Ncert solution for class 12 biology Chapter 14 Ecosystem (पारितन्त्र)

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Chapter 14 Ecosystem (पारितन्त्र)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों को भरो –

उत्तर

प्रश्न 2.
एक खाद्य श्रृंखला में निम्नलिखित में सर्वाधिक संख्या किसकी होती है?
(क) उत्पादक
(ख) प्राथमिक उपभोक्ता
(ग) द्वितीयक उपभोक्ता
(घ) अपघटक
उत्तर
(घ)अपघटक।

प्रश्न 3.
एक झील में द्वितीय (दूसरा) पोषण स्तर होता है –
(क) पादपप्लवक
(ख) प्राणिप्लवक
(ग) नितलक (बैनथॉस)
(घ) मछलियाँ
उत्तर
(ख)प्राणिप्लवक।

प्रश्न 4.
द्वितीयक उत्पादक हैं –
(क) शाकाहारी (शाकभक्षी)
(ख) उत्पादक
(ग)

मांसाहारी (मांसभक्षी)
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(क)शाकाहारी (शाकभक्षी)।

प्रश्न 5.
प्रासंगिक सौर विकिरण में प्रकाश संश्लेषणात्मक सक्रिय विकिरण का क्या प्रतिशत होता है?
(क) 100%
(ख) 50%
(ग) 1 – 5%
(घ) 2 – 10%
उत्तर
(घ)2 – 10%.

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट करें –
(क) चारण खाद्य श्रृंखला एवं अपरद खाद्य श्रृंखला
(ख) उत्पादन एवं अपघटन
(ग) ऊर्ध्ववर्ती (शिखरांश) एवं अधोवर्ती पिरामिड
उत्तर
(क)चारण खाद्य श्रृंखला एवं अपरद खाद्य श्रृंखला में अन्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem Q.6.1

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem Q.6.2

(ख)उत्पादन एवं अपघटन में अन्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem Q.6.3

(ग)ऊर्ध्ववर्ती एवं अधोवर्ती पिरामिड में अन्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem Q.6.4

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट करें –
(क) खाद्य श्रृंखला तथा खाद्य जाल (वेब)(2009, 10, 11, 14, 16, 17)
(ख) लिटर (कर्कट) एवं अपरद
(ग) प्राथमिक एवं द्वितीयक उत्पादकता
उत्तर
(क)खाद्य श्रृंखला तथा खाद्य जाल में अन्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem Q.7.1

(ख)लिटर (कर्कट) एवं अपरद में अन्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem Q.7.2

(ग)प्राथमिक एवं द्वितीयक उत्पादकता में अन्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem Q.7.3

प्रश्न 8.
पारिस्थितिक तन्त्र के घटकों की व्याख्या कीजिए।(2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18)
या
परिस्थितिक तन्त्र की परिभाषा लिखिए।(2018)
उत्तर
स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल का वह क्षेत्र जिसमें जीवधारी रहते हैंजैवमण्डल(biosphere) कहलाता है। जैवमण्डल में पाए जाने वालेजैवीय(biotic) तथाअजैवीय(abiotic) घटकों के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययनपारितन्त्र(ecosystem) कहलाता है।पारितन्त्रयापारिस्थितिक तन्त्र(ecosystem) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथमटैन्सले(Tansley, 1935) ने किया था। यदि जीवमण्डल में जैविक, अजैविक अंश तथा भूगर्भीय, रासायनिक व भौतिक लक्षणों को शामिल करें तो यहपारिस्थितिक तन्त्रबनता है।

पारिस्थितिक तन्त्र सीमित व निश्चित भौतिक वातावरण का प्राकृतिक तन्त्र है जिसमें जीवीय (biotic) तथा अजीवीय (abiotic) अंशों की संरचना और कार्यों का पारस्परिक आर्थिक सम्बन्ध सन्तुलन में रहता है। इसमें पदार्थ तथा ऊर्जा का प्रवाह सुनियोजित मार्गों से होता है।

पारिस्थितिक तन्त्र के घटक
पारिस्थितिक तन्त्र के मुख्यतया दो घटक होते हैं- जैविक तथा अजैविक घटक।
1.जैविक घटक(Biotic components) – पारिस्थितिक तन्त्र में तीन प्रकार के जैविक घटक होते हैं-स्वपोषी(autotrophic),परपोषी(heterotrophic) तथाअपघटक(decomposers)।
(अ)स्वपोषी घटक(Autotrophic component) –हरे पादपपारितन्त्र के स्वपोषी घटक होते हैं। ये सौर ऊर्जा तथा क्लोरोफिल की उपस्थिति में CO2तथा जल सेप्रकाश संश्लेषणकी क्रिया द्वारा कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। हरे पादपउत्पादक(producer) भी कहलाते हैं। हरे पौधों में संचित खाद्य पदार्थ दूसरे जीवों का भोजन है।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem Q.8

(ब)परपोषी घटक(Heterotrophic components) – ये अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते, ये भोजन के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पौधों पर निर्भर रहते हैं। इन्हें उपभोक्ता (consumer) कहते हैं। उपभोक्ता तीन प्रकार के होते हैं –

  1. प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता अथवा शाकाहारी(Herbivores) – ये उपभोक्ता अपना भोजन सीधे उत्पादकों (हरे पौधों) से प्राप्त करते हैं। इन्हेंशाकाहारीकहते हैं। जैसे-गाय, बकरी, भैंस, चूहा, हिरन, खरगोश आदि।
  2. द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता अथवा मांसाहारी(Carnivores) – द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता भोजन के लिए शाकाहारी जन्तुओं का भक्षण करते हैं, इन्हेंमांसाहारीकहते हैं जैसे- मेढक, साँप आदि।
  3. तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता– तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता से भोजन प्राप्त करते हैं जैसे- शेर, चीता, बाज आदि।
    कुछ जन्तुसर्वाहारी(omnivores) होते हैं, ये पौधों अथवा जन्तुओं से भोजन प्राप्त कर सकते हैं जैसे- कुत्ता, बिल्ली, मनुष्य आदि।

(स)अपघटक(Decomposers) – ये जीव कार्बनिक पदार्थों को उनके अवयवों में तोड़ देते हैं। ये मुख्यत: उत्पादक व उपभोक्ता के मृत शरीर का अपघटन करते हैं। इन्हेंमृतजीवीभी कहते हैं। सामान्यतः येजीवाणुकवकहोते हैं। इसके फलस्वरूप प्रकृति मेंखनिज पदार्थों का चक्रणहोता रहता है। उत्पादक, उपभोक्ता व अपघटक सभी मिलकर बायोमास (biomass) बनाते हैं।

2.अजैविक घटक(Abiotic components) – किसी भी पारितन्त्र के अजैविक घटक तीन भागों में विभाजित किए जा सकते हैं –

  1. जलवायवीय घटक(Climatic components) – जल, ताप, प्रकाश आदि।
  2. अकार्बनिक पदार्थ(Inorganic substances) – C, O, N, CO2आदि। ये विभिन्न चक्रों के माध्यम से जैव-जगत् में प्रवेश करते हैं।
  3. कार्बनिक पदार्थ(Organic substances) – प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा आदि। ये अपघटित होकर पुनः सरल अवयवों में बदल जाते हैं।
    कार्यात्मक दृष्टि से अजैविक घटक दो भागों में विभाजित किए जाते हैं –
    1. पदार्थ(Materials) – मृदा, वायुमण्डल के पदार्थ जैसे- वायु, गैस, जल, CO2, O2, N2, लवण जैसे- Ca, S, P कार्बनिक अम्ल आदि।
    2. ऊर्जा(Energy) – विभिन्न प्रकार की ऊर्जा जैसे- सौर ऊर्जा, तापीय ऊर्जा, गतिज ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा आदि।

प्रश्न 9.
पारिस्थितिकी पिरैमिड को परिभाषित कीजिए तथा जैवमात्रा या जैवभार तथा संख्या के पिरैमिडों की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।(2014, 15, 16, 17)
उत्तर
पारिस्थितिक पिरैमिड
पारितन्त्र में खाद्य श्रृंखला के विभिन्न पोषक स्तरों में जीवधारियों के सम्बन्धों का रेखीय चित्रण पारिस्थितिकपिरैमिड(pyramid) कहलाता है। पिरैमिड पारितन्त्र में जीव की संख्या, जीवभार तथा जैव ऊर्जा को प्रदर्शित करते हैं। इनका सर्वप्रथम प्रदर्शन एल्टन (Elton, 1927) ने किया था। इनमें सबसे नीचे का पोषी स्तर उत्पादक का होता है तथा सबसे ऊपर का पोषी स्तरसर्वोच्च उपभोक्ताका होता है।

(i)जीवभार का पिरैमिड(Pyramid of biomass) – जीव के ताजे (fresh) अथवा शुष्क (dry) भार के रूप में प्रत्येक पोषी स्तर को मापा जाता है।स्थलीय पारितन्त्रमें उत्पादक का जीवभार सर्वाधिक होता है। अतः पिरैमिड सीधा रहता है।तालाबीय पारितन्त्रमें उत्पादक का भार सबसे कम होता है। अतः पिरैमिड उल्टा बनता है। जीवभार को g/m2में मापा जाता है।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem Q.9.1


(ii)संख्या का पिरैमिड(Pyramid of numbers) – इस पिरैमिड में विभिन्न पोषी स्तर के जीवों की संख्या को प्रदर्शित करते हैं। घास तथा तालाब पारितन्त्र में संख्या का पिरैमिड सीधा (upright) होता है। वृक्ष पारितन्त्र में उत्पादकों की संख्या सबसे कम (एक वृक्ष) तथा अन्तिम उपभोक्ता की संख्या सर्वाधिक होती है अतः यह पिरैमिड उल्टा होता है।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem Q.9.2

प्रश्न 10.
प्राथमिक उत्पादकता क्या है? उन कारकों की संक्षेप में चर्चा कीजिए जो प्राथमिक उत्पादकता को प्रभावित करते हैं।
उत्तर
प्राथमिक उत्पादकता(Primary Productivity) – हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण द्वारा सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरित करके कार्बनिक पदार्थों में संचित कर देते हैं। यह क्रिया पर्णहरित तथा सौर प्रकाश की उपस्थिति में CO2तथा जल के उपयोग द्वारा होती है। इस क्रिया के फलस्वरूप जैव जगत में सौर ऊर्जा का निरन्तर निवेश होता रहता है।

प्रकाश संश्लेषण द्वारा संचित ऊर्जा कोप्राथमिक उत्पादन(primary production) कहते हैं। एक निश्चित अवधि में प्रति इकाई क्षेत्र मेंउत्पादित जीवभार(biomass) याकार्बनिक पदार्थ की मात्राको भार (g/m2) या ऊर्जा (kcal/m2) के रूप में अभिव्यक्त करते हैं। ऊर्जा की संचय दर कोप्राथमिक उत्पादकता(primary productivity) कहते हैं। इसे kcal/m2/yr या g/m2/r में अभिव्यक्त करते हैं।

प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में हरे पौधों द्वारा कार्बनिक पदार्थों में स्थिर (fixed) सौर ऊर्जा की कुल मात्रा कोसकल प्राथमिक उत्पादन(Gross Primary Production : G.PP) कहते हैं।

प्राथमिक उत्पादकता को प्रभावित करने वाले कारक(Factors Affecting Primary Production)-प्राथमिक उत्पादकता एक सुनिश्चित क्षेत्र में पादप प्रजातियों की प्रकृति पर निर्भर करती है। यह विभिन्न प्रकार केपर्यावरणीय कारकों(प्रकाश, ताप, वर्षा, आर्द्रता, वायु, वायुगति, मृदा का संघटन, स्थलाकृतिक कारक तथा सूक्ष्मजैवीय कारक आदि),पोषकों की उपलब्धता(मृदा कारक) तथा पौधों कीप्रकाश संश्लेषण क्षमतापर निर्भर करती है। इस कारण विभिन्न पारितन्त्रों की प्राथमिक उत्पादकता भिन्न-भिन्न होती है। मरुस्थल में प्रकाश तीव्र होता है, ताप की अधिकता और जल की कमी होती है। अत: इन क्षेत्रों में जल की कमी के कारण पोषकों की उपलब्धता कम रहती है। इस प्रकार प्राथमिक उत्पादकता प्रभावित होती है। इसके विपरीत उपयुक्त प्रकाश एवं ताप की उपलब्धता के कारण शीतोष्ण प्रदेशों में उत्पादन अधिक होता है।

प्रश्न 11.
अपघटन की परिभाषा दीजिए तथा अपघटन की प्रक्रिया एवं उसके उत्पादों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
अपघटन(Decomposition) –अपघटकों(decomposers) जैसे- जीवाणु, कवक आदि द्वारा जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक पदार्थों जैसे-कार्बन डाइऑक्साइड, जल एवं पोषक तत्त्वों में विघटित करने की प्रक्रिया कोअपघटन(decomposition) कहते हैं।

पादपों के मृत अवशेष जैसे- पत्तियाँ, छाल, फूल आदि तथा जन्तुओं के मृत अवशेष, मलमूत्र आदि कोअपरद(डेट्राइटस-detritus) कहते हैं। अपघंटन की प्रक्रिया के महत्त्वपूर्ण चरण खण्डन, निक्षालन, अपचयन, ह्यूमस निर्माण तथा पोषक तत्त्वों का मुक्त होना है। केंचुए आदि कोअपरदाहारी(detritivores) कहते हैं। ये अपरदे को छोटे-छोटे कणों में खण्डित करते हैं। इस प्रक्रिया कोखण्डन(fragmentation) कहते हैं।

निक्षालन(leaching) प्रक्रिया में जल में घुलनशील अकार्बनिक पोषक मृदा में प्रवेश कर जाते हैं। शेष पदार्थ का अपचय जीवाणु तथा कवक द्वारा होता है।ह्यूमस निर्माण(humification) के फलस्वरूप गहरे भूरे-काले रंग का भुरभुरा पदार्थह्युमस(humus) बनता है।खनिजीकरण(mineralization) के फलस्वरूप ह्युमस (humus) से पोषक तत्त्व मुक्त हो जाते हैं। गर्म तथा आर्द्र वातावरण में अपघटन प्रक्रिया तीव्र होती है।

प्रश्न 12.
एक पारिस्थितिक तन्त्र में ऊर्जा प्रवाह का वर्णन कीजिए।(2015)
उत्तर
पारितन्त्र में ऊर्जा प्रवाह
पारितन्त्र को ऊर्जा मुख्य रूप से सौर ऊर्जा के रूप में प्राप्त होती है। सौर ऊर्जा का उपयोग हरे पादप (उत्पादक) ही कर सकते हैं। उत्पादक (हरे पौधे) प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलकर कार्बनिक पदार्थों के रूप में संचित करते हैं। खाद्य पदार्थ के रूप में ऊर्जा उत्पादक (producers) से विभिन्न स्तर के उपभोक्ताओं (consumers) को प्राप्त होती है। ऊर्जा को प्रवाह एकदिशीय (unidirectional) होता है।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem Q.12.1

प्रत्येक खाद्य स्तर पर उपलब्ध ऊर्जा का 90% जीवधारी की जैविक क्रियाओं में खर्च हो जाता है, केवल 10% संचित ऊर्जा ही अगले खाद्य स्तर को हस्तान्तरित होती है। हस्तान्तरण के समय भी कुछ ऊर्जा का ह्रास होता है। इस प्रकार एक खाद्य स्तर से दूसरे खाद्य स्तर में केवल 10% ऊर्जा हस्तान्तरित होती है।

उदाहरणार्थ– एक खाद्य श्रृंखला में यदि उत्पादक के पास 100% ऊर्जा है तो प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता (शाकाहारी) को केवल 10% ऊर्जा मिलेगी। उससे दूसरी श्रेणी के उपभोक्ता (मांसाहारी) को केवल 1% ऊर्जा मिलेगी। इसी प्रकार अगली श्रेणी के उपभोक्ता को 0.1% ऊर्जा मिलती है। इस प्रकार एक से दूसरी श्रेणी के जीव को केवल 10% ऊर्जा पिछली श्रेणी से प्राप्त हो सकती है। उपभोक्ता में सर्वाधिक ऊर्जा केवल शाकाहारियों को प्राप्य है।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem Q.12.2


पारितन्त्र में ऊर्जा को एकपक्षीय प्रवाह तथा अकार्बनिक पदार्थों के परिसंचरण का पारिस्थितिकी सिद्धान्त सभी जीवों एवं पर्यावरण पर लागू होता है।

प्रश्न 13.
एक पारिस्थितिक तन्त्र में एक अवसादीय चक्र की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताओं का वर्णन करें।
उत्तर
एक पारिस्थितिक तन्त्र में एक अवसादीय चक्र की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताएँ इस प्रकार हैं –

प्रश्न 14.
एक पारिस्थितिक तंत्र में कार्बन चक्रण की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताओं की रूपरेखा प्रस्तुत करें।
उत्तर
एक पारितन्त्र में कार्बन चक्रण की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताएँ इस प्रकार हैं –

  1. समुद्र में 71% कार्बन विलेय के रूप में विद्यमान है। यह सागरीय कार्बन भण्डार वायुमण्डल में CO2की मात्रा को नियमित करता है।
  2. अनुमानतः जैव मण्डल में प्रकाश संश्लेषण के द्वारा प्रतिवर्ष 4 x 1013किग्रा कार्बन का स्थिरीकरण होता है।
  3. एक महत्त्वपूर्ण कार्बन की मात्रा CO2के रूप में उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं की श्वसन क्रिया के माध्यम से वायुमण्डल में वापस आती है। भूमि एवं सागरों में कचरा सामग्री एवं मृत कार्बनिक सामग्री के अपघटन की प्रक्रियाओं द्वारा भी CO2की काफी मात्रा अपघटकों द्वारा छोड़ी जाती है।
  4. लकड़ी के जलाने, जंगली आग एवं जीवाश्मी ईंधन के जलने के कारण, कार्बनिक सामग्री, ज्वालामुखीय क्रियाओं आदि अतिरिक्त स्रोतों द्वारा वायुमण्डल में CO2को मुक्त किया जाता है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पारिस्थितिकी सिद्धान्त को प्रतिपादित करने वाले वैज्ञानिक का नाम बताइए(2016)
(क) ए०जी० टैन्सले
(ख) के०आर० स्पोनें
(ग) जे०डी० वाटसन
(घ) एफ०एच०सी० क्रिक
उत्तर
(क)ए०जी० टैन्सले

प्रश्न 2.
पारिस्थितिक तन्त्र से सम्बन्धित वैज्ञानिक हैं।(2016)
(क) बीरबल साहनी
(ख) आर० मिश्रा
(ग) राम उदार
(घ) के०सी० मेहता
उत्तर
(ख)आर० मिश्रा

प्रश्न 3.
पोखर पारिस्थितिक तन्त्र में निम्नलिखित में से कौन प्राथमिक उत्पादक है?(2012, 15)
(क) शैवाल
(ख) कवक
(ग) विषाणु
(घ) जीवाणु
उत्तर
(क)शैवाल

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऊर्जा के पिरैमिड की मुख्य विशेषता क्या है?(2016)
उत्तर
पारितंत्र में ऊर्जा का प्रवाह एकदिशीय होता है तथा ऊर्जा का पिरैमिड सदैव सीधा होता है।

प्रश्न 2.
उस जीवाणु का नाम लिखिए जो दलहनी पौधों की जड़ों की ग्रन्थियों में पाया जाता है।(2017, 18)
उत्तर
राइजोबियम लेग्यूमिनोसेरमा

प्रश्न 3.
लेगहीमोग्लोबिन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।(2017)
उत्तर
सहजीवी जीवाणु राइजोबियम दाल वाले पौधों की जड़ों के कॉर्टेक्स में लेग-हीमोग्लोबिन वर्णक एवं नाइट्रोजनेज एन्जाइम का संश्लेषण करता है। लेग-हीमोग्लोबिन कॉर्टेक्स कोशिकाओं में अवायवीय अवस्था को बनाये रखने में सहायक होता है।

प्रश्न 4.
कौन-सा शैवाल नाइट्रोजन स्थिरीकरण में भाग लेता है?(2012)
उत्तर
नाइट्रोसोमोनास (Nitrosomonas)।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्पादक तथा उपभोक्ता में अन्तर बताइए।(2013, 14, 17)
उत्तर
उत्पादक तथा उपभोक्ता में अन्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem 2Q.1

प्रश्न 2.
घास स्थल पारिस्थितिक तन्त्र की एक प्रारूपिक खाद्य श्रृंखला का वर्णन कीजिए।(2009)
या
खाद्य श्रृंखला पर टिप्पणी लिखिए।(2009, 10, 15)
उत्तर
खाद्य श्रृंखला
सभी जीवों को अपना जीवन तथा जैव क्रियाएँ चलाने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। पृथ्वी पर ऊर्जा का प्राथमिक तथा एकमात्र स्रोत सूर्य है। इस ऊर्जा को केवलहरे पौधेपर्णहरित द्वारा ग्रहण कर पाते हैं और इसी ऊर्जा का स्थानान्तरण विभिन्न श्रेणी के जन्तुओं मेंखाद्य स्तरों(trophic levels) द्वारा होता है। प्रत्येक स्तर पर विभिन्न रूपों में 90% ऊर्जा का अपव्यय होता है, जिसमें कुछ ऊर्जा का इस्तेमाल धारक जीव स्वयं करता है। एक खाद्य श्रृंखला में खाद्य स्तरों की संख्या 4 से 5 तक हो सकती है।

इस प्रकार ऊर्जा इन खाद्य स्तरों के सभी जीवों में होकर एक सीधी रेखा में प्रवाहित होती है। और इस प्रकार के जीवों को एक श्रृंखला के रूप में पहचाना जा सकता है। यही श्रृंखलाखाद्य श्रृंखलायाआहार श्रृंखला(food chain) है, अर्थात्खाद्य श्रृंखला, विभिन्न प्रकार के जीवधारियों का वह क्रम है, जिसके द्वारा एक पारिस्थितिक तन्त्र में खाद्य पदार्थों के रूप में ऊर्जा का प्रवाह एक ही सीधी दिशा में होता है।

किसी भी खाद्य श्रृंखला के लिए हरे पौधे सूर्य के प्रकाश की ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलकर खाद्य पदार्थों का निर्माण करते हैं तथा उसे संचित करते हैं। अतः येउत्पादक(producers) कहलाते हैं।शाकाहारी जन्तु(herbivorous animals) इन उत्पादकों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। अतः ये प्रथम श्रेणी केउपभोक्ता(consumers) हैं।मांसाहारी जीव(carnivorous animals) अपने भोजन के लिए इन शाकाहारी अथवा अन्य मांसाहारियों पर निर्भर करते हैं।

ये द्वितीय अथवा तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता हैं। इसी प्रकार की खाद्य श्रृंखलाओं, जो एक-दूसरे जीव के भक्षण के लिए एक घास के मैदान में होती हैं, में से एक वह है, जिसमेंटिड्डे(grasshopper) अर्थात् प्रथम उपभोक्ता पौधों (उत्पादकों) से अपना भोजन प्राप्त करते हैं, टिड्डों कोमेढ़क(frog) खा जाते हैं। मेढ़कों कोसर्प(snake) अपना भोजन बना लेते हैं; अन्त में सर्यों कोबाज(hawk) अपना भोजन बनाता है।

यहाँ मेढ़क एककीटाहारीतथा द्वितीय श्रेणी का उपभोक्ता है जबकि मेढ़क को अपना भोजन बनाने वाला सर्प मांसाहारी तथा तृतीय श्रेणी काउपभोक्ताहै। सर्प कोबाजखा जाता है, जिसको कोई नहीं खाता है अर्थात् बाजउच्चतम मांसाहारी(top carnivore) अथवासर्वोच्च उपभोक्ता(top consumer) हुआ (चित्र देखिए)। किसी भी खाद्य श्रृंखला में वैकल्पिक रास्ते बनने से वहखाद्य जाल(food web) में बदल जाती है; जैसे-हरे पौधों को खाने वाले चूहे भी हो सकते हैं तथा चूहों को सर्प खा जाते हैं अर्थात् सर्प के लिए मेढ़क के साथ चूहा भी वैकल्पिक भोजन हुआ। इसी प्रकार, बाज के लिए चूहा, सर्प तथा मेढ़क तीनों वैकल्पिक भोजन हुए।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem 2Q.2

किसी भी खाद्य श्रृंखला अथवा इनसे बने खाद्य जाल में मृत जीवों तथा इनके मृत अंगों अथवा इनके द्वारा त्यागे गये कार्बनिक पदार्थों को विभिन्न चक्रों के लिए कच्चे पदार्थों में बदलने वालेअपघटक(decomposers) भी होते हैं।
खाद्य श्रृंखलाएँ प्रमुखत: निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं –

  1. परभक्षी श्रृंखला(Predator Chain) – यह श्रृंखला उत्पादकों अर्थात् हरे पौधों से आरम्भ होती है तथा छोटे जन्तुओं से क्रमशः बड़े जन्तुओं में जाती है।
  2. परजीवी श्रृंखला(Parasitic Chain) – यह श्रृंखला भी हरे पौधों से ही आरम्भ होती है, किन्तु बड़े जीवों से छोटे जीवों की ओर चलती है।
  3. मृतोपजीवी श्रृंखला(Saprophytic Chain) – यह श्रृंखला मृत जीवों यामृत कार्बनिक पदार्थ(dead organic matter) सेसूक्ष्म-जीवों(micro-organisms) की ओर चलती है।

प्रश्न 3.
खाद्य जाल पर टिप्पणी लिखिए।(2015)
उत्तर
खाद्य जाल
विभिन्न खाद्य श्रृंखलाएँ मिलकर खाद्य जाल बनाती हैं। किसी एक ही पारितन्त्र में एक से अधिक खाद्य श्रृंखलाएँ पायी जाती हैं। ये पारितन्त्र में भोजन-प्राप्ति के वैकल्पिक पक्ष हैं। जिस पारितन्त्र में जितनी अधिक खाद्य श्रृंखलाएँ होती हैं वह उतना ही स्थिर होती है।

एक घास पारितन्त्र का खाद्य जाल निम्नवत् प्रदर्शित है –
आहारपूर्ति सम्बन्धों के अनुसार सभी जीवों का प्राकृतिक वातावरण या एक समुदाय में अन्य जीवों के साथ एक स्थान होता है। सभी जीव अपने पोषण या आहार के स्रोत के आधार पर आहार श्रृंखला में एक विशेष स्थान ग्रहण करते हैं, जिसे पोषण स्तर के नाम से जाना जाता है। उत्पादक प्रथम पोषण स्तर में आते हैं, शाकाहारी (प्राथमिक उपभोक्ता) दूसरे एवं मांसाहारी (द्वितीयक उपभोक्ता) तीसरे पोषण स्तर से सम्बद्ध होते हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem 2Q.3

उत्तरोत्तर पोषण स्तरों पर ऊर्जा की मात्रा घटती जाती है। जब कोई जीव मरता है तो वह अपरद या मृत जैवमात्रा में बदल जाता है जो अपघटकों के लिए एक ऊर्जा स्रोत के रूप में काम करता है। प्रत्येक पोषण स्तर पर जीव अपनी ऊर्जा की आवश्यकता के लिए निम्न पोषण स्तर पर निर्भर रहता है।

प्रश्न 4.
मरुक्रमक पर टिप्पणी लिखिए।(2013)
उत्तर
यह चट्टानों पर प्रारम्भ होने वाला अनुक्रमण है। चट्टानों पर जल तथा कार्बनिक पदार्थों की अत्यधिक कमी होती है। चट्टानों पर सर्वप्रथम स्थापित होने वाला प्राथमिक समुदायक्रस्टोज लाइकेनका होता है। मरुक्रमक में एक समुदाय निश्चित अवधि के पश्चात् दूसरे समुदाय से विस्थापित हो जाता है। इस क्रम में निम्न अवस्थाएँ पायी जाती हैं –

  1. क्रस्टोज लाइकेन अवस्था– अनावृत चट्टानों पर सर्वप्रथमक्रस्टोज लाइकेन, जैसे राइजोकापन, लिकोनोरा, गैफिस आदि उगते हैं। लाइकेन से स्रावित अम्ल चट्टानों का अपक्षय करते हैं। लाइकेन की मृत्यु से कार्बनिक पदार्थ एकत्र होने लगते हैं।
  2. फोलियोज लाइकेन अवस्था– मृदा की पतली पर्त परफोलियोज लाइकेन, जैसे- पामलिया, डर्मेटोकापन, फाइसिया, जैन्थोरिया आदि उगते हैं। इनकी मृत्यु होने से मृदा तथा कार्बनिक पदार्थों की मोटी पर्त बन जाती है। इनके फलस्वरूप आवास फोलियोज लाइकेन के लिए अनुपयुक्त हो जाता है।
  3. मॉस अवस्था– चट्टानों पर मृदा तथा ह्युमस की मोटी पर्त आवास को मॉस के लिए उपयुक्त बना देती है। इस आवास में पॉलीट्राइकम, टॉटुला, फ्यूनेरिया, पोगोनेटम आदि सफलतापूर्वक उगते हैं। ब्रायोफाइट्स के निरन्तर अपघटन से चट्टानों पर कार्बनिक पदार्थों से युक्त मोटा स्तर बन जाता है। अब आवास शाकीय पौधों के लिए उपयुक्त बनने लगता है।
  4. शाक अवस्था– शाकीय पौधों के लिए आवास के उपयुक्त हो जाने से पोआ, फेस्टुका, एरिस्टिडा, ट्राइडेक्स, ऐजिरेटम आदि शाकीय पौधे उग आते हैं। चट्टानों का निरन्तर अपक्षय होता रहता है, ह्युमस की मात्रा बढ़ती रहती है। इसके फलस्वरूप झाड़ीदार पौधों का आक्रमण प्रारम्भ हो जाता है।
  5. झाड़ीय अवस्था– चट्टानों पर ह्यूमस युक्त मृदा की मोटी पर्त बन जाने से शाकीय पौधों के मध्य झाड़ीदार पौधे उगने लगते हैं, जैसे-कैपेरिस, कैसिया, यूरेना, क्रोटालेरिया आदि। झाड़ियों के उगने के कारण चट्टान अपक्षय के कारण मृदा में बदलने लगती है। वृक्षों का अतिक्रमण प्रारम्भ हो जाता है।
  6. चरम अवस्था– मरुस्थलीय वृक्ष आवास में वृद्धि करने लगते हैं। ये वृक्ष अपने आवास के साथ सन्तुलन बनाये रखते हैं। इसके फलस्वरूपवन क्षेत्रोंका विकास हो जाता है। वृक्षों का समुदाय लगभग स्थायी समुदाय होता है।

प्रश्न 5.
जलक्रमक अनुक्रमण एवं मरुक्रमक अनुक्रमण में अन्तर बताइए।(2014)
उत्तर
वह अनुक्रमण जो जलीय आवास में प्रारम्भ होता है, जलक्रमक अनुक्रमण कहलाता है; जैसे-तालाब या झील का अनुक्रमण। इस अनुक्रमण के अन्तिम चरण में आने से पहले ही जलाशय लुप्त हो जाता है और वहाँ चरम समुदाय के रूप में वृक्षों का बाहुल्य स्थापित हो जाता है। इसके विपरीत वह अनुक्रमण जो अत्यन्त शुष्क वातावरण अर्थात् जहाँ जल की अत्यधिक कमी बनी रहती है, में प्रारम्भ होता है, मरुक्रमक अनुक्रमण कहलाता है; जैसे-नग्न चट्टानों एवं बालू के टीलों पर, मरुस्थल आदि का अनुक्रमण। नग्न चट्टानों के अनुक्रमण को शैलक्रमक तथा बालू के टीलों पर अनुक्रमण को बलुकियक्रमक अनुक्रमण भी कहा जाता है।

प्रश्न 6.
प्रकृति में कार्बन चक्र का एक रेखीय चित्र सहित वर्णन कीजिए।(2016)
उत्तर
कार्बन को जीवों का आधार माना जाता है। सजीव शरीर के शुष्क भार का 49 प्रतिशत भाग कार्बन से बना होता है और जल के पश्चात् यही आता है। यदि हम भूमण्डलीय कार्बन की पूर्ण मात्रा की ओर ध्यान दें तो हम देखेंगे कि समुद्र में 71 प्रतिशत कार्बन विलेय के रूप में विद्यमान है। यह सागरीय कार्बन भण्डार वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को नियमित करता है। वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड सम्पूर्ण आयतन का लगभग 0.03% होता है।

जीवाश्मी ईंधन भी कार्बन के एक भण्डार का प्रतिनिधित्व करता है। कार्बन चक्र वायुमण्डल, सागर तथा जीवित एवं मृत जीवों द्वारा सम्पन्न होता है। एक अनुमान के अनुसार जैवमण्डल में प्रकाश-संश्लेषण के द्वारा प्रतिवर्ष 4 x 1013किग्रा कार्बन का स्थिरीकरण होता है। कार्बन की कुछ मात्रा CO2(कार्बन डाइऑक्साइड) के रूप में उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं की श्वसन क्रिया के माध्यम से वायुमण्डल में वापस आती है।

इसके साथ ही भूमि एवं सागरों की कचरा सामग्री एवं मृत जीवों के कार्बनिक पदार्थों के अपघटन प्रक्रियाओं के द्वारा भी कार्बन डाइऑक्साइड की काफी मात्रा अपघटकों (decomposers) द्वारा छोड़ी जाती है। यौगिकीकृत कार्बन की कुछ मात्रा अवसादों में नष्ट होती है और संचरण द्वारा निकाली जाती है। लकड़ी के जलाने, जंगली आग एवं जीवाश्मी ईंधन के जलने के कारण, कार्बोनेटी चट्टानों तथा ज्वालामुखीय क्रियाओं आदि अतिरिक्त स्रोतों द्वारा वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड को मुक्त किया जाता है।

यदि सड़ने- गलने की प्रक्रिया धीमी हो जाये तो कार्बन यौगिक की बहुत अधिक मात्रा का भण्डारण हो जाता है। जब ये पृथ्वी में दब जाते हैं तो इनका अपघटन नहीं हो पाता। धीरे-धीरे ये तेल एवं कोयला में परिवर्तित हो जाते हैं। तेल और कोयले को जब जलाया जाता है तो कार्बन पुनः वायुमण्डल में आ जाता है। कार्बनिक कार्बन (organic carbon) के पृथ्वी में दब जाने से लाइमस्टोन चट्टान (limestone rock) बनती है। इस चट्टान के क्षरण (weathering) से कार्बन डाइऑक्साइड वायुमण्डल में पुनः वापस आ जाती है।

वायुमण्डल में कार्बनडाइऑक्साइड की मात्रा संतुलित होती है, किन्तु मानवीय क्रियाकलापों के कारण इसका संतुलन बिगड़ रहा है। तेजी से जंगलों का विनाश तथा परिवहन एवं ऊर्जा के लिए जीवाश्मी ईंधनों को जलाने आदि से महत्त्वपूर्ण रूप से वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड को मुक्त करने की दर बढ़ी है।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem 2Q.6

प्रश्न 7.
‘पारिस्थितिक तन्त्र में मानव की भूमिका’ शीर्षक पर टिप्पणी लिखिए।(2015)
उत्तर
बहुत पुराने समय से मनुष्य प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्र (natural ecosystem) को नष्ट करके अपनी इच्छानुसार बदलता रहा है। उसे मकान बनाने के लिए और ईंधन के लिए लकड़ी की आवश्यकता होती है। साथ ही वह अपनी इच्छानुसार विभिन्न फसलें उगाने व फलों के उद्यान लगाने के लिए भी प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्र को नष्ट करता रहा है।

जिस समय संसार में कम मानव थे, प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्र कम ही नष्ट होता था और मामूली रूप में बदल पाता था, परन्तु जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ रहने के लिए वे सड़क, आदि बनाने के लिए स्थान की आवश्यकता, मकान बनाने की सामग्री व ईंधन की आवश्यकता और खेती के लिए भूमि की आवश्यकता बढ़ती गई, जिस कारण प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्र को उत्पादन, इत्यादि के विचार के बिना ही नष्ट कर दिया गया या उसका स्वरूप बहुत बदल दिया गया। इस प्रकार धीरे-धीरेसन्तुलित पारिस्थितिक तन्त्र(balanced ecosystem) समाप्त होने लगे, क्योंकि ऊर्जा और दूसरे पदार्थों का सन्तुलन मनुष्यों व जन्तुओं द्वारा नष्ट कर दिया गया।

मिट्टी की ऊपर की उपजाऊ सतह अथवा परत वायु व वर्षा के जल द्वाराअपरदन(erosion) से नष्ट होकर वनस्पतिविहीन हो गई। इस प्रकार मनुष्य द्वाराकृत्रिम पारिस्थितिक तन्त्र(artificial ecosystem) का विकास हुआ। बहुत सेखरपतवार(weed) वजीवनाशी(pests) मनुष्य द्वारा भूमण्डल पर फैलकर प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्र को बहुत हानि पहुँचाते हैं। प्राकृतिक वनस्पति के विनाश के कारणअपरदन(erosion),बाढ़(flooding),रेत का एकत्रित होना(silting) अधिक तेजी से होता है। स्वच्छ जल के तालाबों का पारिस्थितिक तन्त्र बाढ़ से नष्ट हो जाता है। जलीय पारिस्थितिक तन्त्र (aquatic ecosystem ), गन्दे जल और कारखानों के बेकार बचे हुए पदार्थ से दूषित होकर बदल जाता है।

इसी प्रकार कोयला, गैस व तेल के अधिक मात्रा में जलने से वायु दूषित हो जाती है, क्योंकि इनके जलने से कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड व धुएँ के छोटे-छोटे कण पौधे की वृद्धि पर प्रभाव डालते हैं। मनुष्य विघ्न डालने वाले कार्यों द्वारा स्थिर पारिस्थितिक तन्त्रों को कम स्थिर पारिस्थितिक तन्त्रों में बदलता रहता है जिससे प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्रों की स्थिरता नष्ट हो जाती है। जिस समय शहर बनते हैं, पारिस्थितिक तन्त्र का और अधिक विनाश हो जाता है। खाद्य आपूर्ति में आने वाली फसलों के कारण पारिस्थितिक तन्त्रों को बदलना अधिक आवश्यक होता जा रहा है।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पारिस्थितिक तन्त्र कितने प्रकार के होते हैं? एक तालाब के पारिस्थितिक तन्त्र के विभिन्न घटकों का वर्णन कीजिए।(2010, 12, 13, 14, 17)
या
भारतीय पर्यावरण के एक पारिस्थितिक समूह का उदाहरण दीजिए तथा इसकी विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए। यह किस प्रकार असन्तुलित हो सकता है?(2014)
या
सन्तुलित पारिस्थितिक तन्त्र से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।(2015)
उत्तर
पारिस्थितिक तन्त्र के प्रकार
पारिस्थितिक तन्त्र प्रमुखत: दो प्रकार के हो सकते हैं –

जलीय पारिस्थितिक समूह, भारतीय पर्यावरण मेंअलवणीय जल(fresh water), जैसे-तालाबीय पारितन्त्र(pond ecosystem) अथवालवणीय जल(marine water); जैसे- कुछ झील, समुद्र आदि के पारितन्त्र हो सकते हैं।

तालाबीय पारितन्त्र के विभिन्न घटक
कोई जैव समुदाय तथा उसका पर्यावरण मिलकर एक जैविक इकाई (biological unit) बनाते हैं। तालाब में मिलने वाली जैव जातियाँ तथा अजैवीय वस्तुएँ परस्पर अन्तक्रियाएँ करके एक आत्मनिर्भर इकाई बनाते हैं। इसे तालाब का पारितत्र (pond ecosystem) कहते हैं। तालाब के पारितन्त्र के दो प्रमुख प्रकार के घटक इस प्रकार हैं –

1.अजैवीय घटक
जल, ताप, प्रकाश, अकार्बनिक पदार्थ, खनिज लवण, विभिन्न गैसें (CO2एवं O2), कार्बनिक अवशेष, ह्युमस आदि अजैवीय घटक हैं।

2.जैवीय घटक
इन्हें निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित करते हैं –
(i)उत्पादक(Producers) – जलीय तथाउभयचारी(amphibious) हरे पौधे होते हैं. येस्वपोषी(autotrophs) हैं। इनके जलाशय के तट से धरातल तक अनेक उदाहरण हो सकते हैं; जैसे-तट की दलदली मृदा से टाइफा (Typha), रेननकुलस (Ranunculus) आदि एवं जल में अनेक शैवाल, हाइड्रिला, वैलिसनेरिया आदि तथापादप प्लवक(phytoplanktons) आदि। ये पौधे प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करते हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem 3Q.1

(ii)उपभोक्ता(Consumers) – ये कई श्रेणियों में बँटे होते हैं; जैसे –

  1. प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता– जल में पाये जाने वाले छोटे-छोटे कीट-जन्तु प्लवक(zooplanktons),कोपीपोड(copepods),कीटों के लार्वी, कुछऐनीलिड्स(annelids) तथामॉलस्क्स(molluscs) आदि। येशाकाहारी(herbivores) हैं। औरशैवालों, पत्तियोंइत्यादि को भोजन के रूप में लेते हैं।
  2. द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता– ये प्रमुखतःशिकारी कीटछोटी मछलियाँ आदि होती हैं, जो शाकाहारी उपभोक्ताओं का शिकार करते हैं; जैसे-मूंग(beetles) आदि। मेढ़क (frogs) भी प्रायः इसी श्रेणी के जन्तु होते हैं।
  3. तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता– विभिन्न प्रकार कीमांसाहारी मछलियाँ(carnivorous fish) जो सभी श्रेणी के अन्य उपभोक्ताओं को अपना भोजन बनाती हैं। यहाँउच्चतम उपभोक्ता(top consumers) ये ही हैं।

(iii)अपघटक(Decomposers) – मृत जीवों पर आश्रित रहने वाले जीव अर्थात् मृतोपजीवी जैसे- जीवाणु, कवक आदि। ये जीव तालाब में मृत जीवों का अपघटन कर उनके अवयवों को पर्यावरण में मुक्त करते हैं ताकि उत्पादक अर्थात् हरे पौधे इनको उपभोग कर सकें। इस प्रकार हरे पौधे जिन पदार्थों का उपयोग करके भोजन बनाते हैं अन्त में ये पदार्थ चक्रीकरण द्वारा विभिन्न जीवों से होते हुए अन्त में वापस जलीय भूमि में आ जाते हैं।

पारिस्थितिक तन्त्र का सन्तुलन
पारिस्थितिक तन्त्र का सन्तुलन उसमें उपस्थितखाद्य जाल(food web) की जटिलता और विशालता पर निर्भर करता है। खाद्य जाल जितना जटिल होता है उतना ही पारितन्त्र अधिक स्थायी होता है। जटिल खाद्य जाल में किसी भी उपभोक्ता के लिए अधिक प्रकार के जीव (खाद्य ऊर्जा) उपभोग के लिए उपलब्ध होंगे। अत: एक जीव के किसी कारण से कम हो जाने या नष्ट हो जाने से भी खाद्य जाल की स्थिरता पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि उस स्थान की पूर्ति उसी स्तर का कोई दूसरा जीव कर देगा अर्थात् अधिक संख्या मेंवैकल्पिक पथहोने पर पारिस्थितिक तन्त्र अधिक स्थिर तथा सन्तुलित रहता है।

असन्तुलन की दशा किसी भीपोषण स्तर(trophic level) में विनष्टीकरण की क्रिया से होती है। यह असन्तुलन चाहे तो उस स्तर के जीवों की स्वयं कमी के कारण, कम वैकल्पिक पथ होने पर अथवाप्रदूषण(pollution) के कारण हो सकता है। तालाबीय पारितन्त्र में जल प्रदूषण अनेक प्रकार के कीटनाशक, अपतृणनाशक आदि के कारण हो सकता है अथवा औद्योगिक संस्थानों से निकले अनावश्यक पदार्थों से भी हो सकता है, इनमें तापीय प्रदूषण भी सम्मिलित है। इनसे जलीय जीव-जन्तु मरने लगते हैं। सबसे अधिक प्रभाव छोटे जीवों पर होता है इससे प्रारम्भिक पोषक स्तरों के नष्ट होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

प्रश्न 2.
अनुक्रमण (यथाक्रम) से आप क्या समझते हैं ? तालाब में अनुक्रमण की क्रिया का वर्णन कीजिए।(2009, 11)
या
तालाब में होने वाले अनुक्रमण का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।(2015)
उत्तर
अनुक्रम या अनुक्रमण
जिस प्रकार किसी पारितन्त्र केघटकों(components) मेंजैवीय घटेकों(biotic components) का अत्यधिक महत्त्व है, उसी प्रकार किसी पारितन्त्र के निर्माण के समय उसके जैव समुदायों में पादप समुदाय का विशेष महत्त्व है। पादप समुदाय की उत्पत्ति तथा उसका परिवर्द्धन ही अन्य जैव समुदायों की दिशा भी निर्धारित करता है।

किसी स्थान को यदि वनस्पति विहीन कर दिया जाए तथा उसे मानव व मानव द्वारा पाले जाने वाले पशुओं की क्रियाओं से भी विलग कर दिया जाए तो धीरे-धीरे लेकिन एक निश्चित क्रम में उस स्थान पर वनस्पति उगनी प्रारम्भ होगी। कालान्तर में, एक स्थिति ऐसी आएगी जब वहाँ पर अपेक्षाकृत अधिकस्थायी समुदाय(stable community) निर्मित हो जाएगा।

इस प्रकार किसी नग्न स्थान पर शनैः-शनैः पादप समुदाय के जमाव को पादप अनुक्रम या अनुक्रमण (plant succession) कहते हैं। अनुक्रमण की विचारधारा को सर्वप्रथम वार्मिंग (Warming 1899) ने प्रस्तुत किया तथाक्लीमेण्ट्स(Clements, 1907 – 1916) ने इसे पोषित किया। क्लीमेण्ट्स ने इसे प्राकृतिक प्रक्रम कहा जिसमें पादप समुदायों के विभिन्न समूहों द्वारा क्रमिक रूप से एक ही क्षेत्र काउपनिवेशन(colonization) सम्मिलित है।

सामान्यतः समुदाय स्थायी इकाई नहीं है, बल्कि यह एकगतिक(dynamic) इकाई है जिसमें सन्तुलन के कारण आत्मनिर्भरता बनी रहती है। पर्यावरण में परिवर्तन होने से समुदाय की पादप जातियों में भी परिवर्तन आते हैं। परिवर्तन के प्रमुख कारणों में जलवायवीय, भू-आकृतिक अथवा जैविक परिवर्तन हो सकते हैं। जैव समुदाय की विभिन्न जातियों की क्रिया-प्रतिक्रियाएँ इन जैविक परिवर्तनों का आधार होती हैं। कालान्तर में उपर्युक्त प्रकार के परिवर्तनों के कारण समुदाय की संरचना में शनैः-शनैः परिवर्तन होते जाते हैं। इस प्रकार प्रमुख जातियाँ अन्य जातियों द्वारा प्रतिस्थापित होती जाती हैं। प्रतिस्थापन की ये प्रक्रियाएँ तब तक होती रहती हैं जब तक कि समुदाय की जातियों तथा पर्यावरण में परस्पर अपेक्षाकृत अधिक स्थायी सन्तुलन स्थापित नहीं हो जाता। इस प्रकार कीसमय के साथ समुदाय में परिवर्तन की प्रक्रियाकोपारिस्थितिक अनुक्रमण(ecological succession) कहा गया है।ओडमने इस प्रक्रिया कोपारितन्त्र का परिवर्द्धनमाना है।

स्पष्ट है, अनुक्रमण या परिवर्द्धन एक निर्धारित दिशा में बढ़ने वाली व्यवस्थित प्रक्रिया है। जिसमें समयान्तर के बाद जाति संरचना में परिवर्तन होता जाता है। इस प्रकार के परिवर्तन मेंऊसर क्षेत्र(barren area) में, प्रारम्भिक रूप में, स्थापित समुदायपुरोगामी समुदाय(pioneer community) तथा अन्तिम समुदाय कोचरम समुदाय(climax community) कहा जाता है। अनुक्रम की इस प्रक्रिया के मध्य में चूंकिक्रमकी समुदायों(seral communities) का प्रतिस्थापन होता है अतः सम्पूर्ण प्रक्रिया या अनुक्रमक्रमक(sere) कहलाता है।

इस परिवर्तन का मूल कारण समुदाय के सदस्यों द्वारा पर्यावरण में परिवर्तन उत्पन्न करना है। इससे यह भी स्पष्ट है कि अनुक्रमण समुदाय द्वारा ही नियन्त्रित होता है और भौतिक वातावरण इसमें परिवर्तन की दर, इसके प्रतिरूप तथा परिवर्द्धन की सीमा को निर्धारित करता है। उपर्युक्त के परिणाम में समुदाय एक स्थायीपारितन्त्र(ecosystem) बन जाता है।
अनुक्रम निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं –

  1. प्राथमिक अनुक्रम(Primary Succession) – यह अनुक्रम उन नग्न स्थानों पर आरम्भ होता है जहाँ पर पहले किसी भी प्रकार की वनस्पति नहीं पाई जाती है।
  2. द्वितीयक अनुक्रम(Secondary Succession) – यह अनुक्रम उन स्थानों पर पाया जाता है। जहाँ पर पहले पूर्ण विकसित वनस्पति थी किन्तु बाद में किसी कारण से वह नष्ट हो गई।

अनुक्रमण की प्रक्रिया
क्लीमेण्ट्स ने सन् 1916 में अनुक्रमण की निम्नलिखित अवस्थाओं का उल्लेख किया-

जलक्रमक : खाली तालाब की अनुक्रम
जलक्रमक की विभिन्न अवस्थाओं को समझने के लिए कोई झील या सरोवर एक आदर्श स्थान हो सकता है जहाँ जल मध्य में तो गहरा होता है तथा किनारों की ओर क्रमशः छिछला (कम गहरा) होता चला जाता है। ऐसी परिस्थिति में जिन विभिन्न अवस्थाओं से चरम पादप समुदाय का विकास होता है, वे इस प्रकार हैं –
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem 3Q.2.1

1.प्लवक अवस्था(Plankton Stage) – जल की गहराई में पुरोगामी के रूप मेंपादप प्लवक(phytoplankton) तथाजन्तु प्लवक(zooplanktons) उत्पन्न होते हैं। ये मुख्यत: एककोशिकीय अथवानिवही(colonial) और समूह में रहने वाले हरे शैवाल, जीवाणु तथा अन्य सूक्ष्म जीव हैं जो जल की ऊपरी सतह पर तैरते रहते हैं। जल की गहराई में पादप जीवन
अनुपस्थित होता है।

2.निमग्न अवस्था(Submerged Stage) – 10 फीट या इससे कम गहरे पानी वाले झील क्षेत्र में पूर्णत: निमग्न पौधे तथा मुक्त प्लावी पौधे पाये जाते हैं। इनकी जड़े प्रायः नीचे कीचड़ में जमी रहती हैं। उदाहरण के लिए-मिरियोफिलम(Myriophyllum),इलोडीया(Elodea),पोटेमोजेटॉन(Potamogeton),हाइड्रिला(Hydrilla),वैलिसनेरिया(Vallisneria),यूट्रीक्युलरिया(Utricularia) आदि। इन पौधों के साथ शैवाल गुच्छ चिपके रहते हैं। किनारों से अपरदित मिट्टी के कण, जो गॅदले पानी में तैरते रहते हैं, इन पौधों द्वारा रोक लिये जाते हैं। इन पौधों की मृत्यु पर इनके अवशेष ह्युमस में परिवर्तित होकर तल में बैठ जाते हैं। इस प्रकार झीलों के तल में लगातार मिट्टी, कीचड़ ह्यूमस के जमा होते रहने से प्रतिवर्ष झील उत्तरोत्तर कम गहरी होती चली जाती है। गहराई कम होने के कारण अब यह स्थान निमग्न पादपों के लिए कम अनुकूल तथा नये पादपों के लिए अधिक अनुकूल हो जाता है।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem 3Q.2.2

3.जड़ित प्लावी अवस्था(Rooted Floating Stage) – उपर्युक्त वर्णित अनेक कारणों से जल कम गहरा हो जाता है तथा 5 से 10 फीट गहरे पानी में प्लावी जातियाँ उगने लगती हैं। इन पौधों की जड़े तल में जमी रहती हैं परन्तु स्तम्भ अथवा पर्णवृन्त लगभग पानी के ऊपर पहुँच जाते हैं। तथा इनकी पत्तियाँ जल सतह पर तैरती रहती हैं। इनमेंनिम्फिया(Nymphaea),नीलम्बियम(Nelumbium),रैननकुलस(Ranunculus sp.),मोनोकोरिया(Monochoria),एपोनोजीटॉन(Aponogeton),ट्रापा(Trupa) प्रमुख हैं। इनके साथ ही कुछ मुक्त प्लावी जातियाँ; जैसे-लेम्ना(Lemng),वॉल्फिया(Wolfia),एजोली(Azolla),पिस्टिया(Pistiq),सालविनिया(Salvinia) इत्यादि निमग्न जातियों तक प्रकाश को नहीं पहुँचने देतीं जिसके फलस्वरूप निमग्न जातियाँ समाप्त हो जाती हैं। अपघटित कार्बनिक पदार्थ इत्यादि जमा होने से जल की गहराई कम होती जाती है। धीरे-धीरे प्लावी अवस्था भी समाप्त हो जाती है।

4.नइ अनूप अवस्था(Reed Swamp Stage) – जब जल की गहराई 2 से 3 फुट रह जाती है। तो नड़ अनूप या नरकुल अनूप जैसे पादप उगने लगते हैं। यहाँ परटाइफा(Typha),सेजिटेरिया(Sagittaria),सिरपस(Scirpus),फ़ैगमाइट्स(Phragmites),रैननकुलस(Ranunculus) जैसे पादपों के साथ ही अत्यन्त कम जल मेंरूमेक्स(Rumex),एक्लिप्टा(Eclipta), इत्यादि पादप उगने लगते हैं। ये पौधे तल में जड़ों द्वारा जमे रहते हैं। इनके कुछ भाग पानी में डूबे रहते हैं। यहाँ पर दलदल बनने लगता है तथा धीरे-धीरे मिट्टी के जमाव के कारण यह स्थान कच्छ (marshy) भूमि में परिवर्तित होने लगती है।

5.कच्छ शादुल अवस्था(Marsh Meadow Stage) – मिट्टी के जमाव के कारण यह क्षेत्र कच्छ भूमि (जहाँ केवल कुछ इंच पानी ही हो) में परिवर्तित हो चुका होता है। इस भूमि परपॉलीगोनम(Polygonum),पोदीनाकुल के पौधे, ऊँची घास की जातियाँ-साइप्रस(Cyperus),जंकस(Juncus),कैरेक्स(Carex),इलीयोकैरिस(Eleocharis) आदि आकर जमने लगती हैं। यह एकशाद्वल(meadow) बन जाता है। ये पौधे भूमि जल का अत्यधिक अवशोषण करते हैं और इसे वाष्पोत्सर्जन द्वारा उड़ा देते हैं। इनके मृत अवशेषों के संचयन से, जल वाहित मृदा तथा वातोढ़ मृदा को रोककर भूमि का निर्माण करते हैं। ऐसी भूमि जलीय पौधों के पनपने के लिए अनुकूल नहीं होती; अतः अब यहाँ पर क्षुप तथा वृक्षों के पनपने की परिस्थिति बनने लगती है।

6.काष्ठीय वनस्पति अवस्था(Woodland Stage) – आर्द्र जलवायु में इस अनुक्रमण का अगला चरण क्षुपों; जैसे-सैलिक्स(Salix),कॉर्नस(Cormus) आदि तथा वृक्षों; जैसे-एल्मस(Almus),पॉपुलस(Populus) आदि की जातियों का पनपेना है। इस अवस्था में ऐसे पौधे पुरोगामी होते हैं जो अपनी जड़ों के आस-पास आंशिक जलाक्रान्त परिस्थितियों को सहन कर सकें। ये काष्ठीय पौधे आवास को अपने पूर्ववर्ती पौधों के समान ही छाया डालकर तथा तीव्र वाष्पोत्सर्जन द्वारा प्रभावित करते हैं। ये काष्ठीय पादप वातोढ़ मिट्टी को रोककर तथा पादप अवशेषों के संचयन द्वारा मिट्टी को शुष्क बनाते हैं।

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem 3Q.2.3

7.चरम वन(Climax Forest) – जैसे- जैसे ह्यूमस का संचयन होता है जीवाणु तथा अन्य सूक्ष्म जीव भूमि में बढ़ने लगते हैं और भूमि अधिक उर्वर होती चली जाती है। इस भूमि पर नये समोभिद वृक्ष प्रकट होने लगते हैं। ये वृक्ष भूमि को अपनी तरह से प्रभावित करते हैं। इनकीछाया(tree canopy) के नीचे वायु आई रहती है और इनकी छाया के नीचे छायासह (shade tolerant) क्षुप व शाक पनपने लगते हैं।

इस प्रकार एक क्षेत्र, जो जलमग्न था, अन्त में वन में परिवर्तित हो जाता है। यहाँ पर यह याद रखना आवश्यक है कि चरम समुदाय की प्रकृति वहाँ उपस्थित जलवायु पर निर्भर करती है; जैसे-शीतोष्ण(temperate) जलवायु में मिश्रित वन बनते हैं जिसमेंएल्मस(Almus),एसर(Acer),क्वेरकस(Quercus) की जातियाँ होती हैं।उष्ण कटिबन्धीययाउपउष्ण कटिबन्धीय(subtropical) जलवायु में वर्षा की कमी या अधिकता के अनुसार वनों का विकास होता है; जैसे–कम वर्षा में पर्णपाती वन या मानसूनी वन, अधिक वर्षा में उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन आदि। वन समुदाय का विकास तभी होगा जब जलवायु आर्द्र होगी। शुष्क जलवायु मेंचरम समुदाय(climax community)घास स्थल(grass land) अथवा कोई अन्य शुष्कस्थली समुदाय हो सकता है।

प्रश्न 3.
नाइट्रोजन चक्र का वर्णन कीजिए और नाइट्रोजन स्थिरीकरण के महत्त्व को समझाइए।(2010, 11)
या
प्रकृति में नाइट्रोजन चक्र का वर्णन कीजिए। पौधों में इसके महत्त्व की व्याख्या कीजिए।(2009, 12)
या
केवल रेखीय चित्र की सहायता से नाइट्रोजन चक्र का प्रदर्शन कीजिए।(2015, 18)
या
नाइट्रीकरण का वर्णन कीजिए।(2015)
या
जीवाणु तथा नील-हरित शैवाल द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।(2017)
या
दलहनी पौधों की जड़ में पाये जाने वाले जीवाणु का नाम लिखिए। ये पौधे जमीन की उर्वरा शक्ति को कैसे बढ़ाते हैं?(2018)
उत्तर
नाइट्रोजन तथा वायुमण्डल में इसका भौतिक चक्र
वायुमण्डल की गैसों में सबसे अधिक, लगभग 78 प्रतिशत मुक्त नाइट्रोजन होती है, किन्तु कुछ जीवाणु तथा नीली-हरी शैवालों को छोड़कर अन्य जीव इसका सीधे उपयोग करने में अक्षम हैं। इस मुक्त नाइट्रोजन का केवल कुछ प्रतिशत भौतिक व प्राकृतिक कारणों से ऑक्सीजन के साथ संयोग करके ऑक्साइड्स (NO2, NO आदि) बना लेता है। इस क्रिया में तड़ित क्रिया सम्मिलित है। ये ऑक्साइड्स वर्षा के जल के साथ भूमि पर गिरकर खनिजों के साथ क्रिया करते हैं और उनके नाइट्रेट्स आदि बना लेते हैं।
N2+ O2→ 2NO (nitric oxide)
2NO + O2→ 2NO2(nitrogen peroxide)
2NO2+ H20 → HNO2+ HNO3(nitrous acid + nitric acid)
यह क्रिया बहुत ही कम मात्रा में नाइट्रोजन को स्थिर कर पाती है।

नाइट्रोजन चक्र में हरे पौधों का महत्त्व
हरे पौधे भूमि से जड़ों द्वारानाइट्रेट्स(nitrates =NO3) आदि खनिज लवणों को लेकर कार्बोहाइड्रेट के साथ मिलाते हैं तथा अपनी कोशिकाओं में प्रोटीन जैसे पदार्थों का निर्माण करते हैं। जन्तु किसी-न-किसी रूप में इसी प्रोटीन को भोजन के रूप में पौधों से प्राप्त करते हैं। जन्तुओं का जीवद्रव्य इन प्रोटीन्स को अमीनो अम्लों के रूप में ग्रहण कर, जन्तु प्रोटीन्स के रूप में आत्मसात कर लेता है। जन्तुओं के शरीर में अधिक मात्रा में बने अमीनो अम्लों को वे अमोनिया, यूरिया, यूरिक अम्ल आदि के रूप में बदलकर, उत्सर्जी पदार्थों के रूप में शरीर से बाहर निकाल देते हैं। पौधों तथा जन्तुओं के मृत होने पर भी ये नाइट्रोजन गुक्त यौगिक भूमि में आ जाते हैं।

सूक्ष्म जीवों का नाइट्रोजन स्थिरीकरण में महत्त्व
जीवाणुओं का नाइट्रोजन चक्र में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण योगदान है। मिट्टी में स्वतन्त्र रूप से रहने वाले कुछ जीवाणु वायुमण्डल की स्वतन्त्र नाइट्रोजन स्थिर करके यौगिकों में बदल देते हैं: जैसे-एजोटोबैक्टर(Azotobacter),क्लॉस्ट्रीडियम(Clostridium) आदि। इसके अतिरिक्त लेग्यूमिनोसी (दलहनी) कुल के पौधों की जड़ों पर छोटी-छोटी गुलिकाओं में रहने वाले जीवाणुराइजोबियम लेग्यूमिनोसैरम(Rhizobium leguminosdrum) वायुमण्डल की स्वतन्त्र नाइट्रोजन को नाइट्रेट में बदल देते हैं। जीवाणुओं द्वारा छोड़े गये नाइट्रोजन के ऐसे घुलनशील यौगिक पौधों द्वारा ग्रहण किये जाते हैं।

नील- हरित शैवाल जैसे नोस्टॉक, ऐनाबीना, रिबुलेरिया, ग्लीयोट्राइकिया, ऑलोसिरा आदि भी वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं।

अमोनीकरण एवं नाइट्रीकरण(Ammonification and Nitrification) – कुछ जीवाणु नाइट्रोजनी कार्बनिक पदार्थों को तोड़कर उपस्थित नाइट्रोजन को अमोनिया में बदल देते हैं। ऐसे जीवाणु अपघटक कहलाते हैं। अमोनिया जैसे पदार्थ हानिकारक हैं। कुछ जीवाणु, जैसे-नाइट्रोसोमोनासे(Nitrosomonas) अमोनिया को नाइट्राइट में औरनाइट्रोबैक्टर(Nitrobacter) नाइट्राइट को नाइट्रेट में बदल देते हैं। इन जीवाणुओं कोनाइट्रीकारक जीवाणु(nitrifying bacteria) कहते हैं।

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem 3Q.3.1

वायुमण्डल में नाइट्रोजन का कुछ अंश तड़ित विद्युत द्वारा ऑक्साइड्स में बदल जाता है जो बाद में जल के साथ मिलकरनाइट्रसनाइट्रिक अम्ल(nitrous and nitric acid) बना लेता है। ये अम्ल भूमि में खनिजों के साथ मिलकर नाइट्रेट बनाते हैं, जिन्हें पौधे अवशोषित करते हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 14 Ecosystem 3Q.3.2

विनाइट्रीकरण(Denitrification) – कुछ अन्य प्रकार के जीवाणु मिट्टी में मिलने वालेनाइट्रेट्स(nitrates) को तोड़कर नाइट्रोजन को वायु में मुक्त कर देते हैं। ऐसे जीवाणुविनाइट्रीकारी जीवाणु(denitrifying bacteria) कहलाते हैं तथा ये प्राय: अनॉक्सी अवस्थाओं में पाये जाते हैं; जैसे-थायोबैसिलस(Thiobacillus) वमाइक्रोकॉकस(Micrococcus) की जातियाँ।
नाइट्रोजन का यह चक्र पर्यावरण में निरन्तर चलता रहता है और मृदा की उर्वरा शक्ति क्षीण नहीं होने पाती है।

नाइट्रोजन चक्र का महत्त्व
पृथ्वी पर प्रोटीन के बिना जीवों का अस्तित्व नहीं समझा जा सकता। ये जीवद्रव्य के अभिन्न अंग हैं। पौधे जड़ों से नाइट्रेट्स जैसे खनिज लवण अवशोषित कर अपनी कोशिकाओं में प्रोटीन का निर्माण करते हैं। जीव-जन्तु पौधों को खाते हैं। इस प्रकार जीवन को बनाये रखने तथा जीवद्रव्य की वृद्धि करने के लिए नाइट्रोजन चक्र का होना नितान्त आवश्यक है।
नाइट्रोजन चक्र के अन्य प्रमुख महत्त्व इस प्रकार हैं –

अत:नाइट्रोजन चक्रप्रकृति का अत्यन्त आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण चक्र है।

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