प्रश्न. 1.
लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रियाँ बाधक होती हैं-इसके संदर्भ में अपने तर्क दीजिए।
उत्तर:
लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रियाँ बाधक होती हैं। मनुष्य की इंद्रियों का कार्य है-स्वयं को तृप्त करना। इनकी तृप्ति के चक्कर में मनुष्य जीवन भर भटकता रहता है। इंद्रियाँ मनुष्य को भ्रमित करती हैं तथा उसे कर्महीनता की तरफ प्रेरित करती हैं। इसके लिए इंद्रियों पर नियंत्रण रखना आवश्यक है। किसी लक्ष्य को तभी प्राप्त किया जा सकता है जब मन में एकाग्रता हो तथा इंद्रियों को वश में रखकर परिश्रम किया जाए। प्रत्येक लक्ष्य में इंद्रियाँ बाधक बनती हैं, परंतु बुदधि द्वारा उनको वश में किया जा सकता है।
प्रश्न. 2.
ओ चराचर! मत चूक अवसर-इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह पंक्ति अक्कमहादेवी अपने प्रथम वचन में उस समय कहती हैं जब वे अपने समस्त विकारों को शांत हो जाने के लिए। कह चुकी हैं। इसका आशय है कि इंद्रियों के सुख के लिए भाग-दौड़ बंद करने के पश्चात् ईश्वर प्राप्ति का मार्ग सरल हो जाता है। अतः चराचर (जड़-चेतन) को संबोधित कर कहती हैं कि तू इस मौके को मत खोना। विकारों की शांति के पश्चात् ईश्वर प्राप्ति का अवसर तुम्हारे हाथ में है, इसका सदुपयोग करो।
प्रश्न. 3.
ईश्वर के लिए किस दृष्टांत का प्रयोग किया गया है। ईश्वर और उसके साम्य का आधार बताइए।
उत्तर:
ईश्वर के लिए जूही के फूल का दृष्टांत दिया गया है। जूही का फूल कोमल, सात्विक, सुगंधित व श्वेत होता है। यह लोगों का मन मोह लेता है। वह बिना किसी भेदभाव के सबको खुशबू बाँटता है। इसी तरह ईश्वर भी सभी प्राणियों को आनंद देता है। वह कोई भेदभाव नहीं करता तथा सबका कल्याण करता है।
प्रश्न. 4.
अपना घर से क्या तात्पर्य है? इसे भूलने की बात क्यों कही गई है?
उत्तर:
अपना घर से तात्पर्य सांसारिक मोह-माया से है। संसार की वह चीजें जो हमें अपने-आप में उलझा लेती हैं, जिनसे हम प्रेम करते हैं वे हमारे ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में बाधक होती हैं। यदि हम उन्हें भूल जाएँ तो ईश्वर की ओर हमारा मन पूरी एकाग्रता के साथ लगता है। इसीलिए उन्हें भूल जाने की बात कही गई है।
प्रश्न. 5.
दूसरे वचन में ईश्वर से क्या कामना की गई है और क्यों?
उत्तर:
दूसरे वचन में ईश्वर से सब कुछ छीन लेने की कामना की गई है। कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना करती है कि वह उससे सभी तरह के भौतिक साधन, संबंध छीन ले। वह ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करे कि वह भीख माँगने के लिए मजबूर हो जाए। इससे उसका अहभाव नष्ट हो जाएगा। दूसरे, भूख मिटाने के लिए जब वह झोली फैलाए तो उसे भीख न मिले। अगर कोई देने के लिए आगे आए तो वह भीख नीचे गिर जाए। जमीन पर गिरी भीख को भी कुत्ता झपटकर ले जाए। वस्तुत: कवयित्री ईश्वर से सांसारिक लगाव को समाप्त करने के लिए कामना करती है ताकि वह ईश्वर में ध्यान एकाग्र भाव से लगा सके।
प्रश्न. 1.
क्या अक्कमहादेवी को कन्नड़ की मीरा कहा जा सकता है? चर्चा करें।
उत्तर:
हाँ, अक्क महादेवी को कन्नड़ की मीरा कहा जा सकता है। दोनों ने वैवाहिक जीवन को तोड़ा। दोनों ने सामाजिक बंधनों को नहीं माना। मीरा कृष्ण की दीवानी थी। उसने अपने जीवन में कृष्ण को अपना लिया था। इसी तरह अक्क महादेवी शिव की भक्त थीं। वे सांसारिकता को त्यागकर शिव के प्रति समर्पित थीं। वे मीरा से भी एक कदम आगे थीं। उन्होंने तो वस्त्र भी त्याग दिए थे। यह कार्य उन्हें योगियों के समक्ष लाकर खड़ा कर देता है।
प्रश्न. 1.
प्रस्तुत वचन में मनुष्य के कौन-कौन से स्वाभाविक विकारों का उल्लेख किया गया है?
उत्तर:
प्रत्येक मनुष्य में स्वाभाविक रूप से लोभ, मोह, काम, क्रोध, मद, ईष्र्या, नींद आदि विकार होते हैं। अक्कमहादेवी द्वारा प्रथम वचन में इनका उल्लेख किया गया है।
प्रश्न. 2.
सभी विकारों की शांति क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
मानव जीवन अत्यंत दुर्लभ है, इसे हम तृष्णाओं के पीछे भागते हुए गवाँ देते हैं और अंत तक तृष्णाएँ शांत नहीं हो पातीं, जिससे हम ईश्वर प्राप्ति की ओर नहीं बढ़ पाते। इसलिए इन्हें शांत करना आवश्यक है।
प्रश्न. 3.
‘मत चूक अवसर’ का क्या आशय है?
उत्तर:
मानव-जीवन दुर्लभ है, इसमें रहकर हम ईश्वर को प्राप्त करने का कार्य बड़ी सरलता से कर सकते हैं। कवयित्री अपने आराध्य के संदेश के रूप में यह बात हमें समझा रही हैं कि ईश्वर की ओर बढ़ो! संसार में उलझकर मौके को खो देना ठीक नहीं।
प्रश्न. 4.
हम सभी धन चाहते हैं और अक्क महादेवी भीख माँगने की कामना करती हैं। क्यों?
उत्तर:
हम और हमारा मन सांसारिक आकर्षणों में लीन रहना चाहते हैं, जबकि अक्क महादेवी संसार से विरक्त होकर ईश्वर को पाना चाहती हैं। इसलिए वे सभी भौतिक वस्तुओं और मोह-बंधन को त्यागकर स्वयं के दंभ को चूर-चूर का निस्पृह स्थिति में पहुँचना चाहती हैं।
प्रश्न. 5.
अहंकार ईश्वर प्राप्ति में बाधक है। कैसे?
उत्तर:
ईश्वर एक ऐसी अनुभूति है जिसमें हम स्वयं को भूलकर, अपने अस्तित्व को खोकर ईश्वर में ही लीन हो जाते हैं। यदि हम में अहं-भाव है तो विनम्र-भाव नहीं हो सकता और इस दशा में हम ईश्वर में लीन होना तो दूर, उसके समक्ष झुक भी नहीं सकते। अतः ईश्वर के साथ एकाकार होने के लिए अहं का त्याग जरूरी है।
प्रश्न. 6.
पहले भीख और फिर भोजन के न मिलने की कामना क्यों की गई है?
उत्तर:
सभी अहंकारों और आत्म-सम्मान को त्यागने के बाद ही कोई भीख माँग सकता है और भोजन को भी कोई कुत्ता झपट ले तो मन वैराग्य की ओर बढ़ता है। इसीलिए यह कामना की गई है।
प्रश्न. 7.
कवयित्री मनोविकारों को क्यों दुत्कारती है?
उत्तर:
कवयित्री मनोविकारों को बंधन का कारण मानती है। मनोविकार मनुष्य को सांसारिक मोहमाया में लिप्त रखते हैं। मोह से संग्रह, क्रोध से विवेक खोना, लोभ से गलत कार्य, अहंकार से मदहोश आदि प्रवृत्तियों का उदय होता है। इस कारण मनुष्य स्वयं को महान समझता है। इसी अहंभाव के कारण मानव ईश्वर भक्ति से दूर हो जाता है।
प्रश्न. 8.
कवयित्री ने ईश्वर और जूही के माध्यम से क्या उदाहरण दिया है?
उत्तर:
कवयित्री का कहना है कि जिस प्रकार जूही का फूल अपनी खुशबू से लोगों को आनंद देता है, उसी प्रकार ईश्वर लोगों का कल्याण करता है।
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