वेद डॉक्टर थे और साथ ही एग्रीकल्चर विभाग में डेमोनस्ट्रेटर भी थे. पिताजी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से भी जुड़े हुए थे. उनके पिता नित्य गीता का पाठ करते थे, तब वो उनके पास बैठकर सुनती थी, जिससे बचपन से भी वो आध्यात्म से जुडी हुई थी.
प्रज्ञा ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा मध्यप्रदेश के भिंड से पूरी की. साध्वी प्रज्ञा ने इतिहास में स्नातक की डिग्री ली थी और वो आल इंडिया स्टूडेंट काउंसिल में भी सक्रिय थी. भोपाल से उन्होंने इतिहास में पोस्ट ग्रेज्युएशन किया हैं.
साध्वी प्रज्ञा का परिवार और उनसे जुडी निजी जानकारियाँ (Sadhvi Pragya: Family and personal Information)
साध्वी को ट्रेवल करना, मोटर बाईक चलाना और किताबे पढना पसंद हैं और उनके माता-पिता के अनुसार साध्वी ने एक भी मूवी नही देखी हैं. प्रज्ञा ने विवाह नहीं करके आजीवन संत बने रहने का निश्चय किया और उन्होंने सूरत में अपना आश्रम बनाया और पुरे देश में वहां से यात्रा की.
पिता (Father)
सी.पी. ठाकुर
माता (Mother)
सरला देवी
साध्वी का राजनैतिक करियर (Sadhvi Pragya’s Political Carrier)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आने के बाद साध्वी ने संन्यास ले लिया था, प्रज्ञा बहुत अच्छी वक्ता थी और उनके वाक्-कौशल ने ही उन्हें प्रसिद्धि दिलाई थी. बहुत जल्द वो भारतीय जनता पार्टी के स्टार प्रचारक बन गयी थी. वो महिलाओं पर गहन प्रभाव डालती थी. वो इस्लामिक आतंकवाद पर सीधा प्रहार करती थी, और कश्मीर के मुद्दों पर भी सख्ती से बेहद स्पष्ट शब्दों में बोलती थी, इसलिए बहुत जल्द विपक्षी पार्टी एवं विरोधियों के निशाने पर भी आ जाती थी.
2002 में साध्वी ने जय वन्दे मातरम जन कल्याण समिति का निर्माण किया. इसके बाद वो स्वामी अवधेशानंद जी के सम्पर्क में आई. उन्होंने नेशनल जागरण मंच भी बनाया.
29 सितम्बर 2008 को मालेगांव में हुए बम धमाके में 100 से ज्यादा लोग घायल हो गये थे, ये धमाका एक मस्जिद में मोटरबाइक में रखे बम की वजह से हुआ था, और ये मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा के नाम से रजिस्टर थी. इसके बाद ही यूपीए सरकार ने भगवा आतंकवाद का मुद्दा उठाया, जिसमे साध्वी प्रज्ञा को मुख्य आरोपी बनाया गया. साध्वी इस आरोप के कारण पुरे 10 साल जेल में रही और 2017 को रिहा हुयी, साध्वी ने बताया कि पुलिस कस्टडी में उन्हें बेहद यातनाएं दी गयी थी, उनकी मर्जी के विपरीत नार्को टेस्ट और लाइ-डिटेक्टर का टेस्ट किया गया था. पुलिस कस्टडी में उन पर पुरुषों द्वारा थर्ड डिग्री टॉर्चर किया जाता था. उनके वकील गणेश सिवानी थे और अभी माननीय बोम्बे हाई कोर्ट से मिली जमानत के कारण वो जेल से बाहर हैं.
कहा जाता हैं कि बीजेपी के विधायक सुनील जोशी ने प्रज्ञा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था, लेकिन दिसम्बर 2007 में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी, ऐसे में साध्वी के अतिरिक्त 7 लोगों पर सुनील जोशी की हत्या का केस लगा था और 2017 में उन्हें सभी चार्ज से मुक्त कर दिया गया.
2019 में प्रयागराज में हुए कुंभ में साध्वी ने भारत भक्ति अखाड़ा बनाया और वो स्वयं इस अखाड़े की महामण्डलेश्वर बनी.
साध्वी प्रज्ञा और 2019 के लोकसभा चुनाव : साध्वी प्रज्ञा के जेल से रिहा होने के बाद बीजेपी ने खुले दिल से स्वागत किया और भोपाल में बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के बीच में साध्वी प्रज्ञा ने पार्टी की सदस्यता ग्रहण की. इसके बाद साध्वी ने घोषणा की, कि वो चुनावी मैदान में उतरेगी. भोपाल की सीट वैसे भी बीजेपी के लिए जीतना मुश्किल नहीं रही हैं, यहाँ आखिरी बार 1984 में कांग्रेस जीती थी, उसके बाद लगातार बीजेपी ही जीत रही हैं. कांग्रेस की आंतरिक राजनीति के चलते दिग्विजय सिंह को इस चुनावी जंग में साध्वी प्रज्ञा के सामने खड़ा किया गया. साध्वी ने भी दिग्विजय सिंह को जीत की खुली चुनौती दी, क्योंकि कहा जाता हैं कि भगवा आतंकवाद शब्द का आविष्कार दिग्विजय सिंह ने ही किया था और साध्वी प्रज्ञा को उस केस में फंसाने के पीछे उन्ही का योगदान था.
साध्वी प्रज्ञा से जुड़े विवाद (Sadhvi Pragya and Its Controversy)
मालेगांव बम ब्लास्ट के अतिरिक्त भी कई ऐसे छोटे-बड़े विवाद हैं, जिनसे साध्वी प्रज्ञा गिरी रहती हैं. इसका मुख्य कारण ये हैं कि साध्वी ने अब राजनीति में प्रवेश कर लिया हैं, इसलिए उनके बयानों को बारीकी से देखा-सुना जाता हैं. लेकिन इससे पहले 2018 में साध्वी तब भी विवादों में उलझी थी, जब उन्होंने कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को इटली वाली बाई कहा था.
2019 में चुनाव अभियान में चुनाव आयोग ने साध्वी पर 72 घंटे का प्रतिबन्ध लगाया था, क्योंकि उन्होंने लोगों को धर्म के आधार पर वोट देने की अपील की थी, जिससे मोडल कोड ऑफ़ कंडक्ट भी टुटा था. उन्होंने बाबरी मस्जिद के ध्वस्त होने पर भी कमेंट किया था, कि हमने देश पर से एक धब्बा हटाया हैं, हम इस पर गर्व करते हैं और भगवान ने हमे ऐसा करने का मौका दिया, इसलिए हम भाग्यशाली हैं, वहां जल्द ही राम-मन्दिर बनेगा.
19 अप्रैल 2019 को साध्वी ने 26/11 के हीरो हेमंत करकरे पर विवादित बयान दिया था, उन्होंने कहा था कि हेमंत की मृत्यु साध्वी के श्राप के कारण हुयी हैं. साध्वी के अनुसार जब उन्हें मालेगांव बम ब्लास्ट के लिए गिरफ्तार किया गया था, तब कोई सबूत नहीं मिलने के कारण हेमंत को कहा गया था, कि वो उन्हें छोड़ दे, लेकिन हेमंत ने ऐसा नहीं किया, तब साध्वी ने उन्हें श्राप दिया और हेमंत की 26/11 में मृत्यु हो गयी. हालांकि इस बात पर साध्वी को सार्वजनिक माफी भी मांगनी पड़ी थी, लेकिन बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने उनका परोक्ष समर्थन किया था.
16 मई 2019 को साध्वी प्रज्ञा ने एक और विवादित बयान दिया था, जिसकी जिम्मेदारी उनकी पार्टी बीजेपी ने भी नहीं ली, कमल हासन ने नाथूराम गोडसे को देश का पहला आतंकवादी कहा था, जिसके जवाब में प्रज्ञा ने कहा था, गोडसे देशभक्त थे, गोडसे देशभक्त हैं और देशभक्त ही रहेंगे, उन पर ऊँगली उठाने वाले अपने गिरेबान में झांककर देखे. लेकिन इस बार बीजेपी के किसी नेता और स्वयं प्रधानमंत्री ने भी उनका पक्ष नहीं लिया और साध्वी ने इस बयान पर भी सार्वजनिक माफ़ी मांगी.
इस तरह साध्वी प्रज्ञा ने अब तक अपने संत जीवन से लेकर राजनीति में प्रवेश तक की जो यात्रा तय की हैं, उसे देखकर भविष्य में एक राजनेता के रूप में उनसे उम्मीदें बढ़ जाती हैं.
गौतम अडानी का जीवन परिचय, कौन हैं, बायोग्राफी, इतिहास, कुल संपत्ति, नेटवर्थ, बिज़नेस, कास्ट, घर, कंपनी (Gautam Adani Biography in Hindi) (Business, Net Worth 2022, Family, House, Company)
जब भी हमारे देश में बिजनेस टायकून की बात होती है तो मुकेश अंबानी के अलावा एक और शख्स का नाम सामने आता है। वो है अडानी ग्रुप के फाउंडर गौतम अडानी। ये वही शख्स हैं जिन्होंने अपनी किस्मत को कोसने की बजाए मेहनत कर सफलता हासिल की। गौतम अडानी को इतना बड़ा व्यवसायिक साम्राज्य विरासत में नहीं मिला है, बल्कि ये उनकी कड़ी मेहनत का परिणाम है। आज भी बहुत कम लोगों को पता होगा की देश के सबसे अमीर व्यक्ति कहे जाने वाले गौतम अडानी कभी एक डायमंड कंपनी में मामूली पगार पर काम करते थे। लेकिन आज उनका कारोबार पूरी दुनिया में फैला हुआ है। आज हम आपको उनके जीवन के सफर के बारे में बताएंगे। किस तरह से गौतम अडानी बने बड़े बिजनेसमेन।
गौतम अडानीकौन हैं(Gautam Adani Biography in Hindi)
गौतम अडानी भारत के जाने माने अडानी एंटरप्राइज लिमिटेड के संस्थापक और अडानी ग्रुप के फाउंडर हैं। ऐसा कहा जाता है कि, ये हमेशा मुकेश अंबानी को टक्कर देते हुए दिखाई देते हैं। अमूमन भारत के बिजनेस घरानों को खड़ा करने के लिए ना जाने कितनी पीढ़ियां गुजर जाती हैं। जब जाकर एक बिजनेस अंपायर खड़ा होता है। ऐसा ही मुकाम हासिल किया है गौतम अडानी ने ताकि उनके आने वाली पीढ़ि आसानी से जीवन गुजार सके। आपको बता दें की ये भारत में कोल माइनिंग, एक्सपोर्ट, इलेक्ट्रिसिटी और ग्रीन एनर्जी, गैस और पेट्रोलियम आदि के व्यवसाय संभालते हैं।
गौतम अडानी का जन्म अहमदाबाद के रतनपोल स्थित मध्यमवर्गीय जैन परिवार में 24 जून 1962 में हुआ। इनके पिता का नाम शांतिलाल अडानी है, जो एक कपड़ा व्यापारी थे। इनकी मां का नाम शांताबेन। ये सात भाई-बहन हैं। गौतम अडानी जिनकी पत्नी का नाम है प्रीति अडानी। वो पेशे से डेंटिस्ट है लेकिन इस समय पर अडानी फाउंडेशन के चेयरपर्सन का कार्यभार संभाल रही हैं। उनकी पत्नी के नेतृत्व में अडानी फाउंडेशन शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका, ग्रामीण विकास जैसे काम देखे जा रहे हैं। वो कई संगठनों के साथ मिलकर भी काम कर रही हैं। वहीं गौतम अडानी के दोनों बेटे करण और जीत अडानी अभी अपनी पढ़ाई कर रहे हैं।
गौतम अडानी की शिक्षा (Gautam Adani Education)
आप सोच रहे होंगे कि, इतने बड़े बिजनेसमेन हैं तो इनकी शिक्षा भी अच्छे स्कूल-कॉलेज से हुई होगी। लेकिन ऐसा नहीं है, गौतम अडानी की शुरूआती शिक्षा सेठ चिमनलाल नागिदास स्कूल से हुई। इसके बाद उन्होंने गुजरात यूनिवसिर्टी से कोमर्स में ग्रेजुएशन की पढ़ाई शुरू की। लेकिन किसी कारण वो ग्रेजुएशन पूरी नहीं कर पाए और बीच में पढ़ाई छोड़ दी। इसके बाद वो अपने परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक करने के लिए मुंबई आए। जब वो मुंबई पहुंचे तो उनकी जेब में केवल 100 रूपये ही थे।
गौतम अडानी के करियर की शुरूआत(Gautam Adani Career Starting)
साल 1980 में आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण गौतम अडानी का परिवार थराद जा बसा।
गौतम अडानी की इंग्लिश काफी खराब थी, लेकिन उनके दोस्त मलय की इंग्लिश में पकड़ काफी अच्छी थी। आगे चलकर दोनों बिजनेस पार्टनर बने। इसके बाद ही शुरू हुआ गौतम अडानी का फर्श से अर्थ का सफर।
बिजनेस में रूचि रखने वाले गौतम अडानी अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर 1978 में मुंबई आ पहुंचे। जहां उन्होंने महिंद्रा ब्रदर्स की मुंबई वाली शाखा में नौकरी की। हालांकि गौतम अडानी काफी समझदार और मेहनती थे। इसलिए उन्होंने काम करते-करते व्यापार के सारे नियम और बाजर के बदलते ट्रेंड के बारे में जानकारी अच्छे से लेनी शुरू कर दी। व्यापार की अच्छी समझ होने के बाद उन्होंने वहां से नौकरी छोड़ दी और आभूषणों के सबसे बड़े जावेरी बाजार में अपना खुद का डायमंड ब्रोकरेज खोल लिया।
इम्पोर्ट एक्सपोर्ट के बिजनेस में अडानी से साल 1981 में अपना सिक्का अजमाया। जहां वो कामयाब रहे। ऐसा कहा जाता है कि, इसमें उनके बड़े भाई मनसुखभाई अडानी ने अहमदाबाद में एक पीवीसी यूनिट खोली थी और उसको मैनेज करने के लिए इन्हें बुलाया था। तबसे ही उन्होंने इसमें भी अपना पैर पक्का कर लिया।
गौतम अडानीका बिज़नेस एवं कंपनियाँ (Gautam Adani Business and Companies)
साल 1985 में उन्होंने छोटे स्तर पर पोलिमय का आयात शुरू किया। जिसके बाद उन्होंने 1988 में अदानी एक्सपोर्ट की नींव रखी जो आज पूरी दुनिया में अडानी एंटरप्राइजेज के नाम से जानी जाती है। ये भारत की सबसे बड़ी एक्सपोर्ट कंपनी है। जो एग्रीकलर और इलेक्रिट्रसिटी के क्षेत्र में काम करती है।
साल 1991 ग्लोबलाइजेशन का दौर गौतम अडानी के लिए सुनहरा अवसर साबित हुआ। जिसमें उन्होंने मेटल्स, टेक्सटाइल और एग्रीकलचर प्रोड्क्ट की शुरूआत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर करनी शुरू की। साल 1994 में गुजरात सरकार ने मुंद्रा पोर्ट के मैनेजमेंट को प्राइवेट कंपनियों के लिए खोला तो इस अवसर को भी गौतम अडानी ने लपक लिया।
साल 1995 में उन्होंने अडानी पोर्ट्स एंड एसईजेड खोली। जो आज के समय में देश की सबसे बड़ी प्राइवेट मल्टी पोर्ट ओपरेटर कंपनी में से एक है। 210 मिलियन टन कार्गो संभालने वाले मुंद्रा पोर्ट का पूरा जिम्मा आज भी उनके पास है।
इसके बाद उन्होंने 1996 अडानी पॉवर कंपनी की शुरूआत की इसके साथ ही उन्होंने एक नई फीलड में कदम रखा वो है एनर्जी सैक्टर। जिसके बाद आज वो देश की सबसे बड़ा प्राइवेट थर्मल पॉवर प्लांट चला रहे हैं जिसकी क्षमता 4620 मेगावाट है।
साल 2006 से 2012 में उन्होंने बिजली उत्पादन के क्षेत्र को देश के बाद अन्य देशों में विस्तृत किया।
साल 2020 में गौतम अडानी ने सोलर एनर्जी और ग्रीन एनर्जी सेक्टर में एक नई शुरूआत की। मई में सौर ऊर्जा निगम द्वारा आयोजित नीलामी में उन्होंने करीबन 6 मिलियन यूएस डॉलर लगाए और इस प्रोजेक्ट को हासिल किया। इसी के साथ उन्होंने ग्रीन एनर्जी के फीलड में 8000 मेगावाट की फोटोवोल्टिक बिजली प्रोजेक्ट की शुरूआत की।
साल 2021 में अडानी ने मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे की 74 प्रतिशत हिस्सेदारी भी अपने नाम की। जिसके बाद वो मुकेश अंबानी को पीछे छोड़ देश के सबसे अमीर व्यक्ति बन गए।
साल 2022 में भी वो मुकेश अंबानी को पीछे छोड़ देश के सबसे अमीर बिजनेसमेन के पायेदान पर बरकरार हैं।
गौतम अडानी की कुल संपत्ति(Gautam Adani Net Worth 2022)
साल 2021 के नवंबर की एक रिपोर्ट के मुताबिक गौतम अडानी एशिया के सबसे अमीर शख्स साबित हुए हैं। एक रिपोर्ट ने दावा किया है कि, रिलायंस इंडस्ट्री की 2 करोड़ की डील खत्म होने के बाद कंपनी के शेयर में गिरावट आई जिसके बाद अडानी ग्रुप पहले नंबर पर आ गया।
इससे पहले ब्लूमबर्ग बिलियनेयर इंडेक्स ने अडानी की नेटवर्थ 88.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर है ये जानकारी सामने लाई गई थी। जो मुकेश अंबानी से महज 2.2 बिलियन डॉलर कम थी।
वेल्थ हुरुन इंडिया रिच लिस्ट 2021 के आकड़ों के हिसाब से गौतम अडानी की कुल संपत्ति 5 लाख 6 हजार करोड़ रुपये दर्ज की गई है। एक रिपोर्ट में इनकी दैनिक कमाई के बारे में जानकारी देते हुए कहा है कि, ये करीब 1002 करोड़ रूपये रोजाना है।
साल 2022 की शुरुआत की बात करें तो आज के समय में गौतम आदनी की कुल संपत्ति 9,010 करोड़ यूएसडी तक पहुँच चुकी है. और ये देश के सबसे अमीर बिजनेसमेन में मुकेश अंबानी को भी हरा चुके हैं.
गौतम अडानी का सामाजिक कार्य (Gautam Adani Social Work)
भारत के कई अरबपतियों की तरह गौतम अडानी भी सामाजिक कार्यों में हमेशा बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। जिसके कारण सामाजिक कार्यों में इनकी चर्चा हमेशा बनी रहती है।
साल 1996 में उन्होंने अडानी फाउंडेशन खोला जिसके जरिए देश के कई हिस्सों में सामाजिक कार्य किए गए। आपको बता दें कि, इसका नेतृत्व प्रीति अडानी करती हैं।
कोरोना महामारी के दौरान अडानी फाउंडेशन ने देश को सबसे बड़ा सहयोग दिया। जिसके चलते उन्होंने पीएम केयर फंड में 100 करोड़, गुजरात सरकार को 5 करोड़ और महाराष्ट्र राहत कोष में 1 करोड़ का फंड दिया। ताकि उन लोगों की मदद की जा सके जो इस महामारी के कारण पूरी तरह से बेकार हो गए हैं।
कोरोना की दूसरी लहर में जब देश ऑक्सीजन की किल्लत से लड़ रहा था। तब अडानी ग्रुप एक मसीहा बनकर आया और उसने देश में लिक्विड ऑक्सीजन सरकार को दिलाकर इसके संकट से उबारा।
इसके साथ ही अडानी ग्रुप ने उन लोगों की भी काफी सहायता की जिनके पास इस महामारी में इलाज कराने के पैसे भी नहीं थे।
इनके फाउंडेशन के जरिए लोगों तक राशन और खाने की चीजें पहुंचाई गई। ताकि कोई भी भूखा ना रहे।
गौतम अडानी के सुविचार(Gautam Adani Quotes)
गौतम अडानी का हमेशा से ही कहना है कि, उन्हें राजनीति पसंद नहीं इसलिए वो राजनितिक पार्टियों से जुड़े हुए नहीं हैं लेकिन फिर भी राजनितिक पार्टियां उनकी दोस्त हैं।
उनका कहना है कि, या तो आप अंतर्मुखी होते हो या फिर बहिमुर्खी। अगर इस हिसाब से देखा जाए तो मैं अंतर्मुर्खी हूं, वो कहते हैं कि, वो सामाजिक व्यक्ति नहीं हैं क्योंकि उन्हें किसी भी पार्टी में जाना पसंद नहीं है।
उनका मानना है जो आपका जीवन का लक्ष्य है उसपर अटल रहो देखना एक दिन आप उसके शिखर पर अवसर दिखाई देगें।
उनका कहना है कि, मैं जो भी बात करता हूं सरल तरीके से करता हूं ताकि सामने वाले व्यक्ति को मेरी बातें समझ आए। कॉम्पिकेट तरीके से बात करने से कुछ भी समझ नहीं आता।
गौतम अडानी का कहना है कि, वो अपनी निवेश निति हमेशा राष्ट्र को हित में रखते हुए तय करते हैं। जिसमें कभी भी बदलाव नहीं होता।
उनका कहना है कि, अगर आप व्यापार करने के बारे में विचार कर रहे हैं तो इस बात को ध्यान में रखें कि, उसमें काफी जोखिम हो सकता है। इसलिए व्यापार करें लेकिन उससे कभी ना डरे।
इंफ्रास्ट्रक्चर का उद्देश्य देश की संपत्ति का निर्माण कराना है। जो राष्ट्र निर्माण का हिस्सा है।
उन्होंने कहा कि, मैंने अपनी पढ़ाई पूरी नहीं की लेकिन मुझे इतना समझा आ गया कि, मुझे अगर कुछ हासिल करना है तो मेहनत अब करनी होगी।
गौतम अडानी के विवाद और समस्याएं(Gautam Adani Controversy)
गौतम अडानी का हमेशा से ही कहना है कि, उन्हें राजनीति पसंद नहीं इसलिए वो राजनितिक पार्टियों से जुड़े हुए नहीं हैं लेकिन फिर भी राजनितिक पार्टियां उनकी दोस्त हैं।
उनका कहना है कि, या तो आप अंतर्मुखी होते हो या फिर बहिमुर्खी। अगर इस हिसाब से देखा जाए तो मैं अंतर्मुर्खी हूं, वो कहते हैं कि, वो सामाजिक व्यक्ति नहीं हैं क्योंकि उन्हें किसी भी पार्टी में जाना पसंद नहीं है।
उनका मानना है जो आपका जीवन का लक्ष्य है उसपर अटल रहो देखना एक दिन आप उसके शिखर पर अवसर दिखाई देगें।
उनका कहना है कि, मैं जो भी बात करता हूं सरल तरीके से करता हूं ताकि सामने वाले व्यक्ति को मेरी बातें समझ आए। कॉम्पिकेट तरीके से बात करने से कुछ भी समझ नहीं आता।
गौतम अडानी का कहना है कि, वो अपनी निवेश निति हमेशा राष्ट्र को हित में रखते हुए तय करते हैं। जिसमें कभी भी बदलाव नहीं होता।
उनका कहना है कि, अगर आप व्यापार करने के बारे में विचार कर रहे हैं तो इस बात को ध्यान में रखें कि, उसमें काफी जोखिम हो सकता है। इसलिए व्यापार करें लेकिन उससे कभी ना डरे।
इंफ्रास्ट्रक्चर का उद्देश्य देश की संपत्ति का निर्माण कराना है। जो राष्ट्र निर्माण का हिस्सा है।
उन्होंने कहा कि, मैंने अपनी पढ़ाई पूरी नहीं की लेकिन मुझे इतना समझा आ गया कि, मुझे अगर कुछ हासिल करना है तो मेहनत अब करनी होगी।
गौतम अडानी के पुरस्कार और उपलब्धियां(Gautam Adani Award and Achievement)
गौतम अडानी के समूह की कॉर्पोरेट सामाजिक कार्यों में सबसे आगे रहता है। ऐसे में अडानी फाउंडेशन को 2014 में तीसरे वार्षिक ग्रीनटेक सीएसआर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। जिसके बाद उन्होंने अपने फाउंडेशन के जरिए बहुत अच्छे काम किए।
FAQ
Q : गौतम अडानी किस चीज का बिजनेस करते हैं?
Ans : अडानी ग्रुप कोयला, पावर, लॉजिस्टिक्स, रियल एस्टेट, एग्रो प्रोडक्ट्स, ऑयल और गैस जैसी फील्ड में काम करता है।
Q : गौतम अडानी की कितने कंपनी हैं?
Ans : अडानी ग्रुप की इस समय तीन कंपनियां हैं। अडानी ग्रीन एनर्जी, अडानी टोटल और अडानी ट्रांसमिशन।
Q : गौतम अडानी के कितने बच्चे है?
Ans : गौतम अडानी के दो बेटे हैं करण अडानी और जीत अडानी।
Q : गौतम अडानी की कुल संपत्ति कितनी है?
Ans : गौतम अडानी की कुल संपत्ति 91.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
Q : देश के सबसे अमीर व्यक्तियों में से इस समय कौन है?
Ans : गौतम अडानी इस समय देश के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक हैं।
सम्राट अशोक का जीवन परिचय, जीवनी, जयंती कब है, प्रेमिका, जीवनसाथी (Samrat Ashok History in Hindi) (Biography, Story, Jayanti 2023)
प्राचीन समय के सबसे प्राचीन वंश मौर्य वंश के तीसरे राज्य अशोक मौर्य विश्वप्रसिद और सबसे शक्तिशाली राजाओं में से एक थे. सम्राट मौर्य ने 269 से 232 ई.पू तक शासन किया था. मौर्य वंश का यह राजा ही एक ऐसा राजा था जिसने अखंड भारत पर राज किया था. भारत में मौर्य वंश की नींव रखने वाले इस राजा ने भारत के उत्तर में हिन्दुकुश से लेकर गोदावरी नदी तक राज्य का विस्तार किया था इसके साथ ही उनका राज्य बांग्लादेश से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान और ईरान तक राज्य विस्तार था. सम्राट अशोक एक महान राजा होने के साथ धार्मिक सहिष्णु भी थे. वे बौद्ध धर्म के अनुयायी थे.
Table of Contents
सम्राट अशोक का जीवन परिचय
नाम
सम्राट अशोक
जन्म और स्थान
304 ई. पू पाटलिपुत्र
शासन का समय
269 ई.पू से 232 ई.पू
पहचान
महान राजा के रूप में
पत्नी का नाम
देवी, कारुवाकी, पद्मावती, तिष्यरक्षिता
पिता एवं माता
बिन्दुसार एवं शुभाद्रंगी
मृत्यु
232 ई पु
चक्रवर्ती सम्राट अशोक जन्म एवं स्थान (Birthday and Birth Place)
चक्रवर्ती सम्राट अशोक का 304 ई.पू वर्तमान बिहार के पाटलिपुत्र में हुआ था. सम्राट बिन्दुसार के पुत्र और मौर्य वंश के तीसरे राजा के रूप में जाने गये थे. चन्द्रगुप्त मौर्य की तरह ही उनका पोता भी काफी शक्तिशाली था. पाटलिपुत्र नामक स्थान पर जन्म लेने के बाद उन्होंने अपने राज्य को पुरे अखंड भारतवर्ष में फेलाया और पुरे भारत पर एकछट राज किया.
सम्राट अशोक का परिवार (Family)
सम्राट अशोक चन्द्रगुप्त मौर्य का वंशज था. सम्राट अशोक का एक पुत्र था बिन्दुसार और सम्राट उसी बिन्दुसार का बेटा था, जो की मौर्य वंश का तीसरा राजा और एक महान शासक था. सम्राट अशोक की माता का नाम शुभाद्रंगी था.
सम्राट अशोक पत्नि (Wife)
सम्राट अशोक की 4 पत्नियां थी उनके नाम देवी, कारुवाकी, पद्मावती, तिष्यरक्षिता थे.
सम्राट अशोक पुत्र (Son)
सम्राट अशोक के 4 पुत्र थे उनके नाम महेंद्र, संघमित्रा, तीवल, कनाल, और एक पुत्री चारुमती थी.
सम्राट अशोक की शिक्षा (Education)
सम्राट अशोक जन्म से ही एक महान शासक थे, उसके साथ ही वे ज्ञानी और महान शक्तिशाली शासक भी थे. महान सम्राट अशोक अर्थशास्त्र और गणित के महान ज्ञाता थे. सम्राट अशोक ने शिक्षा के प्रचार के लिए कई स्कूल और कॉलेज की स्थापना भी की थी. सम्राट अशोक ने 284 ई.पू बिहार में एक उज्जैन अध्ययन केंद्र की स्थापना की थी. इतना ही नहीं इन सबके अलावा भी उन्होंने कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना की थी. सम्राट स्वयं शिक्षा के क्षेत्र में भी कई महान कार्य किये थे जिनकी वजह से उन्हें एक महान शासक के नाम से जाना जाता है.
सम्राट अशोक का साम्राज्य (Empire)
सम्राट अशोक के साम्राज्य विस्तार की बात करे तो सम्राट अशोक का साम्राज्य अखंड भारत में विस्तृत था. उत्तर से दक्षिण हिस्से तक केवल सम्राट अशोक का ही राज था. उत्तर से हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण तक और पूर्व में बांग्लादेश से पश्चिम में इराक और अफगानिस्तान तक अशोक का राज्य विस्तार था. सम्राट अशोक का राज्य वर्तमान के भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार और ईराक तक फेला हुआ था. तत्कालीन समय में भारत काफी फैला हुआ था. आज के पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार, नेपाल और भूटान उस समय भारत का ही हिस्सा थे.
सम्राट अशोक कलिंग का युद्ध
सम्राट अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 7 वे वर्ष ही कलिंग पर आक्रमण किया था, जिसमें बहुत खून खराबा हुआ. सम्राट अशोक के तेरहवें शिलालेख के अनुसार यह बताया गया हैं की इस युद्ध में दोनों तरफ से करीब 1 लाख लोगो की मौत हुई थी और कई लोग इसमें घायल भी हुए थे. सम्राट अशोक ने इस नरसंहार को अपनी आंखों से देख काफी दुखी हुए. इस युद्ध से दुखी होकर सम्राट अशोक ने अपने राज्य में सामाजिक और धार्मिक प्रचार करना आरम्भ किया. इस घटना के बाद सम्राट अशोक का मन मानव और जीव के प्रति दया के भाव से भर गया. इस घटना के बाद सम्राट अशोक ने युद्ध न करने का प्रण लिया और लोगो ने शांति का प्रचार किया.
सम्राट अशोक बौद्ध धर्म
कलिंग के युद्ध की घटना के बाद सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया और इस धर्म के अनुयायी बन गये, अपने राज्य में इस धर्म का प्रचार किया और लोगों को जीव और मानव के प्रति दया भाव रखने का संदेश दिया.
सम्राट अशोक का शासन तकरीबन पूरे तत्कालीन भारत मे था और सम्राट अशोक मौर्य भी अपने दादा चन्द्रगुप्त मौर्य की तरह ही जैन धर्म का अनुयायी था, उसने अपने जीवनकाल में कई भवन, स्तूप, मठ और स्तंभ का निर्माण करवाया। सम्राट अशोक द्वारा बनवाये गये मठ और स्तूप राजस्थान के बैराठ में मिलते हैं इसके साथ ही साँची का स्तूप भी काफी प्रसिद्ध है और यह भी सम्राट अशोक द्वारा ही बनाया गया था.
सम्राट अशोक मौर्य के शिलालेख
भारत के महान शासक सम्राट अशोक मौर्य ने अपने जीवन में कई निर्माण कार्य कराए थे. सम्राट अशोक ने अपने जीवन में कई शिलालेख भी खुदवाये जिन्हें इतिहास में सम्राट अशोक के शिलालेखों के नाम से जाना जाता है. मौर्य वंश की पूरी जानकारी उनके द्वारा स्थापित इन्ही मौर्य वंश के शिलालेखों में मिलती है। सम्राट अशोक ने इन शिलालेखो को ईरानी शासक की प्रेरणा से खुदवाए थे. सम्राट अशोक के जीवनकाल के करीब 40 शिलालेख इतिहासकारों को मिले हैं जिसमे से कुछ शिलालेख तो भारत के बाहर जैसे अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल, वर्तमान बांग्लादेश व पाकिस्तान इत्यादि देशों में मिले हैं. भारत में मौजूद सम्राट अशोक के शिलालेख एवं उनके नाम निम्नलिखित हैं –
शिलालेख
स्थान
रूपनाथ
जबलपुर ज़िला, मध्य प्रदेश
बैराट
राजस्थान के जयपुर ज़िले में, यह शिला फलक कलकत्ता संग्रहालय में भी है।
मस्की
रायचूर ज़िला, कर्नाटक
येर्रागुडी
कर्नूल ज़िला, आंध्र प्रदेश
जौगढ़
गंजाम जिला, उड़ीसा
धौली
पुरी जिला, उड़ीसा
गुजर्रा
दतिया ज़िला, मध्य प्रदेश
राजुलमंडगिरि
बल्लारी ज़िला, कर्नाटक
गाधीमठ
रायचूर ज़िला, कर्नाटक
ब्रह्मगिरि
चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक
पल्किगुंडु
गवीमट के पास, रायचूर, कर्नाटक
सहसराम
शाहाबाद ज़िला, बिहार
सिद्धपुर
चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक
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चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक
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सम्राट अशोक धार्मिक परिचय
सम्राट अशोक स्वयं एक महान धार्मिक सहिष्णु शासक थे. सम्राट अशोक बौद्ध धर्म के अनुयायी थे. सम्राट अशोक पशु हत्या के बिलकुल खिलाफ थे. सम्राट अशोक जनता को हमेशा जियो और जीने दो का ज्ञान देते थे. सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने दूत यानी प्रचारकों को श्रीलंका, नेपाल, सीरिया, अफगानिस्तान इत्यादि जगहों पर भी भेजा था. सम्राट अशोक ने अपने पुत्र और पुत्री को भी इन देशों की यात्रा पर भेजा था, ताकि वे इन देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार कर सके और लोगों को धार्मिक बना सके. बौद्ध धर्म का प्रचार करने में सबसे ज्यादा सफलता उनके सबसे बड़े पुत्र महेंद्र को मिली थी. उसने श्रीलंका राज्य के राजा तिस्स को बौद्ध धर्म अपनाने के लिए विवश कर दिया था ज्सिएक बाद राजा तिस्स ने बौद्ध धर्म को राजधर्म में परिवर्तित कर लिया. अशोक से प्रेरित हो कर तिस्स ने स्वयं को ‘देवनामप्रिय’ की उपाधि दी।
ऐसा माना जाता है की सम्राट अशोक के जीवन का अंतिम समय पाटलिपुत्र, पटना में ही बीता था। 40 वर्षो के शासन के बाद उनकी मृत्यु हो गई। सम्राट अशोक ने अपने जीवन काल में कई महान कार्य किये और उन्ही महान कार्यो के लिए उन्हें जाना जाता हैं.
सम्राट अशोक फिल्म एवं सीरियल (Movie and Serial)
सम्राट अशोक के जीवन से आज हर कोई परिचित हैं. सम्राट अशोक के जीवन के बारे में बताने के लिए साल 1992 में एक मूवी आई थी जिसे सम्राट अशोका के नाम से प्रचारित किया गया था. इस मूवी ने एन.टी रामा राव निर्देशित किया था. इसके अलावा सम्राट अशोक के जीवन पर आधारित एक सीरियल भी टीवी पर आता हैं इस टीवी सीरियल को कलर्स चैनल द्वारा चलाया जाता है और इस चैनल का नाम चक्रवर्ती सम्राट अशोक है, वर्तमान में यह सीरियल चलन में नहीं है इस सीरियल का आखिरी शो 7 अक्टूबर 2016 को आया था.
सम्राट अशोक को मौर्य वंश के तीसरे शासक थे। सम्राट अशोक का कार्यकाल 304 ई.पू से 232 ई.पू के मध्य माना जाता है। सम्राट अशोक का जन्म पाटलिपुत्र में हुआ था जो की वर्तमान में पटना में है। सम्राट अशोक ने अपने जीवनकाल में केवल एक ही युद्ध लड़ा था जिसे इतिहास में ‘‘कलिंग युद्ध’’ के नाम से जाना जाता है। उम्मीद करते है आपको यह लेख पसंद आया होगा। होम पेज
FAQ
Q : सम्राट अशोक कौन था ?
Ans : सम्राट अशोक भारत का प्रमुख शासक था जो की मौर्य वंश से संबंधित था।
Q : सम्राट अशोक किस धर्म का अनुयायी था ?
Ans : सम्राट अशोक बौद्व धर्म का अनुयायी था।
Q : सम्राट अशोक ने अपने जीवन मे कितने युद्ध लडे ?
Ans : सम्राट अशोक ने अपने जीवन में केवल एक की युद्ध लडा था।
Q : सम्राट अशोक ने अपनी अंतिम सांस कहाँ ली ?
Ans : ऐसा माना जाता है की सम्राट अशोक ने अपनी अंतिम साँस पाटलिपुत्र मे ली।
Q : सम्राट अशोक का राज्य कहाँ तक फेला था ?
Ans : सम्राट अशोक का साम्राज्य उत्तर भारत के साथ पश्चिम अफ़ग़ानिस्तान तक फैला था।