जीवन परिचय-धर्मवीर भारती का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में सन 1926 में हुआ था। इनके बचपन का कुछ समय आजमगढ़ व मऊनाथ भंजन में बीता। इनके पिता की मृत्यु के बाद परिवार को भयानक आर्थिक संकट से गुजरना पड़ा। इनका भरण-पोषण इनके मामा अभयकृष्ण ने किया। 1942 ई० में इन्होंने इंटर कॉलेज कायस्थ पाठशाला से इंटरमीडिएट किया। 1943 ई० में इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से बी०ए० पास की तथा 1947 में (इन्होंने) एम०ए० (हिंदी) उत्तीर्ण की।
तत्पश्चात इन्होंने डॉ० धीरेंद्र वर्मा के निर्देशन में ‘सिद्ध-साहित्य’ पर शोधकार्य किया। इन्होंने ‘अभ्युदय’ व ‘संगम’ पत्र में कार्य किया। बाद में ये प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्राध्यापक के पद पर कार्य करने लगे। 1960 ई० में नौकरी छोड़कर ‘धर्मयुग’ पत्रिका का संपादन किया। ‘दूसरा सप्तक’ में इनका स्थान विशिष्ट था। इन्होंने कवि, उपन्यासकार, कहानीकार, पत्रकार तथा आलोचक के रूप में हिंदी जगत को अमूल्य रचनाएँ दीं। इन्हें पद्मश्री, व्यास सम्मान व अन्य अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया। इन्होंने इंग्लैंड, जर्मनी, थाईलैंड, इंडोनेशिया आदि देशों की यात्राएँ कीं। 1997 ई० में इनका देहांत हो गया।
रचनाएँ – इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
कविता-संग्रह – कनुप्रिया, सात-गीत वर्ष, ठडा लोहा। कहानी-संग्रह-बंद गली का आखिरी मकान, मुर्दो का गाँव, चाँद और टूटे हुए लोग। उपन्यास-सूरज का सातवाँ घोड़ा, गुनाहों का देवता
गीतिनाट्य – अंधा युग।
निबंध-संग्रह – पश्यंती, कहनी-अनकहनी, ठेले पर हिमालय।
आलोचना – प्रगतिवाद : एक समीक्षा, मानव-मूल्य और साहित्य।
एकांकी-संग्रह – नदी प्यासी थी।
साहित्यिक विशेषताएँ – धर्मवीर भारती के लेखन की खासियत यह है कि हर उम्र और हर वर्ग के पाठकों के बीच इनकी अलग-अलग रचनाएँ लोकप्रिय हैं। ये मूल रूप से व्यक्ति स्वातंत्र्य, मानवीय संबंध एवं रोमानी चेतना के रचनाकार हैं। तमाम सामाजिकता व उत्तरदायित्वों के बावजूद इनकी रचनाओं में व्यक्ति की स्वतंत्रता ही सर्वोपरि है। इनकी रचनाओं में रुमानियत संगीत में लय की तरह मौजूद है। इनकी कविताएँ कहानियाँ उपन्यास, निबंध, गीतिनाट्य व रिपोर्ताज हिंदी साहित्य की उपलब्धियाँ हैं।
इनका लोकप्रिय उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ एक सरस और भावप्रवण प्रेम-कथा है। दूसरे लोकप्रिय उपन्यास ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ पर हिंदी फिल्म भी बन चुकी है। इस उपन्यास में प्रेम को केंद्र में रखकर निम्न मध्यवर्ग की हताशा, आर्थिक संघर्ष, नैतिक विचलन और अनाचार को चित्रित किया गया है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद गिरते हुए जीवन-मूल्य, अनास्था, मोहभंग, विश्व-युद्धों से उपजा हुआ डर और अमानवीयता की अभिव्यक्ति ‘अंधा युग’ में हुई है। ‘अंधा युग’ गीति-साहित्य के श्रेष्ठ गीतिनाट्यों में है। मानव-मूल्य और साहित्य पुस्तक समाज-सापेक्षिता को साहित्य के अनिवार्य मूल्य के रूप में विवेचित करती है।
भाषा-शैली – भारती जी ने निबंध और रिपोर्ताज भी लिखे। इनके गद्य लेखन में सहजता व आत्मीयता है। बड़ी-से-बड़ी बात को बातचीत की शैली में कहते हैं और सीधे पाठकों के मन को छू लेते हैं। इन्होंने हिंदी साप्ताहिक पत्रिका, धर्मयुग, के संपादक रहते हुए हिंदी पत्रकारिता को सजा-सँवारकर गंभीर पत्रकारिता का एक मानक बनाया। वस्तुत: धर्मवीर भारती का स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद के साहित्यकारों में प्रमुख स्थान है।
प्रतिपादय-‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण में लोक-प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का चित्रण किया गया है। विज्ञान का अपना तर्क है और विश्वास का अपना सामथ्र्य। इनकी सार्थकता के विषय में शिक्षित वर्ग असमंजस में है। लेखक ने इसी दुविधा को लेकर पानी के संदर्भ में प्रसंग रचा है। आषाढ़ का पहला पखवाड़ा बीत चुका है। ऐसे में खेती व अन्य कार्यों के लिए पानी न हो तो जीवन चुनौतियों का घर बन जाता है। यदि विज्ञान इन चुनौतियों का निराकरण नहीं कर पाता तो उत्सवधर्मी भारतीय समाज किसी-न-किसी जुगाड़ में लग जाता है, प्रपंच रचता है और हर कीमत पर जीवित रहने के लिए अशिक्षा तथा बेबसी के भीतर से उपाय और काट की खोज करता है।
सारांश -लेखक बताता है कि जब वर्षा की प्रतीक्षा करते-करते लोगों की हालत खराब हो जाती है तब गाँवों में नंग-धडंग किशोर शोर करते हुए कीचड़ में लोटते हुए गलियों में घूमते हैं। ये दस-बारह वर्ष की आयु के होते हैं तथा सिर्फ़ जाँघिया या लैंगोटी पहनकर ‘गंगा मैया की जय’ बोलकर गलियों में चल पड़ते हैं। जयकारा सुनते ही स्त्रियाँ व लड़कियाँ छज्जे व बारजों से झाँकने लगती हैं। इस मंडली को इंदर सेना या मेढक-मंडली कहते हैं। ये पुकार लगाते हैं –
काले मघा पानी द पानी दे, गुड़धानी दे
गगरी फूटी बैल पियासा काले मेधा पानी दे।
जब यह मंडली किसी घर के सामने रुककर ‘पानी’ की पुकार लगाती थी तो घरों में सहेजकर रखे पानी से इन बच्चों को सर से पैर तक तर कर दिया जाता था। ये भीगे बदन मिट्टी में लोट लगाते तथा कीचड़ में लथपथ हो जाते। यह वह समय होता था जब हर जगह लोग गरमी में भुनकर त्राहि-त्राहि करने लगते थे; कुएँ सूखने लगते थे; नलों में बहुत कम पानी आता था, खेतों की मिट्टी में पपड़ी पड़कर जमीन फटने लगती थी। लू के कारण व्यक्ति बेहोश होने लगते थे।
पशु पानी की कमी से मरने लगते थे, लेकिन बारिश का कहीं नामोनिशान नहीं होता था। जब पूजा-पाठ आदि विफल हो जाती थी तो इंदर सेना अंतिम उपाय के तौर पर निकलती थी और इंद्र देवता से पानी की माँग करती थी। लेखक को यह समझ में नहीं आता था कि पानी की कमी के बावजूद लोग घरों में कठिनाई से इकट्ठा किए पानी को इन पर क्यों फेंकते थे। इस प्रकार के अंधविश्वासों से देश को बहुत नुकसान होता है। अगर यह सेना इंद्र की है तो वह खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेती? ऐसे पाखंडों के कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए तथा उनके गुलाम बन गए।
लेखक स्वयं मेढक-मंडली वालों की उमर का था। वह आर्यसमाजी था तथा कुमार-सुधार सभा का उपमंत्री था। उसमें समाजसुधार का जोश ज्यादा था। उसे सबसे ज्यादा मुश्किल अपनी जीजी से थी जो उम्र में उसकी माँ से बड़ी थीं। वे सभी रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों को लेखक के हाथों पूरा करवाती थीं। जिन अंधविश्वासों को लेखक समाप्त करना चाहता था। वे ये सब कार्य लेखक को पुण्य मिलने के लिए करवाती थीं। जीजी लेखक से इंदर सेना पर पानी फेंकवाने का काम करवाना चाहती थीं। उसने साफ़ मना कर दिया। जीजी ने काँपते हाथों व डगमगाते पाँवों से इंदर सेना पर पानी फेंका। लेखक जीजी से मुँह फुलाए रहा। शाम को उसने जीजी की दी हुई लड्डू-मठरी भी नहीं खाई। पहले उन्होंने गुस्सा दिखाया, फिर उसे गोद में लेकर समझाया। उन्होंने कहा कि यह अंधविश्वास नहीं है।
यदि हम पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे। यह पानी की बरबादी नहीं है। यह पानी का अध्र्य है। दान में देने पर ही इच्छित वस्तु मिलती है। ऋषियों ने दान को महान बताया है। बिना त्याग के दान नहीं होता। करोड़पति दो-चार रुपये दान में दे दे तो वह त्याग नहीं होता। त्याग वह है जो अपनी जरूरत की चीज को जनकल्याण के लिए दे। ऐसे ही दान का फल मिलता है। लेखक जीजी के तकों के आगे पस्त हो गया। फिर भी वह अपनी जिद पर अड़ा रहा। जीजी ने फिर समझाया कि तू बहुत पढ़ गया है। वह अभी भी अनपढ़ है। किसान भी तीस-चालीस मन गेहूँ उगाने के लिए पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ बोता है। इसी तरह हम अपने घर का पानी इन पर फेंककर बुवाई करते हैं। इसी से शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं।
ऋषि-मुनियों ने भी यह कहा है कि पहले खुद दो, तभी देवता चौगुना करके लौटाएँगे। यह आदमी का आचरण है जिससे सबका आचरण बनता है। ‘यथा राजा तथा प्रजा’ सच है। गाँधी जी महाराज भी यही कहते हैं। लेखक कहता है कि यह बात पचास साल पुरानी होने के बावजूद आज भी उसके मन पर दर्ज है। अनेक संदर्भों में ये बातें मन को कचोटती हैं कि हम देश के लिए क्या करते हैं? हर क्षेत्र में माँगें बड़ी-बड़ी हैं, पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। आज स्वार्थ एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम भ्रष्टाचार की बातें करते हैं, परंतु खुद अपनी जाँच नहीं करते। काले मेघ उमड़ते हैं, पानी बरसता है, परंतु गगरी फूटी की फूटी रह जाती है। बैल प्यासे ही रह जाते हैं। यह स्थिति कब बदलेगी, यह कोई नहीं जानता?
शब्दार्थ
इंदर सेना – इंद्र के सिपाही। काँदी – कीचड़। अगवानी – स्वागत। जाँधया – कच्छा। जयकारा – नारा, उद्घोष। छज्जा – दीवार से बाहर निकला हुआ छत का भाग। बारजा –छत पर मुँडेर के साथ वाली जगह। समवेत – सामूहिक। गुड़धानी – गुड में मिलाकर बनाया गया लड्डू। धकियाते – धक्का देते। दुमहले – दो मंजिलों वाला। जेठ – जून का महीना। सहेजकर – सँभालकर। तर करना – अच्छी तरह भिगो देना। लोट लगाना – जमीन में लेटना। लथपथ होना – पूरी तरह सराबोर हो जाना। बदन – शरीर। हाँक – जोर की आवाज। मंडली बाँधना – समूह बनाना। टेरना – आवाज लगाना। भुनना – जलना। त्राहिमाम – मुझे बचाओ। दसतया – भयंकर गरमी के दस दिन। पखवारा – पंद्रह दिन का समय। क्षितिज-धरती – आकाश के मिलन का काल्पनिक स्थान। खौलता हुआ – उबलता हुआ, बहुत गर्म।
कथा-विधान – धार्मिक कथाओं का आयोजन। निमम – कठोर। बरबादी – व्यर्थ में नष्ट करना।
याखड – ढोंग, दिखावा। संस्कार – आदत। कायम – स्थापित होना। तरकस में तीर रखना – हमले के लिए तैयार होना। प्राया बसना – प्रिय होना। खान – भंडार। सतिया –स्वास्तिक का निशान। यजीरी – गुड़ और गेहूँ के भुने आटे से बना भुरभुरा खाद्य। हरछठ – जन्माष्टमी के दो दिन पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला पर्व। कुल्ही – मिट्टी का छोटा बर्तन। भूजा – भुना हुआ अन्न। अरवा चावल – बिना उबाले धान से निकाला चावल। मुहफुलाना – नाराजगी व्यक्त करना। तमतमान – क्रोध में आना। अध्र्य – जल चढ़ाना।
ढकोसला – दिखावा। किला यस्त होना – हारना। जिदद यर अड़ना – अपनी बात पर अड़ जाना। मदरसा – स्कूल। आचरण – व्यवहार। दज होना – लिखा होना। संदर्भ –प्रसंग। कचोटना – बुरा लगना। चटखारे लेना – मजे लेना। दायरा – सीमा। अंग बनना – हिस्सा बनना। द्वमाझम – भरपूर, निरंतर।
निम्नलिखित गदयांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
प्रश्न 1:
उन लोगों के दो नाम थे-इंदर सेना या मेढक-मंडली। बिलकुल एक-दूसरे के विपरीत। जो लोग उनके नग्नस्वरूप शरीर, उनकी उछल-कूद, उनके शोर-शराबे और उनके कारण गली में होने वाले कीचड़ काँदो से चिढ़ते थे, वे उन्हें कहते थे मेढ़ क-मंडली। उनकी अगवानी गालियों से होती थी। वे होते थे दस-बारह बरस से सोलह-अठारह बरस के लड़के, साँवला नंगा बदन सिर्फ एक जाँधिया या कभी-कभी सिर्फ़ लैंगोटी। एक जगह इकट्ठे होते थे। पहला जयकारा लगता था, “बोल गंगा मैया की जय।” जयकारा सुनते ही लोग सावधान हो जाते थे। स्त्रियाँ और लड़कियाँ छज्जे, बारजे से झाँकने लगती थीं और यह विचित्र नंग-धडंग टोली उछलती-कूदती समवेत पुकार लगाती थी :
प्रश्न:
उत्तर –
प्रश्न 2:
सचमुच ऐसे दिन होते जब गली-मुहल्ला, गाँव-शहर हर जगह लोग गरमी में भुन-भुन कर त्राहिमाम कर रहे होते, जेठ के दसतपा बीतकर आषाढ़ का पहला पखवारा भी बीत चुका होता, पर क्षितिज पर कहीं बादल की रेख भी नहीं दिखती होती, कुएँ सूखने लगते, नलों में एक तो बहुत कम पानी आता और आता भी तो आधी रात को भी मानो खौलता हुआ पानी हो। शहरों की तुलना में गाँव में और भी हालत खराब होती थी। जहाँ जुताई होनी चाहिए वहाँ खेतों की मिट्टी सूख कर पत्थर हो जाती, फिर उसमें पपड़ी पड़कर जमीन फटने लगती, लूऐसी कि चलते-चलते आदमी आधे रास्ते में लू खाकर गिर पड़े। ढोर-ढंगर प्यास के मारे मरने लगते लेकिन बारिश का कहीं नाम निशान नहीं, ऐसे में पूजा-पाठ कथा-विधान सब करके लोग जब हार जाते तब अंतिम उपाय के रूप में निकलती यह इंदर सेना। वर्षा के बादलों के स्वामी हैं इंद्र और इंद्र की सेना टोली बाँधकर कीचड़ में लथपथ निकलती, पुकारते हुए मेघों को, पानी माँगते हुए प्यासे गलों और सूखे खेतों के लिए।
प्रश्न:
उत्तर –
प्रश्न 3:
पानी की आशा पर जैसे सारा जीवन आकर टिक गया हो। बस एक बात मेरे समझ में नहीं आती थी कि जब चारों ओर पानी की इतनी कमी है तो लोग घर में इतनी कठिनाई से इकट्ठा करके रखा हुआ पानी बाल्टी भर-भरकर इन पर क्यों फेंकते हैं। कैसी निर्मम बरबादी है पानी की। देश की कितनी क्षति होती है इस तरह के अंधविश्वासों से। कौन कहता है इन्हें इंद्र की सेना? अगर इंद्र महाराज से ये पानी दिलवा सकते हैं तो खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेते? क्यों मुहल्ले भर का पानी नष्ट करवाते घूमते हैं? नहीं यह सब पाखंड है। अंधविश्वास है। ऐसे ही अंधविश्वासों के कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए और गुलाम बन गए।
प्रश्न:
उत्तर –
प्रश्न 4:
मैं असल में था तो इन्हीं मेढक-मंडली वालों की उमर का, पर कुछ तो बचपन के आर्यसमाजी संस्कार थे और एक कुमारसुधार सभा कायम हुई थी उसका उपमंत्री बना दिया गया था-सी समाज-सुधार का जोश कुछ ज्यादा ही था। अंधविश्वासों के खिलाफ तो तरकस में तीर रखकर घूमता रहता था। मगर मुश्किल यह थी कि मुझे अपने बचपन में जिससे सबसे ज्यादा प्यार मिला वे थीं जीजी। यूँ मेरी रिश्ते में कोई नहीं थीं। उम्र में मेरी माँ से भी बड़ी थीं, पर अपने लड़के-बहू सबको छोड़कर उनके प्राण मुझी में बसते थे। और वे थीं उन तमाम रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों की खान जिन्हें कुमारसुधार सभा का यह उपमंत्री अंधविश्वास कहता था, और उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकना चाहता था। पर मुश्किल यह थी कि उनका कोई पूजा-विधान, कोई त्योहार अनुष्ठान मेरे बिना पूरा नहीं होता था।
प्रश्न:
उत्तर –
प्रश्न 5:
लेकिन इस बार मैंने साफ़ इन्कार कर दिया। नहीं फेंकना है मुझे बाल्टी भर-भरकर पानी इस गंदी मेढक-मंडली पर। जब जीजी बाल्टी भरकर पानी ले गईं-उनके बूढ़े पाँव डगमगा रहे थे, हाथ काँप रहे थे, तब भी मैं अलग मुँह फुलाए खड़ा रहा। शाम को उन्होंने लड्डू-मठरी खाने को दिए तो मैंने उन्हें हाथ से अलग खिसका दिया। मुँह फेरकर बैठ गया, जीजी से बोला भी नहीं। पहले वे भी तमतमाई, लेकिन ज्यादा देर तक उनसे गुस्सा नहीं रहा गया। पास आकर मेरा सर अपनी गोद में लेकर बोलीं, ‘देख भइया, रूठ मत। मेरी बात सुन। यह सब अंधविश्वास नहीं है। हम इन्हें पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे?” मैं कुछ नहीं बोला। फिर जीजी बोलीं, “तू इसे पानी की बरबादी समझता है पर यह बरबादी नहीं है। यह पानी का अध्र्य चढ़ाते हैं, जो चीज मनुष्य पाना चाहता है उसे पहले देगा नहीं तो पाएगा कैसे? इसीलिए ऋषि-मुनियों ने दान को सबसे ऊँचा स्थान दिया है।”
प्रश्न:
उत्तर –
प्रश्न 6:
फिर जीजी बोलीं, “देख तू तो अभी से पढ़-लिख गया है। मैंने तो गाँव के मदरसे का भी मुँह नहीं देखा। पर एक बात देखी है । कि अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से लेकर जमीन में क्यारियाँ बनाकर फेंक देता है। उसे बुवाई कहते हैं। यह जो सूखे के समय हम अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं वह भी बुवाई है। यह पानी गली में बोएँगे तो सारे शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं। सब ऋषि-मुनि कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना-अठगुना करके लौटाएँगे। भइया, यह तो हर आदमी का आचरण है, जिससे सबका आचरण बनता है। ‘यथा राजा तथा प्रजा’ सिर्फ यही सच नहीं है। सच यह भी है कि ‘यथा प्रजा तथा राजा’। यह तो गाँधी जी महाराज कहते हैं।” जीजी का एक लड़का राष्ट्रीय आंदोलन में पुलिस की लाठी खा चुका था, तब से जीजी गाँधी महाराज की बात अकसर करने लगी थीं।
प्रश्न:
उत्तर –
प्रश्न 7:
कभी-कभी कैसे-कैसे संदर्भों में ये बातें मन को कचोट जाती हैं, हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने स्तर पर अपने दायरे में हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे हैं? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति ?
प्रश्न:
उत्तर –
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
पाठ के साथ
प्रश्न 1:
लोगों ने लड़कों की टोली को मेढक – मंडली नाम किस आधार पर दिया ? यह टोली अपने आपको इंदर सेना कहकर क्यों बुलाटी थी ?
उत्तर –
लोग जब इन लड़कों की टोली को कीचड़ में धंसा देखते, उनके नंगे शरीर को, उनके शोर शराबे को तथा उनके कारण गली में होने वाली कीचड़ या गंदगी को देखते हैं तो वे इन्हें मेढक-मंडली कहते हैं। लेकिन बच्चों की यह टोली अपने आपको इंदर सेना कहती थी क्योंकि ये इंदर देवता को बुलाने के लिए लोगों के घर से पानी माँगते थे और नहाते थे। प्रत्येक बच्चा अपने आपको इंद्र कहता था इसलिए यह इंदर सेना थी।
प्रश्न 2:
जीजी ने इंदर सेना पर पानी फेंके जाने को किस तरह सही ठहराया?
उत्तर –
जीजी ने इंदर सेना पर पानी फेंके जाने के समर्थन में कई तर्क दिए जो निम्नलिखित हैं –
प्रश्न 3:
‘पानी दे ,गुड़धनी दे’ मेघों से पानी के साथ – साथ गुड़धनी की माँग क्यों की जा रहा है ?
उत्तर –
‘गुड़धानी’ शब्द का वैसे तो अर्थ होता है गुड़ और चने से बना लड्डू लेकिन यहाँ गुड़धानी से आशय ‘अनाज’ से है। बच्चे पानी की माँग तो करते ही हैं लेकिन वे इंदर से यह भी प्रार्थना करते हैं कि हमें खुब अनाज भी देना ताकि हम चैन । से खा पी सकें। केवल पानी देने से हमारा कल्याण नहीं होगा। खाने के लिए अन्न भी चाहिए। इसलिए हमें गुड़धानी भी दो।।
प्रश्न 4:
‘गगरी फूटी बैल पियासा’ से लेखक का क्या आशय हैं?
अथव
‘गागरी फूटी बैल पियासा’ कथन के पीछे छिपी वेदना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
इंदर सेना गाती है – काले मेधा पानी दे, गगरी फूटी बैल पियास। इस पंक्ति में ‘बैल’ को प्रमुखता दी गई है। ‘बैल’ ग्रामीण जीवन का अभिन्न हिस्सा है। कृषि-कार्य उसी पर आधारित है। वह खेतों को जोतकर अन्न उपजाता है। उसके प्यासे रहने से कृषि-कार्य बाधित होता है। कृषि ठीक ढंग से न हो मजवनासुव नाह ह सकता। इस कण दि सेना के इसा खेलतमें बैलो के प्यासा एनेक बात मुक्त हुई है।
प्रश्न 5:
इंदर सेना सबसे पहले गा मैया की जय क्यों बोलती हैं? नदियों का भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश में क्या महत्व हैं?
उत्तर –
गंगा माता के समान पवित्र और कल्याण करने वाली है। इसलिए बच्चे सबसे पहले गंगा मैया की जय बोलते हैं। भारतीय संस्कृति में नदी को माँ’ की तरह पूजने वाली बताया गया है। सभी नदियाँ हमारी माताएँ हैं। भारतीय सांस्कृतिक परिवेश में सभी नदियाँ पवित्रता और कल्याण की मूर्तियाँ हैं। ये हमारी जीवन की आधार हैं। इनके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। भारतीय समाज गंगा और अन्य नदियों को धारित्री बताकर उनकी पूजा करता है ताकि इनकी कृपा बनी रहे।
प्रश्न 6:
“रिश्तों में हमारी भावना – शक्ति का बँट जाना ,विश्वासों के जंगल में सत्य की राह खोजनी हमारी बुदिध की शक्ति को कमज़ोर करती है। ” पाठ में जीजी लेखक की भावना के संदर्ब में इस कथन के ओचित्य की समीक्षा कीजिए ?
उत्तर –
यह कथन पूर्णत: सत्य है। रिश्तों में हमारी भावना-शक्ति बँट जाती है। ऐसे में विश्वासों के जंगल में सत्य की राह खोजती हमारी बुद्धि की शक्ति कमजोर हो जाती है। इस पाठ में जीजी लेखक को बेपनाह स्नेह करती हैं। वे अनेक तरह की धार्मिक क्रियाएँ लेखक से करवाती थीं जिन्हें लेखक अंधविश्वास मानता था। इंदर सेना पर पानी फेंकने से मना करने पर जीजी अपने तर्क देती हैं। लेखक उन तकों की काट नहीं दे पाता, क्योंकि उन तकों के पीछे भावनात्मक लगाव था। भावना में जीवन के अनेक सत्य छिप जाते हैं तो कुछ प्रकट हो जाते हैं। बुद्धि शुष्क होती है तथा तर्क पर आधारित होती है। भावना में तर्क का स्थान नहीं होता, वहाँ विश्वास ही प्रमुख होता है। विश्वास खंडित होने पर रिश्ते समाप्त हो जाते हैं तथा समाज का ढाँचा बिखर जाता है।
पाठ के आस-पास
प्रश्न 1:
क्या इंदर सेना आज के युवा वय का प्रेरणा-स्रोत हो सकती हैं? क्या आपके स्मृति-कोश में ऐसा कोई अनुभव हैं जब युवाओं ने संगठित होकर समाजोपयोगी रचनात्मक कार्य किया हो? उल्लेख करें?
उत्तर –
इंदर सेना आज के युवा वर्ग के लिए प्रेरणा स्रोत बन सकती है। इंदर सेना के कार्यों को देखकर कोई भी युवा सामाजिक कार्य करने के लिए प्रेरित हो सकता है। हमारे मुहल्ले में भी पिछले दिनों कुछ युवाओं ने ऐसा ही कार्य किया। एक गरीब बुढ़िया बहुत बीमार हो गई। उसके इलाज पर दस हजार रुपए का खर्चा था। उस बुढ़िया के पास तो दो सौ रुपए मिले। देखते ही देखते लगभग 12,000 रुपए इकट्ठे हो गए। इस प्रकार बुढ़िया का इलाज हो गया। वह बीमारी से निजात पा चुकी थी।
प्रश्न 2:
तकनीकी विकास के दौर में भी भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है। कृषि-समाज में चैत्र, वैशाख सभी माह बहुत महत्वपूर्ण हैं, पर आषाढ़ का चढ़ना उनमें उल्लास क्यों भर देता हैं?
उत्तर –
तकनीकी विकास के दौर में भी भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है। कृषि-समाज में चैत्र, वैशाख सभी माह महत्वपूर्ण हैं, पर आषाढ़ का चढ़ना उनमें उल्लास भर देता है। इसका कारण यह है कि इस महीने में अधिकतर वर्षा होती है और किसानों को आशा की नयी किरण दिखने लगती है। जमीन की प्यास बुझती है तथा खेत बुवाई के लिए तैयार हो जाते हैं। खेतों में धान की रोपाई होती है तथा इस समय उल्लास छा जाता है। गरमी से राहत मिलने, पानी की कमी दूर होने, कृषि-कार्य के प्रारंभ होने आदि से गाँवों में प्रसन्नता का माहौल बन जाता है।
प्रश्न 3:
पाठ के संदर्भ में इसी पुस्तक में दी गई निराला की कविता ‘बदल राग’ पर विचार कीजिए और बताइए कि आपके जीवन में बादलों की क्या भूमिका है ?
उत्तर –
बादल हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं। बादलों के बिना जीवन की कल्पना करना असंभव है बादलों के आकाश में छा जाने से सभी का मन प्रसन्न हो जाता है। बादल यदि अपने निर्धारित समय पर बरसते हैं तो खूब धन धान्य होता है। खेत फसलों से लहलहा उठते हैं। अतः बादल हमारे जीवन के आधार हैं।
प्रश्न 4:
“त्याग तो वह होता…उसी का फल मिलता हैं।”अपने जीवन के किसी प्रसंग से इस सूक्ति की सार्थकता समझाइए।
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 5:
पानी का संकट वतमान स्थिति में भी बहुत गहराया हुआ हैं। इसी तरह के पयावरण से संबद्ध अन्य संकटों के बारे में लिखिए ।
उत्तर –
पानी के संकट की तरह अन्य कई संकट हमारे पर्यावरण में बने हुए हैं। खतरनाक गैसों का संकट, बाढ़ का संकट, सूखे का संकट, भूखमरी का संकट, खाद्यान्न का संकट आदि संकट पर्यावरण में बने हैं। इन संकटों के कारण कभी-कभी तो देश की गति तक रुक जाती-सी प्रतीत होती है। कहीं बाढ़ है तो कहीं सूखा है। कहीं लोग भूखमरी के कारण बेहाल हैं। तो कहीं खाद्यान्न पड़ा-पड़ा सड़ रहा है। हवा में फैली खतरनाक गैसें सभी को दूषित कर रही हैं। इन हवाओं में साँस लेना भी कठिन होता जा रहा है।
प्रश्न 6:
आपकी दादी – नानी किस तरह के विश्वासों की बात करती है ? ऐसी स्थिति में उनके प्रति आपका रवैया क्या होता है ?
उत्तर –
हमारी दादी-नानी अनेक तरह के व्रत करती हैं ताकि परिवार पर कोई कष्ट न आए। वे अंधविश्वासों से ग्रस्त हैं; जैसे बिल्ली का रास्ता काटना, छींकना, आँख फड़कना आदि। वे पुराने विचारों की हैं। मैं ऐसे विश्वासों/अंधविश्वासों को नहीं मानता, परंतु उनके प्रति विरोध भी प्रकट नहीं करता, क्योंकि उनका विरोध करने पर तनाव उत्पन्न होता है। दूसरे, वे ये सारे कार्य परिवार को कष्टों से दूर रखने की भावना से करती हैं। ऐसे में भावनात्मक लगाव के कारण उनका विरोध नहीं किया जा सकता ।
चर्चा करें
प्रश्न 1:
बादलों से संबंधित अपने -अपने क्षेत्र में प्रचलित गीतों का संकलन करें तथा कैशा में चर्चा करें ?
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2:
पिछले 15-20 सालों में पयावरण से छेड़-छाड़ के कारण भी प्रकृति-चक्र में बदलाव आया हैं, जिसका परिणाम मौसम का असंतुलन है। वर्तमान बाड़मेर (राजस्तान )में आई बढ़ ,मुंबई की बढ़ तथा महाराष्ट्र का भूकंप या फिर सुनामी भी इसी का नतीजा है। इस प्रकार की घटनाओ ,चित्रों का संकलन कीजिए और एक प्रदर्शनी का आयोजन कीजिए , जिसमे ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ में बनाए गए विज्ञानपनों को भी शामिल कर सकते है। और हँ ,ऐसी स्थितियों से बचाव के उपाय पर पयावरण विशेषज्ञों की राय को प्रदशनी में मुख्य स्थान देना न भूलें।
उत्तर –
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
विज्ञापन की दुनिया
प्रश्न 1:
‘पानी बचाओ’ से जुड़े विज्ञापनों को एकत्र कीजिए। इस सकट के प्रति चेतावनी बरतने के लिए आप किस प्रकार का विज्ञापन चाहेंगे?
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
अन्य हल प्रश्न
बोधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:
काले मेघा पानी दे ,संस्मरण के लेखक ने लोक – प्रचलित विश्वासों को अंधविश्वास कहकरण उनके निराकरण पर बल दिया है। – इस कथन की विवेचना कीजिए ?
उत्तर –
लेखक ने इस संस्मरण में लोक-प्रचलित विश्वासों को अंधविश्वास कहा है। पाठ में इंदर सेना के कार्य को वह पाखंड मानता है। आम व्यक्ति इंदर सेना के कार्य को अपने-अपने तकों से सही मानता है, परंतु लेखक इन्हें गलत बताता है। इंदर सेना पर पानी फेंकना पानी की क्षति है जबकि गरमी के मौसम में पानी की भारी कमी होती है। ऐसे ही अंधविश्वासों के कारण देश का बौद्धिक विकास अवरुद्ध होता है। हालाँकि एक बार इन्हीं अंधविश्वास की वजह से देश को एक बार गुलामी का दंश भी झेलना पड़ा।
प्रश्न 2:
‘काले मेघा पानी दे’ पाठ की ‘इंदर सेना’ युवाओं को रचनात्मक कार्य करने की प्रेरणा दे सकती हैं-तर्क सहित उतार दीजिए।
उत्तर –
इंदर सेना युवाओं को रचनात्मक कार्य करने की प्रेरणा दे सकती है। इंदर सेना सामूहिक प्रयास से इंद्र देवता को प्रसन्न करके वर्षा कराने के लिए कोशिश करती है। यदि युवा वर्ग के लोग समाज की बुराइयों, कमियों के खिलाफ़ सामूहिक प्रयास करें तो देश का स्वरूप अलग ही होगा। वे शोषण को समाप्त कर सकते हैं। दहेज का विरोध करना, आरक्षण का विरोध करना, नशाखोरी के खिलाफ़ आवाज उठाना-आदि कार्य सामूहिक प्रयासों से ही हो सकते हैं।
प्रश्न 3:
यदि आप धर्मवीर भारती के स्थान पर होते तो जीजी के तक सुनकर क्या करते और क्यों? ‘काले मेधा पानी दे’-पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर –
यदि मैं लेखक के स्थान पर होता तो जीजी का तर्क सुनकर वही करता जो लेखक ने किया, क्योंकि तर्क करने से तो जीजी शायद ही कुछ समझ पातीं, उनका दिल दुखता और हमारे प्रति उनका सद्भाव भी घट जाता। लेखक की भाँति मैं भी जीजी के प्यार और सद्भाव को खोना नहीं चाहता । यही कारण है कि आज भी बहुत-सी बेतुकी परंपराएँ हमारे देश को जकड़े हुए हैं।
प्रश्न 4:
‘काले मेघा पानी दे’ पाठ के आधार पर जल और वर्षा के अभाव में गाँव की दशा का वर्णन र्काजिए।
उत्तर –
गली-मोहल्ला, गाँव-शहर हर जगह लोग गरमी से भुन-भुन कर त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे थे। जेठ मास भी अपना ताप फैलाकर जा चुका था और अब तो आषाढ़ के भी पंद्रह दिन बीत चुके थे। कुएँ सूखने लगे थे, नलों में पानी नहीं आता था। खेत की माटी सूख-सूखकर पत्थर हो गई थी। पपड़ी पड़कर अब खेतों में दरारें पड़ गई थीं। झुलसा देने वाली लू चलती थी। ढोर-ढंगर प्यास से मर रहे थे, पर प्यास बुझाने के लिए पानी नहीं था। निरुपाय से ग्रामीण पूजा-पाठ में लगे थे। अंत में इंद्र से वर्षा के लिए प्रार्थना करने इंदर सेना भी निकल पड़ी थी।
प्रश्न 5:
दिन-दिन गहराते पानी के संकट से निपटने के लिए क्या आज का युवा वर्ग ‘काले मेघा पानी दे’ र्का इंदर सेना की तर्ज पर कोई सामूहिक आंदोलन प्रारंभ कर सकता हैं? अपने विचार लिखिए।
उत्तर –
आज के समय पानी के गहरे संकट से निपटने के लिए युवा वर्ग सामूहिक आंदोलन कर सकता है। युवा वर्ग शहर व गाँवों में पानी की फिजूलखर्ची को रोकने के लिए प्रचार आंदोलन कर सकता है। गाँवों में तालाब खुदवा सकता है ताकि वर्षा के जल का संरक्षण किया जा सके। युवा वृक्षारोपण अभियान चला सकता है ताकि वर्षा अधिक हो तथा पानी भी संरक्षित रह सके। वह घर-घर में पानी के सही उपयोग की जानकारी दे सकता है।
प्रश्न 6:
ग्रीष्म में कम पानी वाले दिनों में गाँव-गाँव में डोलती मेढ़क-मंडली पर एक बाल्टी पानी उड़ेलना जीजी के विचार से पानी का बीज बोना हैं, कैसे?
उत्तर –
जीजी का मानना है कि गरमी के दिनों में मेढक-मंडली पर एक बाल्टी पानी उड़ेलना पानी का बीज बोना है। वे कहती हैं कि जब हम किसी को कुछ देंगे तभी तो अधिक लेने के हकदार बनेंगे। इंद्र देवता को पानी नहीं देंगे तो वह हमें क्यों पानी देगा। ऋषि-मुनियों ने भी त्याग व दान की महिमा गाई है। पानी के बीज बोने से काले मेघों की फसल होगी जिससे गाँव, शहर, खेत-खलिहानों को खूब पानी मिलेगा।
प्रश्न 7:
जीजी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर –
लेखक ने जीजी के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं
(क) स्नेहशील-जीजी लेखक को अपने बच्चों से भी अधिक प्यार करती थीं। वे सारे अनुष्ठान, कर्मकांड लेखक से करवाती थीं ताकि उसे पुण्य मिलें।
(ख) आस्थावती-जीजी आस्थावती नारी थीं। वे परंपराओं, विधियों, अनुष्ठानों में विश्वास रखती थीं तथा श्रद्धा से उन्हें पूरा करती थीं।
(ग) तर्कशीला-जीजी अपनी बात के समर्थन में तर्क देती थीं। उनके तकों के सामने आम व्यक्ति पस्त हो जाता था। इंदर सेना पर पानी फेंकने के पक्ष में जो तर्क वे देती हैं, उनका कोई सानी नहीं। लेखक भी उनके समक्ष स्वयं को कमजोर मानता है।
प्रश्न 8:
‘गगरी फूटी बैल पियासा’ का भाव या प्रतीकार्थ देश के संदर्भ में समझाइए।
उत्तर –
‘गगरी फूटी बैल पियासा’ एक ओर जहाँ सूखे की ओर बढ़ते समाज का सजीव एवं मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है वहीं यह देश की वर्तमान हालत का भी चित्रण करता है। यहाँ गाँव तथा आम लोगों के कल्याणार्थ भेजी अरबों-खरबों की राशि न जाने कहाँ गुम हो जाती है। भ्रष्टाचार का दानव इस समूची राशि को निगल जाता है और आम आदमी की स्थिति वैसी की वैसी ही रह जाती है अर्थात उसकी आवश्यकता रूपी प्यास अनबुझी रह जाती है।
प्रश्न 9:
‘काले मेघा पानी दे’ सस्मरण विज्ञान के सत्य पर सहज प्रेम की विजय का चित्र प्रस्तुत करता हैं-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण में वर्षा न होना, सूखा पड़ना आदि के विषय में विज्ञान अपना तर्क देता है और वर्षा न होने जैसी समस्या के सही कारणों का ज्ञान कराते हुए हमें सत्य से परिचित कराता है। इस सत्य पर लोक-प्रचलित विश्वास और सहज प्रेम की जीत हुई है क्योंकि लोग इस समस्या का हल अपने-अपने ढंग से ढूँढ़ने में जुट जाते हैं, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। लोगों में प्रचलित विश्वास इतना पुष्ट है कि वे विज्ञान की बात मानने को तैयार नहीं होते।
प्रश्न 10:
धमवीर भारती मढ़क-मडली पर पानी डालना क्यों व्यर्थ मानते थे?
उत्तर –
लेखक धर्मवीर भारती मेढक-मंडली पर पानी डालना इसलिए व्यर्थ मानते थे क्योंकि चारों ओर पानी की घोर कमी थी। लोग पीने के लिए बड़ी कठिनाई से बाल्टी-भर पानी इकट्ठा करके रखे हुए थे, जिसे वे इस मेढक-मंडली पर फेंक कर पानी की घोर बर्बादी करते हैं। इससे देश की अति होती है। वह पानी को यूँ फेकना अंधविश्वास के सिवाय कुछ नहीं मानने थे।
प्रश्न 11:
‘काले मघा पानी दे’ में लेखक ने लोक-मान्यताओं के पीछ छिपे किस तक को उभारा है? आप’ भी अपने जीवन के अनुभव से किसी अधविश्वास के पीछे छिपे तक को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
‘काले मेघा पानी दे” में लेखक ने लोक-मान्यताओं के पीछे छिपे उस तर्क को उभारा है, जिसके अनुसार ऐसी मान्यता है कि जब तक हम किसी को कुछ देंगे नहीं, तब तक उससे लेने का हकदार कैसे बन सकते हैं। उदाहरणतया, यदि हम इंद्र देवता को पानी नहीं देंगे तो वे हमें पानी क्यों देंगे। इंदर सेना पर बाल्टी भरकर पानी फेंकना ऐसी ही लोकमान्यता का प्रमाण है। हमारे जीवन के अनुभव से अंधविश्वास के पीछे छिपा तर्क यह है कि यदि काली बिल्ली रास्ता काट जाती है तो अंधविश्वासी लोग कहते हैं कि रुक जाओ, बाद में जाना पर मेरा तर्क यह है कि इसमें कोई सत्यता नहीं है। यह समय को बरबाद करने के अलावा कुछ नहीं है।
प्रश्न 12:
मेढ़क मडली पर पानी डालने को लेकर लखक और जीजी के विचारों में क्या भिन्नता थी?
उत्तर –
मेढक मंडली पर पानी डालने को लेकर लेखक का विचार यह था कि यह पानी की घोर बर्बादी है। भीषण गर्मी में जब पानी पीने को नहीं मिलता हो और लोग दूर-दराज से इसे लाए हों तो ऐसे पानी को इस मंडली पर फेंकना देश का नुकसान है। इसके विपरीत, जीजी इसे पानी की बुवाई मानती हैं। वे कहती हैं कि सूखे के समय हम अपने घर का पानी इंदर सेना पर फेंकते हैं, तो यह भी एक प्रकार की बुवाई है। यह पानी गली में बोया जाता है जिसके बदले में गाँवों, शहरों में, कस्बों में बादलों की फसल आ जाती है।
(क) उपर्युक्त कथन किसका है? यह किस संदर्भ में कहा गया है?
(ख) संपन्न लांगों का दान वास्तविक दान क्यो’ नहीं है?
(ग) वास्तविक त्याग किसे माना गया है? क्यों?
(घ) अपने जीवन के किसी प्रसंग से अंतिम वाक्य में निहित सूक्ति र्का सार्थकता संक्षेप में समझाइए।
(ब) हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने स्तर पर अपने दायरे में हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे हैं? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं। आखिर कब बदलेगी यह स्थिति ?
(क) ” हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं।”- कथन के द्वारा लेखक देशवासियों की किस मानसिकता पर व्यंग्य कर रहा है?
(ख) देश के नागारिकों के चरित्र में किस गुण का अभाव है? उस अभाव का कारण क्या है?
(ग) हम किस बात के लिए दूसरों की आलोचना करते हैं? क्या हम वास्तव में उस आलोचना करने के अधिकारी हैं?
(घ) निम्नलिखित अंश में निहित अर्थ स्पष्ट कीजिए-
‘काले मेधा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता हैं, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती हैं, बैल पियास के पियास रह जाते हैं।”
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