कवि परिचय
कुंवर नारायण
जीवन परिचय-कुंवर नारायण आधुनिक हिंदी कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं। इनका जन्म 19 सितंबर, सन 1927 को फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई थी। विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से पूरी की। इन्होंने अनेक देशों की यात्रा की है। कुंवर नारायण ने सन 1950 के आस-पास काव्य-लेखन की शुरुआत की। इन्होंने चिंतनपरक लेख, कहानियाँ सिनेमा और अन्य कलाओं पर समीक्षाएँ भी लिखी हैं। इन्हें अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया है; जैसे-कबीर सम्मान, व्यास सम्मान, लोहिया सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा केरल का कुमारन आशान पुरस्कार आदि।
रचनाएँ-ये ‘तीसरे सप्तक’ के प्रमुख कवि हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
काव्यगत विशेषताएँ-कवि ने कविता को अपने सृजन कर्म में हमेशा प्राथमिकता दी। आलोचकों का मानना है कि “उनकी कविता में व्यर्थ का उलझाव, अखबारी सतहीपन और वैचारिक धुंध की बजाय संयम, परिष्कार और साफ-सुथरापन है।” कुंवर जी नारायण नगरीय संवेदना के कवि हैं। इनके यहाँ विवरण बहुत कम हैं, परंतु वैयक्तिक तथा सामाजिक ऊहापोह का तनाव पूरी व्यंजकता में सामने आता है। इनकी तटस्थ वीतराग दृष्टि नोच-खसोट, हिंसा-प्रतिहिंसा से सहमे हुए एक संवेदनशील मन के आलोडनों के रूप में पढ़ी जा सकती है।
भाषा-शैली-भाषा और विषय की विविधता इनकी कविताओं के विशेष गुण माने जाते हैं। इनमें यथार्थ का खुरदरापन भी मिलता है और उसका सहज सौंदर्य भी। सीधी घोषणाएँ और फैसले इनकी कविताओं में नहीं मिलते क्योंकि जीवन को मुकम्मल तौर पर समझने वाला एक खुलापन इनके कवि-स्वभाव की मूल विशेषता है।
कविताओं का प्रतिपादय एवं सार
(क) कविता के बहाने
प्रतिपादय-‘कविता के बहाने’ कविता कवि के कविता-संग्रह ‘इन दिनों’ से ली गई है। आज के समय में कविता के अस्तित्व के बारे में संशय हो रहा है। यह आशंका जताई जा रही है कि यांत्रिकता के दबाव से कविता का अस्तित्व नहीं रहेगा। ऐसे में यह कविता-कविता की अपार संभावनाओं को टटोलने का एक अवसर देती है।
सार-यह कविता एक यात्रा है जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक की है। एक ओर प्रकृति है दूसरी ओर भविष्य की ओर कदम बढ़ाता बच्चा। कवि कहता है कि चिड़िया की उड़ान की सीमा है, फूल के खिलने के साथ उसकी परिणति निश्चित है, लेकिन बच्चे के सपने असीम हैं। बच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा का कोई स्थान नहीं होता। कविता भी शब्दों का खेल है और शब्दों के इस खेल में जड़, चेतन, अतीत, वर्तमान और भविष्य-सभी उपकरण मात्र हैं। इसीलिए जहाँ कहीं रचनात्मक ऊर्जा होगी, वहाँ सीमाओं के बंधन खुद-ब-खुद टूट जाते हैं। वह सीमा चाहे घर की हो, भाषा की हो या समय की ही क्यों न हो।
(ख) बात सीधी थी पर
प्रतिपादय-यह कविता ‘कोई दूसरा नहीं’ कविता-संग्रह से संकलित है। इसमें कथ्य के द्वंद्व उकेरते हुए भाषा की सहजता की बात की गई है। हर बात के लिए कुछ खास शब्द नियत होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे हर पेंच के लिए एक निश्चित खाँचा होता है। अब तक जिन शब्दों को हम एक-दूसरे के पर्याय के रूप में जानते रहे हैं, उन सबके भी अपने अर्थ होते हैं। अच्छी बात या अच्छी कविता का बनना सही बात का सही शब्द से जुड़ना होता है और जब ऐसा होता है तो किसी दबाव या अतिरिक्त मेहनत की जरूरत नहीं होती, वह सहूलियत के साथ हो जाता है। सही बात को सही शब्दों के माध्यम से कहने से ही रचना प्रभावशाली बनती है।
सार-कवि का मानना है कि बात और भाषा स्वाभाविक रूप से जुड़े होते हैं। किंतु कभी-कभी भाषा के मोह में सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है। मनुष्य अपनी भाषा को टेढ़ी तब बना देता है जब वह आडंबरपूर्ण तथा चमत्कारपूर्ण शब्दों के माध्यम से कथ्य को प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। अंतत: शब्दों के चक्कर में पड़कर वे कथ्य अपना अर्थ खो बैठते हैं। अत: अपनी बात सहज एवं व्यावहारिक भाषा में कहना चाहिए ताकि आम लोग कथ्य को भलीभाँति समझ सकें।
व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
(क) कविता के बहाने
निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सप्रसंग व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए
1.
कविता एक उड़ान हैं चिड़िया के बहाने
कविता की उडान भला चिडिया क्या जाने?
बाहर भीतर
इस धर, उस घर
कविता के पंख लया उड़ने के माने
चिडिया क्या जाने?
शब्दार्थ-माने-अर्थ। प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने’ से उद्धृत है। इसके रचयिता कुंवर नारायण हैं। कवि कविता की यात्रा के बारे में बताता है, जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक की है। कवि का मानना है कि रचनात्मक ऊर्जा पर सीमा के बंधन लागू नहीं होते।
व्याख्या-कवि कहता है कि कविता कल्पना की उड़ान है। इसे सिद्ध करने के लिए वह चिड़िया का उदाहरण देता है। साथ ही चिड़िया की उड़ान के बारे में यह भी कहता है कि चिड़िया की उड़ान सीमित होती है किंतु कविता की कल्पना का दायरा असीमित होता है। चिड़िया घर के अंदर-बाहर या एक घर से दूसरे घर तक ही उड़ती है, परंतु कविता की उड़ान व्यापक होती है। कवि के भावों की कोई सीमा नहीं है। कविता घर-घर की कहानी कहती है। वह पंख लगाकर हर जगह उड़ सकती है। उसकी उड़ान चिड़िया की उड़ान से कहीं आगे है।
विशेष–
प्रश्न
(क) ‘कविता एक उड़ान हैं चिड़िया के बहाने’-पक्ति का भाव बताइए।
(ख) कविता कहाँ-कहाँ उड़ सकती हैं?
(ग) कविता की उडान व चिडिया की उडान में क्या अंतर हैं?
(घ) कविता के पंख लगाकर कौन उड़ता है?
उत्तर –
(क) इस पंक्ति का अर्थ यह है कि चिड़िया को उड़ते देखकर कवि की कल्पना भी ऊँची-ऊँची उड़ान भरने लगती है। वह रचना करते समय कल्पना की उड़ान भरता है।
(ख) कविता पंख लगाकर मानव के आंतरिक व बाहय रूप में उड़ान भरती है। वह एक घर से दूसरे घर तक उड़ सकती है।
(ग) चिड़िया की उड़ान एक सीमा तक होती है, परंतु कविता की उड़ान व्यापक होती है। चिड़िया कब्रिता की उड़ान को नहीं जान सकती।
(घ) कविता के पंख लगाकर कवि उड़ता है। वह इसके सहारे मानव-मन व समाज की भावनाओं को अभिव्यक्ति देता है।
2.
कविता एक खिलना हैं फूलों के बहाने
कविता का खिलना भला कूल क्या जाने
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
बिना मुरझाए महकने के माने
फूल क्या जाने?
शब्दार्थ-महकना-सुगंध बिखेरना।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने’ से उद्धृत है। इसके रचयिता कुंवर नारायण हैं। कवि कविता की यात्रा के बारे में बताता है, जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक की है। कवि का मानना है कि रचनात्मक ऊर्जा पर सीमा के बंधन लागू नहीं होते। व्याख्या-कवि कहता है कि कविता की रचना फूलों के बहाने हो सकती है। फूलों को देखकर कवि का मन प्रफुल्लित रहता है। उसके मन में कविता फूल की भाँति विकसित होती है। फूल से कविता में रंग, भाव आदि आते हैं, परंतु कविता के खिलने के बारे में फूल कुछ नहीं जानते।
फूल कुछ समय के लिए खिलते हैं, खुशबू फैलाते हैं, फिर मुरझा जाते हैं। उनकी परिणति निश्चित होती है। वे घर के अंदर-बाहर, एक घर से दूसरे घर में अपनी सुगंध फैलाते हैं, परंतु शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। कविता बिना मुरझाए लंबे समय तक लोगों के मन में व्याप्त रहती है। इस बात को फूल नहीं समझ पाता।
विशेष-
प्रश्न
(क) ‘कविता एक खिलन हैं, फूलों के बहाने’ ऐसा क्यों?
(ख) कविता रचने और फूल खिलने में क्या साम्यता हैं?
(ग) बिना मुरझाए कौन कहाँ महकता हैं?
(घ) ‘कविता का खिलना भला कूल क्या जाने। ‘-पंक्ति का आशय स्पष्ट र्काजि।
उत्तर –
(क) कविता फूलों के बहाने खिलना है क्योंकि फूलों को देखकर कवि का मन प्रसन्न हो जाता है। उसके मन में कविता फूलों की भाँति विकसित होती जाती है।
(ख) जिस प्रकार फूल पराग, मधु व सुगंध के साथ खिलता है, उसी प्रकार कविता भी मन के भावों को लेकर रची जाती है।
(ग) बिना मुरझाए कविता हर जगह महका करती है। यह अनंतकाल तक सुगंध फैलाती है।
(घ) इस पंक्ति का आशय यह है कि फूल के खिलने व मुरझाने की सीमा है, परंतु कविता शाश्वत है। उसका महत्व फूल से अधिक है।
3.
कविता एक खेल हैं बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह धर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
कच्च ही जाने।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने’ से उद्धृत है। इसके रचयिता कुंवर नारायण हैं। कवि कविता की यात्रा के बारे में बताता है जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक की है।
व्याख्या-कवि कविता को बच्चों के खेल के समान मानता है। जिस प्रकार बच्चे कहीं भी किसी भी तरीके से खेलने लगते हैं, उसी प्रकार कवि के लिए कविता शब्दों की क्रीड़ा है। वह बच्चों के खेल की तरह कहीं भी, कभी भी तथा किसी भी स्थान पर प्रकट हो सकती है। वह किसी भी समय अपने भावों को व्यक्त कर सकती है।
बच्चों के लिए सभी घर एक समान होते हैं। वे खेलने के समय अपने-पराये में भेद नहीं करते। इसी तरह कवि अपने शब्दों से अांतरिक व बाहरी संसार के मनोभावों को रूप प्रदान करता है। वह बच्चों की तरह बेपरवाह है। कविता पर कोई बंधन लागू नहीं होता।
विशेष-
प्रश्न
(क) कविता को क्या सज्ञा दी गई हैं? क्यों?
(ख) कविता और बच्चों के खेल में क्या समानता हैं?
(ग) कविता की कौन-कौन-सी विशेषताएँ बताई गई हैं?
(घ) बच्चा कौन-सा बहाना जानता हैं?
उत्तर –
(क) कविता को खेल की संज्ञा दी गई है। जिस प्रकार खेल का उद्देश्य मनोरंजन व आत्मसंतुष्टि होता है, उसी प्रकार कविता भी शब्दों के माध्यम से मनोरंजन करती है तथा रचनाकार को संतुष्टि प्रदान करती है।
(ख) बच्चे कहीं भी, कभी भी खेल खेलने लगते हैं। इस तरह कविता कहीं भी प्रकट हो सकती है। दोनों कभी कोई बंधन नहीं स्वीकारते।
(ग) कविता की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(घ) बच्चा सभी घरों को एक समान करने के बहाने जानता है।
(ख) बात सीधी थी पर……
1.
बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
जरा टेढ़ी फैंस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा की उलट-पालट
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए-
लेकिन इससे भाषा के साथ-साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।
शब्दार्थ-सीधी-सरल, सहज। चक्कर-प्रभाव। टेढ़ा फैसना-बुरा फँसना। येचीदा-कठिन, मुश्किल।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘बात सीधी थी पर ’’ से ली गई है। इसके रचयिता कुंवर नारायण हैं। इस कविता में भाषा की सहजता की बात कही गई है और बताया गया है कि अकसर चमत्कार के चक्कर में भाषा दुरूह हो जाती है।
व्याख्या-कवि कहता है कि वह अपने मन के भावों को सहज रूप से अभिव्यक्त करना चाहता था, परंतु समाज की प्रकृति को देखते हुए उसे प्रभावी भाषा के रूप में प्रस्तुत करना चाहा। पर भाषा के चक्कर में भावों की सहजता नष्ट हो गई। कवि कहता है कि मैंने मूल बात को कहने के लिए शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों आदि को बदला। फिर उसके रूप को बदला तथा शब्दों को उलट-पुलट कर प्रयोग किया। कवि ने कोशिश की कि या तो इस प्रयोग से उसका काम बच जाए या फिर वह भाषा के उलट-फेर के जंजाल से मुक्त हो सके, परंतु कवि को कोई भी सफलता नहीं मिली। उसकी भाषा के साथ-साथ कथ्य भी जटिल होता गया।
विशेष-
प्रश्न
(क) ‘भाषा के चक्कर” का तात्पय बताइए।
(ख) कवि अपनी बात के बारे में क्या बताता है?
(ग) कवि ने बात को पाने के चक्कर में क्या-क्या किया?
(घ) कवि की असफलता का क्या कारण था?
उत्तर –
(क) ‘भाषा के चक्कर’ से तात्पर्य है-भाषा को जबरदस्ती अलंकृत करना।
(ख) कवि कहता है कि उसकी बात साधारण थी, परंतु वह भाषा के चक्कर में उलझकर जटिल हो गई।
(ग) कवि ने बात को प्राप्त करने के लिए भाषा को घुमाया-फिराया, उलटा-पलटा, तोड़ा-मरोड़ा। फलस्वरूप वह बात पेचीदा हो गई।
(घ) कवि ने अपनी बात को कहने के लिए भाषा को जटिल व अलंकारिक बनाने की कोशिश की। इस कारण बात अपनी सहजता खो बैठी और वह पेचीदा हो गई।
2.
सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
में फेंच को खोलने की बजाय
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्योंकि इस करतब पर मुझे
साफ सुनाई दे रही थी
तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह।
शब्दार्थ-मुश्किल-कठिन। धैर्य-धीरज। पेंच-ऐसी कील जिसके आधे भाग पर चूड़ियाँ बनी होती हैं, उलझन। बेतरह-बुरी तरह। करतब-चमत्कार। तमाशवन-दर्शक, तमाशा देखने वाले। शाबाशी-प्रशंसा, प्रोत्साहन।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘बात सीधी थी पर’ से ली गई है। इसके रचयिता ईक्वाणहैं।इसकवता में भाणक साहताक वातक हैऔरबताया गया हैकअक्सचमाकरकेचक में भाणदुह
व्याख्या-कवि कहता है कि जब उसकी बात पेचीदा हो गई तो उसने सारी समस्या को ध्यान से नहीं समझा। हल ढूँढ़ने की बजाय वह और अधिक शब्दजाल में फैस गया। बात का पेंच खुलने के स्थान पर टेढ़ा होता गया और कवि उसे अनुचित रूप से कसता चला गया। इससे भाषा और कठिन हो गई। शब्दों के प्रयोग पर दर्शक उसे प्रोत्साहन दे रहे थे, उसकी प्रशंसा कर रहे थे।
विशेष-
प्रश्न
(क) कवि की क्या कमी थी?
(ख) ‘पेंच को खोलने की बजाय कसना’-पक्ति का अर्थ स्पष्ट करें।
(ग) कवि ने अपने किस काय को करतब कहा है?
(घ) कवि के करतब का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर –
(क) कवि ने अपनी समस्या को ध्यान से नहीं समझा। वह धैर्य खो बैठा।
(ख) इसका अर्थ यह है कि उसने बात को स्पष्ट नहीं किया। इसके विपरीत, वह शब्दजाल में उलझता गया।
(ग) कवि ने अभिव्यक्ति को बिना सोचे-समझे उलझाने व कठिन बनाने को करतब कहा है।
(घ) कवि ने भाषा को जितना ही बनावटी ढंग और शब्दों के जाल में उलझाकर लाग-लपेट करने वाले शब्दों में कहा, सुनने वालों द्वारा उसे उतनी ही शाबाशी मिली।
3.
आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
जोर जबरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!
हारकर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।
ऊपर से ठीकठाक
परअंदर से
न तो उसमें कसाव था
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा-
‘क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?’
शब्दार्थ-जोर-बल । चूड़ी मरना-पेंच कसने के लिए बनी चूड़ी का नष्ट होना, कथ्य का मुख्य भाव समाप्त होना। कसाव-खिचाव, गहराई। सहूलियत-सहजता, सुविधा। बरतना-व्यवहार में लाना।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘बात सीधी थी पर ’ से ली गई है। इसके रचयिता कुंवर नारायण हैं। इस कविता में भाषा की सहजता की बात कही गई है और बताया गया है कि चमत्कार के चक्कर में भाषा कैसे दुरूह और अप्रभावी हो जाती है।
व्याख्या-कवि अपनी बात कहने के लिए बनावटी भाषा का प्रयोग करने लगा। परिणाम वही हुआ जिसका कवि को डर था। जैसे पेंच के साथ जबरदस्ती करने से उसकी चूड़ियाँ समाप्त हो जाती हैं, उसी प्रकार शब्दों के जाल में उलझकर कवि की बात का प्रभाव नष्ट हो गया और वह बनावटीपन में ही खो गई। उसकी अभिव्यंजना समाप्त हो गई।
अंत में, कवि जब अपनी बात को स्पष्ट नहीं कर सका तो उसने अपनी बात को वहीं पर छोड़ दिया जैसे पेंच की चूड़ी समाप्त होने पर उसे कील की तरह ठोंक दिया जाता है।
ऐसी स्थिति में कवि की अभिव्यक्ति बाहरी तौर पर कविता जैसी लगती थी, परंतु उसमें भावों की गहराई नहीं थी, शब्दों में ताकत नहीं थी। कविता प्रभावहीन हो गई। जब वह अपनी बात स्पष्ट न कर सका तो बात ने शरारती बच्चे के समान पसीना पोंछते कवि से पूछा कि क्या तुमने कभी भाषा को सरलता, सहजता और सुविधा से प्रयोग करना नहीं सीखा।
विशेष-
प्रश्न
(क) बात की चूड़ी मर जाने और बेकार घूमने के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता हैं?
(ख) काव्यांश में प्रयुक्त दोनों आयामों के प्रयोग-सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए/
(ग) भाष को सहूलियत से बरतने का क्या अभिप्राय हैं?
(घ) बात ने कवि से क्या पूछा तथा क्यों?
उत्तर –
(क) जब हम पेंच को जबरदस्ती कसते चले जाते हैं तो वह अपनी चूड़ी खो बैठता है तथा स्वतंत्र रूप से घूमने लगता है। इसी तरह जब किसी बात में जबरदस्ती शब्द ढूँसे जाते हैं तो वह अपना प्रभाव खो बैठती है तथा शब्दों के जाल में उलझकर रह जाती है।
(ख) बात के उपेक्षित प्रभाव के लिए कवि ने पेंच और कील की उपमा दी है। इन शब्दों के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि निरर्थक व अलंकारिक शब्दों के प्रयोग से बात शब्द-जाल में घूमती रहती है। उसका प्रभाव नष्ट हो जाता है।
(ग) ‘भाषा को सहूलियत से बरतने’ का अभिप्राय यह है कि व्यक्ति को अपनी अभिव्यक्ति सहज तरीके से करनी चाहिए। शब्द-जाल में उलझने से बात का प्रभाव समाप्त हो जाता है और केवल शब्दों की कारीगरी रह जाती है।
(घ) बात ने शरारती बच्चे के समान कवि से पूछा कि क्या उसने भाषा के सरल, सहज प्रयोग को नहीं सीखा। इसका कारण यह था कि कवि ने भाषा के साथ जोर-जबरदस्ती की थी।
काव्य-सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न
(क) कविता के बहाने
निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए
1.
कविता एक उड़ान हैं चिड़िया के बहाने
कविता के पंख लगा उड़ने के माने
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
कविता के पंख लगा उड़ने के माने
चिडिया क्या जाने?
प्रश्न
(क) काव्यांश के कथ्य के सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ख) इन पंक्तियों की भाषागत विशेषताओं की चर्चा र्काजिए।
(ग) ‘कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने’ पक्ति के भावगत सौंदर्य पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर –
(क) कवि ने चिड़िया की उड़ान से कविता की तुलना की है जो बहुत सुंदर बन पड़ी है। उसने कविता की उड़ान को बंधनमुक्त माना है। चिड़िया कविता की उड़ान के विषय में कुछ नहीं जान सकती।
(ख) – इस अंश में साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग है, जिसमें मिश्रित शब्दावली का प्रयोग है।
– ‘चिड़िया क्या जाने’ में प्रश्न अलंकार है।
– कविता का मानवीकरण किया गया है।
– ‘इस घर, उस घर’, ‘कविता की’ में अनुप्रास अलंकार है।
(ग) इस पंक्ति में कवि ने चिड़िया के माध्यम से कविता की यात्रा दिखाई है, किंतु चिड़िया कविता की उड़ान के आगे हीन है। कविता की उड़ान असीमित है, जबकि चिड़िया की उड़ान सीमित, कविता कल्पना है, चिड़िया यथार्थ।
2.
कविता एक खिलना हैं फूलों के बहाने
कविता का खिलना भला फूल क्या जाने!
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
बिना मुरझाए महकने के माने
फूल क्या जाने?
कविता एक खेल है बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह घर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा ही जाने।
प्रश्न
(क) कविता रचने और फूल के खिलने में क्या समानता है?
(ख) कवि ने कैसे समझाया हैं कि कविता के प्रसव की कांर्द्ध तीमा तहां” होती?
(ग) ‘बिन मुरझाए महकना’और ‘सब घर एक कर देने’ का आशय स्पष्ट कीजिए
उत्तर –
(क) कविता फूल की तरह खिलती व विकसित होती है। फूल विकसित होने पर अपनी खुशबू चारों तरफ बिखेरता है, उसी प्रकार कविता अपने विचारों व रस से पाठकों के मनोभावों को खिलाती है।
(ख) कवि ने कविता को बच्चों के खेल के समान माना है। कविता का प्रभाव व्यापक है। बच्चे कहीं भी, कभी भी, किसी भी तरीके से खेलने लगते हैं। इसी तरह कवि भी शब्दों के माध्यम से किसी भी भाव दशा में कहीं भी कविता रचता है। कविता शाश्वत है।
(ग) ‘बिन मुरझाए महकने के माने’ का अर्थ यह है कि कविता फूलों की तरह खिलती है, परंतु मुरझाती नहीं है। यह हर समय ताजी रहती है तथा अपनी महक से सबको प्रसन्न करती है। ‘सब घर एक कर देना’ से तात्पर्य यह है कि कविता में बच्चों के खेल की तरह बंधन नहीं होता। यह किसी से भेदभाव नहीं करती।
(ख) बात सीधी थी पर…..
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
जोर जबरदती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!
हारकर मेंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।
ऊपर से ठीकठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाव था
ना ताकत
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा—
” क्या तुमने भाता की
सहूलियत से बरतना कभी नहीं तीखा? “
प्रश्न
(क) रचनाकार के सामने कथ्य और माध्यम की क्या समस्या थी?
(ख) भाव स्पष्ट कीजिए- जोर जबरदस्ती से बात की चूड़ी मर गई।
(ग) कोई रचना ढील पेंच की तरह कब और कैसे प्रभावहीन हो जाती हैं?
उत्तर –
(क) रचनाकार का कथ्य सरल व प्रभावी था। वह अपनी बात को प्रभावी ढंग से कहना चाहता था, परंतु वह वक्र शैली के चक्कर में उलझ गया तथा शब्दों के जाल में उलझकर रह गया।
(ख) कवि कहता है कि जब हम बात को सरल ढंग से न कहकर आलंकारिक, जटिल या वक्र शैली में कहना चाहते हैं तो उस कथन का प्रभाव नष्ट हो जाता है।
(ग) कोई भी रचना ढीले पेंच की तरह तब प्रभावहीन हो जाती है जब गलत व जटिल शब्दों का प्रयोग वक्र शैली में प्रस्तुत की जाती है। जटिलता के चक्कर में कथन सही रूप नहीं ले पाता।
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
कविता के साथ
प्रश्न 1:
इस कविता के बहाने बताएँ कि ‘सब घर एक कर देने के माने’ क्या है?
उत्तर –
कविता के बहाने कविता में सब घर एक कर देने के मायने’ का अर्थ है- सीमा का बंधन समाप्त हो जाना। जिस प्रकार बच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा का ध्यान नहीं रखा जाता, उसी प्रकार कविता में स्थान की कोई सीमा नहीं है। यह शब्दों का खेल है। कवि बच्चों की तरह पूरे समाज को एक मानता है। वह अपने पराए का भेद भूलकर कविता की। रचना करता है। कविता समाज को बाँधती है, एक करती है।
प्रश्न 2:
“उड़ने’ और “खिलने” का कविता से बया सबंध बनता हैं?
उत्तर –
कविता का ‘उड़ने’ व ‘खिलने’ से सीधा संबंध है। चिड़िया एक स्थान से दूसरे स्थान तक उड़कर जाती है, परंतु कविता कल्पना के सहारे बहुत ऊँचे तक उड़ती है। यह काल की सीमा तक को लाँघ जाती है। इसी तरह कविता फूल की तरह विकसित होती है। फूल अपनी सुंदरता व गंध से समाज को प्रसन्न रखता है, उसी तरह कविता भी मानवीय भावों से विकसित होकर तरह-तरह के रंग दिखाती है तथा उसकी खुशबू सनातन है। वह हर युग में मानव को आनंद देती है।
प्रश्न 3:
कविता और बच्चे को समानांतर रखने के क्या कारण हो सकते हैं?
अथवा
कविता को बच्चों के समान क्यों कहा गया हैं? तक सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर –
कवि ने बच्चे और कविता को समानांतर रखा है। बच्चों में रचनात्मक ऊर्जा होती है। उनके खेलने की कोई निश्चित सीमा नहीं होती। उनके सपने असीम होते हैं। इसी तरह कविता भी रचनात्मक तत्वों से युक्त होती है। उसका क्षेत्र भी विस्तृत होता है। उनकी कल्पना शक्ति अद्भुत होती है।
प्रश्न 4:
कविता के संदर्भ में ‘बिना मुरझाए महकने के माने’ क्या होते हैं?
उत्तर –
कवि का मानना है कि कविता कभी मुरझाती नहीं है। यह अमर होती है तथा युग-युगांतर तक मानव-समाज को प्रभावित करती रहती है। अपनी जीवंतता की वजह से इसकी महक बरकरार रहती है। कविता के माध्यम से जीवन-मूल्य पीढ़ीदर-पीढ़ी चलते रहते हैं।
प्रश्न 5:
भाषा को ‘सहूलियत’ से बरतने से क्या अभिप्राय हैं?
उत्तर –
कवि कहता है कि मानव मन में भावों का उदय होता है। यदि वह भाषा के चमत्कार में उलझ जाता है तो वह अपने भावों को सही ढंग से अभिव्यक्त नहीं कर पाता। वह तभी उन्हें प्रकट कर सकता है जब भाषा को वह साधन बनाए, साध्य नहीं। साधन बनाने पर भाषा सहजता से इस्तेमाल हो सकती है। वह लोगों तक अपनी बात कह सकता है।
प्रश्न 6:
बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, किंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में ‘सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती हैं? कैसे?
अथवा
किसी रचना में भाव की प्रधानता महत्वपूर्ण है या भाषा की? कविता के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर –
बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, परंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है। इसका कारण उपयुक्त शब्दों का प्रयोग न करना होता है। मनुष्य अपनी भाषा को कठिन बना देता है तथा आडंबरपूर्ण या चमत्कारपूर्ण शब्दों से अपनी बात को कहने में स्वयं को श्रेष्ठ समझता है। इससे वह अपनी मूल बात को कहने में असफल हो जाता है। मनुष्य को समझना चाहिए कि हर शब्द का अपना विशिष्ट अर्थ होता है, भले ही वह समानार्थी या पर्यायवाची हो। शब्दों के चक्कर में उलझकर भाव अपना अर्थ खो बैठते हैं।
प्रश्न 7:
बात (कथ्य) के लिए नीचे दी गई विशेषताओं का उचित बिंबों/मुहावरों से मिलान करें।
कविता के आसपास
उत्तर –
व्याख्या कीजिए-
उत्तर –
व्याख्या–भाग देखिए।
चर्चा कीजिए-
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
आपसदारी
प्रश्न 1:
सुंदर है सुमन, विहग सुंदर
मानव तुम सबसे सुंदरतम्।
पंत की इस कविता में प्रकृति की तुलना में मनुष्य को अधिक सुंदर और समर्थ बताया गया हैं। ‘कविता के बहाने’ कविता में से इस आशय को अभिव्यक्त करने वाले बिंदुओं की तलाश करें।
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2:
प्रतापनारायण मिश्र का निबंध ‘ बात ‘ और नागार्जुन की कविता ‘बातें’ ढूंढकर पढ़ें।
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
अन्य हल प्रश्
लघूत्तरात्मक प्रश्न
(क) कविता के बहाने
प्रश्न 1:
‘कविता के बहाने’ कविता का प्रतिपाद्य बताइए।
उत्तर –
कविता एक यात्रा है जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक की है। एक ओर प्रकृति है दूसरी ओर भविष्य की ओर कदम बढ़ाता बच्चा। कवि कहता है कि चिड़िया की उड़ान की सीमा है, फूल के खिलने के साथ उसकी परिणति निश्चित है, लेकिन बच्चे के सपने असीम हैं। बच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा का कोई स्थान नहीं होता। कविता भी शब्दों का खेल है और शब्दों के इस खेल में जड़, चेतन, अतीत, वर्तमान और भविष्य-सभी उपकरण मात्र हैं। इसीलिए जहाँ कहीं रचनात्मक ऊर्जा होगी, वहाँ सीमाओं के बंधन खुद-ब-खुद टूट जाएँगे। वह सीमा चाहे घर की हो, भाषा की हो या समय की ही क्यों न हो।
प्रश्न 2:
“कविता के बहाने’ कविता के कवि की क्या अश्याका हँ और क्यों?
उत्तर –
इस कविता में कवि को कविता के अस्तित्व के बारे में संदेह है। उसे आशंका है कि औद्योगीकरण के कारण मनुष्य यांत्रिक होता जा रहा है। उसके पास भावनाएँ व्यक्त करने या सुनने का समय नहीं है। प्रगति की अंधी दौड़ से मानव की कोमल भावनाएँ समाप्त होती जा रही हैं। अत: कवि को कविता का अस्तित्व खतरे में दिखाई दे रहा है।
प्रश्न 3:
फूल और चिड़िया को कविता की क्या-क्या जानकारियाँ नहीं हैं? ‘कविता के बहाने’ कविता के आधार पर बताइए।
उत्तर –
फूल और चिड़िया को कविता की निम्नलिखित जानकारियाँ नहीं हैं-
प्रश्न 4:
‘कविता के बहाने’ के आधार पर कविता के असीमित अस्तित्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
‘कविता के बहाने’ में कविता का असीमित अस्तित्व प्रकट करने के लिए कवि ने चिड़िया की उड़ान का उदाहरण दिया है। वह कहता है कि चिड़िया की उड़ान सीमित होती है किंतु कविता की कल्पना का दायरा असीमित होता है। चिड़िया घर के अंदर-बाहर या एक घर से दूसरे घर तक उड़ती है, परंतु कविता की उड़ान व्यापक होती है। कवि के भावों की कोई सीमा नहीं है। कविता घर-घर की कहानी कहती है। वह पंख लगाकर हर जगह उड़ सकती है। उसकी उड़ान चिड़िया की उड़ान से कहीं आगे है।
(ख) बात सीधी थी पर’
प्रश्न 1:
‘बात सीधी थी पर ’…… कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘बात सीधी थी पर ’…… कविता का संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
इस कविता में कवि ने कथ्य और माध्यम के द्वंद्व को उकेरा है तथा भाषा की सहजता की बात कही है। हर बात के लिए कुछ खास शब्द नियत होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे हर पेंच के लिए एक निश्चित खाँचा होता है। अब तक हम जिन शब्दों को एक-दूसरे के पर्याय के रूप में जानते रहे हैं, उन सबके भी अपने विशेष अर्थ होते हैं। अच्छी बात या अच्छी कविता का बनना सही बात का सही शब्द से जुड़ना होता है और जब ऐसा होता है तो किसी दबाव या मेहनत की जरूरत नहीं होती, वह सहूलियत के साथ हो जाता है।
प्रश्न 2:
कवि के अनुसार कोई बात पेचीदा कैसे हो जाती हैं?
उत्तर –
कवि कहता है कि जब अपनी बात को सहज रूप से न कहकर तोड़-मरोड़कर या घुमा-फिराकर कहने का प्रयास किया जाता है तो बात उलझती चली जाती है। ऐसी बातों के अर्थ श्रोता या पाठक समझ नहीं पाता। वह मनोरंजन तो पा सकता है, परंतु कवि के भावों को समझने में असमर्थ होता है। इस तरीके से बात पेचीदा हो जाती है।
प्रश्न 3:
प्रशंसा का व्यक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता हैं? ‘बात सीधी थी पर ’ ‘कविता के आधार पर बताइए।
उत्तर –
प्रशंसा से व्यक्ति स्वयं को सही व उच्च कोटि का मानने लगता है। वह गलत-सही का निर्णय नहीं कर पाता। उसका विवेक कुंठित हो जाता है। कविता में प्रशंसा मिलने के कारण कवि अपनी सहज बात को शब्दों के जाल में उलझा देता है। फलत: उसके भाव जनता तक नहीं पहुँच पाते।
प्रश्न 4:
कवि को पसीना अाने का क्या कारण था?
उत्तर –
कवि अपनी बात को प्रभावशाली भाषा में कहना चाहता था। इस चक्कर में वह अपने लक्ष्य से भटककर शब्दों के आडंबर में उलझ गया। भाषा के चक्कर से वह अपनी बात को निकालने की कोशिश करता है, परंतु वह नाकाम रहता है। बार-बार कोशिश करने के कारण उसे पसीना आ जाता है।
प्रश्न 5:
कवि ने कथ्य को महत्व दिया है अथवा भाषा को-‘बात सीधी थी पर ’ ‘ के आधार पर तक-सम्मत उत्तर दीजिए।
उत्तर –
‘बात सीधी थी पर ’’ कविता में कवि ने कथ्य को महत्व दिया है। इसका कारण यह है कि सीधी और सरल बात को कहने के लिए जब कवि ने चमत्कारिक भाषा में कहना चाहा तो भाषा के चक्कर में भावों की सुंदरता नष्ट हो गई। भाषा के उलट-फेर में पड़ने के कारण उसका कथ्य भी जटिल होता गया।
प्रश्न 6:
‘बात सीधी थी पर ’ ‘ कविता में भाषा के विषय में व्यग्य करके कवि क्या सिद्ध करना चाहता है?
उत्तर –
‘बात सीधी थी पर ’’ कविता में कवि ने भाषा के विषय में व्यंग्य करके यह सिद्ध करना चाहा है कि लोग किसी बात को कहने के क्रम में भाषा को सीधे, सरल और सहज शब्दों में न कहकर तोड़-मरोड़कर, उलटपलटकर, शब्दों को घुमा-फिराकर कहते हैं, जिससे भाषा क्लिष्ट होती जाती है और बात बनने की बजाय बिगड़ती और उलझली चली जाती है। इससे हमारा कथ्य और भी जटिल होता जाता है क्योंकि बात सरल बनने की जगह पेचीदी बन जाती है।
स्वयं करें
आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
जोर जबरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!
हारकर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।
(क) बात की चूड़ी मरने का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश का भाव–सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ग) काव्यांश की भाषागत विशेषताएँ लिखिए।
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