ब्लैकहोल क्या है (ब्लैक होल कहाँ है, कैसे बना, कितना बड़ा है, ब्लैक होल की फोटो, निर्माण, लेटेस्ट जानकारी, ब्लैकहोल की तस्वीर, ब्लैकहोल का नाम, रंग, कैसे दिखता है, ) Black Hole Kya Hai (black hole image, history, theory, latest news, black hole size, color, black hole milky way, black hole sound, Sagittarius A* Black Hole)
पृथ्वी ही हमारे सौर मंडल में एक ऐसा ग्रह है, जिस पर अभी के समय में जीवन संभव है। पृथ्वी को पूरी ऊर्जा का स्रोत सूर्य है। वैज्ञानिकों के द्वारा ऐसा भी कहा जाता है कि कभी मंगल ग्रह पर भी जीवन था परंतु अब नही है। सभी जीवित प्राणियों को एक न एक दिन खत्म होना ही है।
यदि वह स्वयं के बनाए कारणों से नहीं खत्म होता है, तो प्रकृति भी इस काम में आगे बढ़कर आती है, और सुनामी, भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाएं आती है। इसके अलावा कई कई बार सूर्य भी खत्म हो जाता है। दुनिया में कई सारे सौर मंडल है और साथ ही में कई सारे सूर्य।
कई सौर मंडलों के कई सूर्य होते है, लेकिन हमारे सौर मंडल में एक ही सूर्य है। सभी सूर्य तारे ही होते है, जो अपनी सतह पर कई सारी गैसों के जलने के कारण लागतार रोशनी देते रहते है। सूर्य खुद के खत्म हो जाने पर ब्लैकहोल का रूप ले लेते है। ऐसा कहा जाता है, कि जो भी वस्तु एक बार ब्लैकहोल के अंदर चली जाती है, वह कभी बाहर नहीं आ पाती, यहां तक रोशनी भी ब्लैकहोल से बाहर नही आ पाती है। तो इसलिए हम आपके लिए आज के इस आर्टिकल में ले है ब्लैकहोल से जुड़ी हुई सभी जानकारी वो भी हिंदी में, तो इस आर्टिकल तो अंत तक ध्यानपूर्वक जरूर पढ़े।
खोज का विषय | ब्लैकहोल |
ब्लैकहोल का आकार | सूर्य से 100 गुना बड़े |
ब्लैकहोल के प्रकार | 2 |
सबसे बड़े ब्लैकहोल का नाम | कृष्ण विवर |
ब्लैकहोल की कुल संख्या | 40 अरब |
क्या पृथ्वी ब्लैकहोल बनेगी | असंभव |
ब्लैकहोल को हम अंतरिक्ष का एक ऐसा हिस्सा कह सकते है, जहां पर गुरुत्वाकर्षण बल इतना ज्यादा अधिक होता है कि वहां से रोशनी भी बाहर नहीं निकल पाती है। ब्लैकहोल को इस नाम इसलिए जाना जाता है क्योंकि इसके पास का सारा इलाका पूरी तरह काला होता है।
आसपास के इलाके के पूरी तरह से काले होने का कारण यह है कि इसके गुरुत्वाकर्षण बल के कारण यह आपने आसपास की पूरी रोशनी को अपने अंदर सोख लेता है और कुछ भी रोशनी बाहर नहीं फेंकता है। रोशनी की एक किरण भी इसके अंदर से बाहर निकल नहीं पाती है।
ब्लैकहोल का निर्माण तभी होता है जब कोई बहुत बड़ा तारा जैसे कोई सूर्य सुपरनोवा (Supernova) बन कर अंतरिक्ष में बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा फेककर खुद में ही सिमट जाता है। आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है, हमारे सूर्य को ब्लैकहोल बनने के लिए कम से कम अभी के मुकाबले 20 गुना और वजन चाहिए होगा।
ब्लैकहोल तो पूरी तरह से काला होता है और उसके अंदर रोशनी भी बाहर नहीं आ पाती है, तो ब्लैकहोल का पता कैसे चलता है? यह सवाल आपके मन में भी उठ रहा होगा। इसका जवाब बहुत ही आसान है, जोकि हम नीचे आपको बता रहे है।
चूंकि ब्लैकहोल में गुरुत्वाकर्षण बल बहुत ही अधिक होता है, तो इसके आसपास कई तारे चक्कर लगाते दिख जाते है और जब कई सारे तारे अंतरिक्ष में किसी एक खाली जगह का चक्कर लगाते रहते है, तो यह पता चल जाता है कि वहां पर गुरुत्वाकर्षण बल बहुत ही ज्यादा है, और उस जगह पर ब्लैकहोल है। तभी वे सारे तारे उसकी तरफ खिंचे चले जा रहे है।
ब्लैकहोल में गुरुत्वाकर्षण बल बहुत ही अधिक होता है। तो इस वजह से जब ब्लैकहोल बनता है तो वह अपने तारे से बहुत ही अधिक मात्रा में ऊर्जा खींचता है। ब्लैकहोल जो ऊर्जा खरीदता है वह तो हमे न अंतरिक्ष में दिखती है, न ही पृथ्वी है।
चूंकि ब्लैकहोल में गुरुत्वाकर्षण बल बहुत अधिक होने के कारण वह ऊर्जा को बहुत ही ज्यादा तेजी से अपने अंदर सोखता है और उसी वजह ऊर्जा में मौजूद बहुत से छोटे छोटे अणु आपस में टकराकर जलने लगते है और रोशनी छोड़ते है। यह रोशनी एक भंवर की तरह ब्लैकहोल में जाती है।
यह रोशनी एक्स रे किरणे के द्वारा ही दिखती है। वैज्ञानिक जब बहुत बड़ी बड़ी दूरबीन के जरिए अंतरिक्ष में खोज करते रहते है और जब उन्हें वह रोशनी का भंवर एक्स रे फिल्टर के जरिए उसी दूरबीन से अंतरिक्ष में कही पर दिख जाता है, तो वे समझ जाते है कि वहां पर ब्लैकहोल है।
ब्लैकहोल के बारे अभी तक को सबसे लेटेस्ट जानकारी 12 मई को यह आई है कि हमारी आकाशगंगा जिसको हम मिल्की वे आकाशगंगा के नाम से जानते है, इसके सबसे बड़े ब्लैकहोल की सबसे पहली तस्वीर जारी की गई है। यह ब्लैकहोल हमारी मिल्की वे आकाशगंगा के एकदम बीचों बीच है। इस ब्लैकहोल का नाम Sagittarius A* या Sgr A* रखा गया है।
यह ब्लैकहोल हमारी पृथ्वी से लगभग 27,000 लाइट ईयर यानी प्रकाश वर्ष दूर है। 1 प्रकाश वर्ष से मतलब है कि जितनी दूरी एक प्रकाश की एक किरण एक वर्ष में तय करेगी। इतनी दूरी की वजह पृथ्वी से हमने यह ब्लैकहोल बहुत ही छोटा लग रहा है लेकिन वास्तव में यह काफी बड़ा है। इतनी दूरी होने की वजह से इस ब्लैकहोल का हम पर कोई खतरा नहीं है।
इस ब्लैकहोल को फोटो में कैद करना बहुत ही मुश्किल था क्योंकि इसकी रफ्तार बहुत ही ज्यादा तेज थी और साथ ही में यह ब्लैकहोल अपनी स्तिथि को भी बहुत तेजी से बदल रहा था। वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि अन्य ब्लैकहोल्स की तुलना यह ब्लैकहोल काफी शांत है, बावजूद इसके कि इसके आसपास काफी खतरनाक गैसेस है।
किसी भी ब्लैकहोल के आकार के बारे में उसके Event Horizon के व्यास के द्वारा पता चलता है। वैज्ञानिकों ने ये भी बताया इस ब्लैकहोल के इवेंट होराइजन का diameter यानी व्यास लगभग 2.4 करोड़ किलो मीटर है। आप इसी से अंदाजा लगा सकते है कि यह ब्लैकहोल कितना बड़ा है।
इस तस्वीर को जारी करने के लिए एक वैश्विक अनुसंधान टीम, The Event Horizon Telescope (EHT) Collaboration नाम की टीम ने दुनिया भर की कई सारी रेडियो दूरबीनों की मदद ली। इस अनुसंधान से इन ब्लैकहोल्स के काम करने के बारे में काफी कुछ पता चला और साथ में यह भी पता चला कि ज्यादातर आकाश गंगाओं में ब्लैकहोल बीच में ही होते है।
जैसे की ऊपर लिखी गई हेडिंग से आपके मन में भी ये सवाल उठ रहा होगा, कि जब ब्लैकहोल में से कभी रोशनी भी बाहर निकल नहीं पाती, तो ब्लैकहोल की कलर तस्वीर कैसे जारी की गई? तो इसका जवाब ये है कि फोटो में जो काले रंग का घेरा है, उसको ब्लैकहोल और उसकी सीमा (जो की उसके आसपास स्थित चमकने वाले तत्वों से बनाया गया है) की परछाई कहा जा सकता है।
हालांकि फोटो में जो रंग दिखाया गया है, वो उसके आसपास मौजूद गैसों का असली रंग नही है, बल्कि वो रंग EHT यानी इवेंट होराइजन टेलीस्कोप टीम के वैज्ञानिकों के द्वारा चुना गया रंग है, जिससे इस उत्सर्जन की चमक को दिखाया जा सके।
उत्तर: जब कोई बहुत बड़ा तारा अपने आप में ही ब्लास्ट होकर समाहित हो जाता है।
उत्तर: ब्लैकहोल के रंगो को इवेंट होराइजन टेलीस्कोप टीम के वैज्ञानिकों के द्वारा उस ब्लैकहोल को दर्शाने के लिए दिखाया जाता है।
उत्तर: Sagittarius A* Black Hole
उत्तर: मिल्की वे आकाशगंगा में पाए गए ब्लैकहोल की व्यास लगभग 2.6 करोड़ किलो मीटर है।
उत्तर: The Event Horizon Telescope (EHT) Collaboration नाम की टीम के द्वारा।
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