Ncert solutions for class 11 biology Chapter 4 Animal Kingdom (प्राणि जगत) updated
Chapter 4 Animal Kingdom
प्रश्न 1.
यदि मूलभूत लक्षण ज्ञात न हों तो प्राणियों के वर्गीकरण में आप क्या परेशानियाँ महसूस करेंगे?
उत्तर :
प्रश्न 2.
यदि आपको एक नमूना (specimen) दे दिया जाये तो वर्गीकरण हेतु आप क्या कदम अपनाएँगे?
उत्तर :
प्रश्न 3.
देहगुहा एवं प्रगुहा का अध्ययन प्राणियों के वर्गीकरण में किस प्रकार सहायक होता है?
उत्तर :
देहभित्ति एवं कूटगुहा (pseudocoelom) के बीच प्रगुहा की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति वर्गीकरण के लिए विशेष प्रयोजनीय है। देहगुहा जब मीसोडर्म से स्तरित रहता है तब इसे सीलोम (coelom) कहते हैं। जिन जन्तुओं में सीलोम उपस्थित रहता है उन्हें सीलोमेटा (coelomata) कहते हैं, जैसे एनेलिडा, मोलस्का, आर्थोपोडा, इकाइनोडर्मेटा , हेमीकॉडेंटा तथा कॉडेंटा। कुछ जन्तुओं में देहगुहा मीसोडर्म द्वारा स्तरित नहीं होती, लेकिन एक्टोडर्म एवं एण्डोडर्म के बीच छोटी-छोटी गोलाकार आकृति में छितरा रहता है। इस तरह की देहगुहा को आहारनाल कहते हैं एवं उन जन्तुओं को स्यूडोसीलोमेटा (pseudocoelomata) कहते हैं, जैसे-एस्केल्मिंथीज (Aschelminthes)। जिन जन्तुओं में देहगुहा अनुपस्थित रहती है उन्हें एसीलोमेट्स (acoelomates) कहते हैं, जैसे-प्लेटीहेल्मिंथीज (Platyhelminthes)।
प्रश्न 4.
अन्तः कोशिकीय एवं बाह्य कोशिकीय पाचन में विभेद करें।
उत्तर :
अन्तः कोशिकीय एवं बाह्य कोशिकीय पाचन में निम्नलिखित अन्तर है
प्रश्न 5.
प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष परिवर्धन में क्या अन्तर है?
उत्तर :
प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष परिवर्धन में निम्नलिखित अन्तर हैं
प्रश्न 6.
परजीवी प्लेटीहेल्मिंथीज के विशेष लक्षण बताइए।
उत्तर :
प्रश्न 7.
आर्थोपोडा प्राणी समूह का सबसे बड़ा वर्ग है। इस कथन के प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर :
प्रश्न 8.
जल संवहन तन्त्र किस वर्ग का मुख्य लक्षण है
(a) पोरीफेरा
(b) टीनोफोरा
(e) इकाइनोडर्मेटा
(d) कॉडेंटा
उत्तर :
(c) इकाइनोडर्मेटा
प्रश्न 9.
सभी कशेरुकी (vertebrates) रज्जुकी (chordates) हैं लेकिन सभी रज्जुकी कशेरुकी नहीं हैं इस कथन को सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
सभी कॉडेंट्स (chordates) में पृष्ठ रज्जु (notochord) पायी जाती है। कॉडेंट्स के अन्तर्गत यूरोकॉडेंटा तथा सेफैलोकॉडेंटा (दोनों को प्रोटोकॉडेंटा कहा जाता है) तथा वर्टीब्रेटा सम्मिलित हैं। कशेरुकियों (vertebrates) में पृष्ठ रज्जु (notochord) भ्रूणीय अवस्था में पायी जाती है। वयस्क अवस्था में पृष्ठ रज्जु अस्थिल अथवा उपास्थिल मेरुदंड (backbone) में परिवर्तित हो जाती है। यद्यपि प्रोटोकॉडेंटस में वर्टिब्रल कॉलम (vertibral column) नहीं पायी जाती है। अतः कशेरुकी (vertebrates) रज्जुकी (chordates) भी हैं, परन्तु सभी रज्जुकी, कशेरुकी नहीं हैं।
प्रश्न 10.
मछलियों में वायु-आशय (air bladders) की उपस्थिति का क्या महत्त्व है?
उत्तर :
मछलियों में वायु कोष/आशय (air bladders) उत्प्लावन (buoyancy) में सहायक होते हैं। इनकी सहायता से मछलियाँ जल में तैरती हैं। वायु कोष इन्हें जेल में डूबने से बचाते हैं। वायु कोष वर्ग ओस्टिक्थीज (osteichthyes) में पाये जाते हैं जबकि वर्ग कॉन्ड्रीक्थीज (chondrichthyes) में अनुपस्थित होते हैं। जिन मछलियों में वायु कोष नहीं होते हैं उन्हें जल में डूबने से बचने के लिये लगातार तैरना पड़ता है।
प्रश्न 11.
पक्षियों में उड़ने हेतु क्या-क्या रूपान्तरण हैं?
उत्तर :
प्रश्न 12.
क्या अण्डजनक तथा जरायुज द्वारा उत्पन्न अण्डे या बच्चे संख्या में बराबर होते हैं? यदि हाँ तो क्यों? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर :
नहीं, अण्डजनक (oviparous) जन्तुओं में अण्डे से बच्चा मादा शरीर के बाहर अर्थात् बाह्य वातावरण में विकसित होता है। अत: बहुत से अण्डों के नष्ट होने की संभावना होती है। इसलिए ये जन्तु अधिक संख्या में अण्डे देते हैं। जरायुज (viviparous) जन्तुओं में भ्रूण का विकास मादा शरीर के अन्दर होता है। अतः केवल 1 या कुछ बच्चे ही उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न 13.
निम्नलिखित में से शारीरिक खण्डीभवन किसमें पहले देखा गया?
(a) प्लेटीहेल्मिंथीज
(b) एस्केल्मिंथीज
(c) एनेलिडा
(d) आर्थोपोडा
उत्तर :
(c) एनेलिडा
प्रश्न 14.
निम्न का मिलान कीजिए
(a) प्रच्छद (Operculum) – (I) टीनोफोरा (Ctenophora)
(b) पाश्र्वपाद (Parapodia) – (II) मोलस्का (Mollusca)
(c) शल्क (Scales) – (III) पोरीफेरा (Porifera)
(d) कंकत पट्टिका(Comb plates) – (IV) रेप्टीलिया (Reptillia)
(e) रेडूला (Radula) – (V) एनेलिडा (Annelida)
(f) बाल (Hairs) – (VI) साइक्लोस्टोमेटा एवं कॉन्ड्रीक्थीज (Cyclostomata and Chondrichthyes)
(g) कीपकोशिका (Choanocytes) – (VII) मैमेलिया (Mammalia)
(h) क्लोम छिद्र (Gill slits) – (VIII) ऑस्टिक्थीज (Osteichthyes)
उत्तर :
(a) (VIII)
(b) (V)
(c) (IV)
(d) (I)
(e) (II)
(f) (VII)
(g) (III)
(h) (VI)
प्रश्न 15.
मनुष्यों पर पाये जाने वाले कुछ परजीवियों के नाम लिखिए।
उत्तर :
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
ऐसे जीव जो पानी की सतह पर उतराते रहते हैं, वे क्या कहलाते हैं?
(क) नितलस्थ
(ख) पिलैजिक
(ग) प्लवकीय
(घ) उभयचरी
उत्तर :
(ग) प्लवकीय
प्रश्न 2.
संघ पोरीफेरा का वर्गीकरण किस पर आधारित है ?
(क) नालतंत्र
(ख) कंटिकाएँ
(ग) कोएनोसाइट्स का आकार
(घ) एस्कोसाइट्स
उत्तर :
(ख) कंटिकाएँ
प्रश्न 3.
स्पंजों में ‘टोटीपोटेन्ट’ कोशिकाएँ होती हैं।
(क) थीजोसाइट्स
(ख) ट्रोफोसाइट्स
(ग) आर्किओसाइट्स
(घ) कोएनोसाइट्स
उत्तर :
(ग) आर्किओसाइट्स
प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन स्वतंत्रजीवी है?
(क) फैसिओला
(ख) टीनिया
(ग) प्लैनेरिया
(घ) सिस्टोसोमा
उत्तर :
(ग) प्लैनेरिया
प्रश्न 5.
क्लाइटेलम केंचुए के किन खण्डों में होता है?
(क) 19, 20 तथा 21
(ख) 14, 15 तथा 16
(ग) प्रथम तीन खण्ड
(घ) अन्तिम तीन खण्ड
उत्तर :
(ख) 14, 15 तथा 16
प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है?
(क) दोमुँहा सर्प (इरिक्स जोनाई) में मुँह आगे तथा पीछे दोनों ओर होते हैं।
(ख) बड़ों की अपेक्षा छोटे स्तनधारी प्राणियों की आधारी उपापचय दर (बी०एम०आर०) प्रायः अधिक होती है
(ग) फैसिओला हिपेटिका में गुदा द्वार तथा वास्तविक सीलोम नहीं पाया जाता
(घ) एड्रीनल ग्रन्थि से स्रावित हॉर्मोन्स को ‘जीवन-रक्षक’ हॉर्मोन्स भी कहते हैं।
उत्तर :
(क) दोमुँहा सर्प (इरिक्स जोनाई) में मुँह आगे तथा पीछे दोनों ओर होते हैं।
प्रश्न 7.
पक्षियों के वायु-कोष सहायक होते हैं।
(क) रुधिर परिसंचरण में
(ख) ताप नियन्त्रण में
(ग) शरीर भार को कम करने में
(घ) शरीर को गर्म रखने में
उत्तर :
(ग) शरीर भार को कम करने में
प्रश्न 8.
निम्न में से किसकी अनुपस्थिति में चिड़िया चमगादड़ से भिन्न होती है ?
(क) समशीतोष्णता (समतापता)
(ख) चतुर्वेश्मी हृदय
(ग) श्वासनली
(घ) डायफ्राम
उत्तर :
(घ) डायफ्राम
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
स्पंज के व्यक्तित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
यह बहुकोशिकीय जन्तु होता है जिसका शरीर ऊतकों में विभाजित नहीं होता है। यह जन्तु जलीय होता है तथा अधिकांशतः समुद्रों में, पत्थरों पर, शिलाओं पर, लकड़ी के लट्ठों, अन्य जन्तुओं के खोलों आदि पर चिपका रहता है। इसके शरीर की रचना अति सरल होती है। इसकी देहभित्ति में असंख्य सूक्ष्मछिद्र होते हैं जिससे बाहरी जल से लगातार इसका सम्पर्क रहता है। यह जल छिद्रों से अन्दर स्पंजगुहा में आता है तथा ऑस्कुलम से बाहर निकल जाता है।
प्रश्न 2.
प्रोटोस्टोमिया तथा ड्यूटेरोस्टोमिया में दो अन्तर बताइए।
उत्तर :
प्रश्न 3.
केंचुआ तथा तिलचट्टे के उत्सर्जन अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर :
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित जन्तुओं का वर्गीकरण कीजिए
(i) मकड़ी
(ii) टिड्डी
(iii) तारामीन या सितारा मछली
(iv) घोंघा (पाइला)/सेब घोंघा
(V) कटल फिश
(vi) केंचुआ
(vii) हाइड्रा
(viii) घरेलू मक्खी
(ix) फीताकृमि
(x) लिवर फ्लूक
(xi) यूग्लीना
(xii) पैरामीशियम
(xiii) जोंक
(xiv) समुद्री अर्चिन
(xv) पुर्तगीज मैन ऑफ वार
उत्तर :
प्रश्न 2.
हाइड्रा में श्रम विभाजन पर टिप्पणी लिखिए। या ऊतकीय विभेदीकरण की परिभाषा दीजिए। हाइड्रा के शरीर की संरचना के सन्दर्भ में इसे संक्षेप में समझाइए।
उत्तर :
ऊतकीय विभेदन तथा शरीर क्रियात्मक श्रम विभाजन प्रत्येक जीवधारी गमन, श्वसन, पोषण, उत्सर्जन, वृद्धि, जनन आदि जैविक क्रियाएँ करने में सक्षम होता है। प्रोटोजोआ संघ के सदस्य एककोशिकीय (unicellular) होने पर भी उपर्युक्त क्रियाएँ सम्पन्न कर पाते हैं, जबकि उच्च श्रेणी के जन्तु बहुकोशिकीय होते हैं तथा विभिन्न महत्त्वपूर्ण क्रियाओं के लिए उनके अनुसार विशिष्ट ऊतक तन्त्रों एवं अंगों का निर्माण कर लेते हैं। हेनरी मिल्नी एडवर्ड (Henry Milne Edward,1800-1885) के अनुसार, जिस प्रकार मानव समाज में कार्यों का विभाजन (जैसे—अध्यापक, चिकित्सक, इन्जीनियर, कृषक, बढ़ई, लुहार, अन्य मजदूर आदि) होता है, उसी प्रकार प्राणियों के शरीर में जैविक क्रियाओं के लिए कोशिकाओं के बीच क्रियात्मक श्रम विभाजन होता है। प्राणी जगत् में हाइड्रा से ही वास्तविक संरचनात्मक विभेदीकरण तथा इससे सम्बन्धित क्रियात्मक श्रम विभाजन प्रारम्भ हुआ है। हाइड्रो एक द्विस्तरीय (diploblastic) प्राणी है और इसकी देहभित्ति के एक्टोडर्म व एण्डोडर्म स्तर विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं से बने होते हैं। ये कोशिकाएँ विभिन्न कार्यों के लिए उपयोजित होती हैं।
एक्टोडर्म की उपकला-पेशी कोशिकाएँ मुख्यत: रक्षात्मक होती हैं तथा शरीर के फैलने व सिकुड़ने में सहायता प्रदान करती हैं। अन्तराली कोशिकाएँ रूपान्तरित होकर अन्य प्रकार की कोशिकाओं को जन्म देती हैं। जनन कोशिकाएँ केवल जनन में योगदान देती हैं। दंश कोशिकाएँ सुरक्षा, आक्रमण, चिपकने एवं शिकार पकड़ने का कार्य करती हैं। ग्रन्थिम-पेशी कोशिकाएँ हाइड्रा को आधार से चिपकने एवं गमन में सहायता करती हैं। एण्डोडर्म की पोषक-पेशी कोशिकाएँ अमीबा के समान हाइड्रा को भोजन के प्राणिसम अन्तर्ग्रहण (holozoic ingestion) में सहायता करती हैं। हाइड्रा में कोई विशिष्ट संवहन व उत्सर्जन तन्त्र नहीं पाया जाता है। इस प्रकार, हाइड्रा एक सरल द्विस्तरीय प्राणी है, जिसमें संरचनात्मक विभेदीकरण के क्रियात्मक श्रम विभाजन से सम्बन्धित होने के कारण जैविक क्रियाएँ सुविधापूर्वक सम्पन्न होती हैं।
प्रश्न 3.
पोरीफेरा संघ में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के नाल तन्त्रों का उल्लेख कीजिए। या नाल तन्त्र क्या है ? साइकॉननाल तन्त्र का सचित्र वर्णन कीजिए तथा ल संवहन पथ को तीरों द्वारा प्रदर्शित कीजिए। नाल तन्त्र के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। या निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए-स्पंज में नाल तन्त्र।
उत्तर :
संघ-पोरीफेरा (स्पंजों) में नाल तन्त्र स्पंजों के शरीर की भित्ति में अनेक छिद्रों एवं नलियों का जाल बना होता है, जिसके माध्यम से कीप कोशिकाओं (choanocytes) के कशाभिकों (flagella) की निरन्तर गति होते रहने से स्पंज गुहा (Spongocoel) में जल प्रवाह की धारा अविरल बनी रहती है। इसे नाल तन्त्र या नाल प्रणाली (canal system) कहते हैं। नाल तन्त्र स्पंजों के शरीर का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तन्त्र होता है। स्पंजों की सम्पूर्ण कार्यिकी; जैसे-श्वसन, उत्सर्जन, पोषण आदि नाल तन्त्र में प्रवाहित होने वाले जल द्वारा ही पूरी होती है।
नाल तन्त्रों के प्रकार
स्पंजों में शारीरिक संगठन की जटिलता के आधार पर निम्नलिखित प्रकार के नाल तन्त्र पाये जाते हैं।
1. एस्कॉन प्रकार का नाल तन्त्र :
स्पंजों में पाया जाने वाला यह सबसे सरल प्रकार का नाल तन्त्र है। इस प्रकार के नाल तन्त्र में स्पंज गुहा (spongoceal) के अन्दर उपस्थित कीप कोशिकाओं की कशाभिकाओं की निरन्तर गति के कारण बाहरी जल की अविरल धारा असंख्य ऑस्टिया (रन्ध्रों) से होकर सीधे स्पंज गुहा में प्रवेश करती है और ऑस्कुलम से होकर बाहर निकलती है। इस प्रकार स्पंज का पूरा शरीर एक नाले तन्त्र का कार्य करता है। ल्यूकोसोलेनिया Leucosolenia) नामक सरल स्पंज में इसी प्रकार का नाल तन्त्र पाया जाता है।
2. साइकॉन प्रकार की नाल तन्त्र :
इस प्रकार का नाल तन्त्र साइकॉन (स्काइफा) एवं कुछ अन्य स्पंजों में पाया जाता है। यह मूलतः एस्कॉन प्रकार के नाल तन्त्र की भित्ति में अनुप्रस्थ वलन (transverse folds) हो जाने से बनता है। इससे स्पंज की देहभित्ति, पास-पास सटी व शरीर के अक्ष के समकोण पर स्थित अनेक महीन नलिकाओं का रूप ले लेती है, जिन्हें अरीय नाल (radial canals) कहते हैं। प्रत्येक अरीय नाल बाहर की ओर बन्द होती है और भीतर की ओर एक बड़े छिद्र द्वारा स्पंज गुहा में खुलती है जिसे निर्गम छिद्र या अपद्वार या एपोपाइल (apopyle) कहते हैं। इस प्रकार के नाल तन्त्र में ऑस्टिया अरीय नलिकाओं की भित्ति में होते हैं जिन्हें आगामी द्वार या प्रोसोपाइल (prosopyle) कहते हैं।
कीप कोशिकाएँ केवल अरीय नालों को स्तरित करती हैं। स्पंज गुहा का भीतरी स्तर पिनैकोसाइट कोशिकाओं का होता है। अरीय नालों की भित्ति के बीच के स्थान अन्तर्वाही नालों (incurrent canals) का रूप ले लेते हैं। ये स्पंज गुहा की ओर बन्द किन्तु शरीर की बाहरी सतह पर खुलती हैं। बाहरी जल पहले अन्तर्वाही नालों में आता है और आगामी द्वार या प्रोसोपाइल (prosopyle) में होकर अरीय नलिकाओं (जिन्हें कशाभीनलिकाएँ भी कहते हैं) में और फिर एपोपाइल्स द्वारा स्पंज गुहा में आता है। स्पंज गुहा में आया हुआ ल ऑस्कुलम से होकर बाहर निकल जाता है।
3. ल्यूकॉन प्रकार का नाल तन्त्र :
यह सबसे जटिल प्रकार का नाल तन्त्र है। इस प्रकार का नालतन्त्र स्पॉन्जिला (Spongilla) आदि स्पंजों में पाया जाता है। इसका निर्माण कशाभिकी लिकाओं की दीवार के वलन से होता है। वलन के कारण इन नलिकाओं की दीवार में छोटे-छोटे गोले कक्ष बन जाते हैं। इन कक्षों को कशाभिकी कक्ष flagellated chambers) कहते हैं। कीप कोशिकाएँ इन कक्षों की दीवार पर ही सीमित रह जाती हैं। अरीय नलिकाओं की गुहाओं के चारों ओर पिनैकोसाइट्स का स्तर होता है। इन्हें अपवाही नलिकाएँ (excurrent canals) कहते हैं। इसमें बाहरी जल पहले अन्तर्वाही नलिकाओं (incurrent canals) में, फिर प्रोसोपाइल्स से कशाभी कक्षों में और एपोपाइल्स से अपवाही नलिकाओं में से होता हुआ स्पंज गुहा में आकर ऑस्कुलम से बाहर निकल जाता है।
प्रश्न 4.
दंश कोशिकाओं की संरचना एवं कार्य समझाइए। या हाइड्रा में पायी जाने वाली दो प्रकार की दंश कोशिकाओं का सचित्र वर्णन कीजिए। , या हाइड्रा की दंश कोशिका की स्खलित अवस्था का एक नामांकित चित्र बनाइए (वर्णन की । आवश्यकता नहीं है)। या हाइड्रा में पायी जाने वाली पेनीट्रैण्ट प्रकार की दंश कोशिकाओं का सचित्र वर्णन कीजिए। या टिप्पणी लिखिए-दंश कोशिका।
उत्तर :
दंशिका की संरचना
दंश कोशिका की इस थैलीनुमा रचना का मुख्य भाग सम्पुट (capsule) कहलाता है। सम्पुट के अग्र सिरे पर भित्ति अन्दर की ओर धंसकर एक गड्डा बनाती है, जो झिल्ली द्वारा ढका रहता है। इस गड्ढे में पायी जाने वाली सूक्ष्म कणिकाओं में एक विशिष्ट पदार्थ भरा रहता है। यह सम्पुट के ढक्कन (lid of operculum) का कार्य करता है। भीतर की ओर धंसने वाली भित्ति एक लम्बे, कुण्डलित वे काँटेदार सूत्र (thread) में रूपान्तरित होती है।
दंशिकाओं के प्रकार
संध निडेरिया के विभिन्न सदस्यों में पायी जाने वाली दंश कोशिकाओं में लगभग 30 प्रकार की दंशिकाएँ होती हैं। हाइड्रा में कुल चार प्रकार की दंशिकाएँ पायी जाती हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है।
1. स्टीनोटील्स अथवा पेनीटैण्ट्स (Stenoteles or Penetrants) :
ये सबसे बड़ी व जटिल रचना वाली दंशिका हैं। इनके बड़े कुन्दे पर स्टाइलेट्स व शूल (stylets and spines) पाये जाते हैं। इनके सूत्रों पर भी शूलों (spines) की तीन सर्पिल पंक्तियाँ होती हैं।
2. होलोट्राइकस आइसोराइजाज (Holotrichous Isorhizas) :
ये कुछ लम्बी, अण्डाकार तथा कुन्दविहीन होती हैं। इनका सूत्र लम्बा व सिरे पर खुला होता है। इन पर स्पाइन्स की केवल एक ही सर्पिल पंक्ति होती है।
3. एट्राइकस आइसोराइजाज (Atrichous Isorhizas) :
ये कुछ छोटी होती हैं तथा इनके सूत्रों पर स्पाइन्स नहीं पाये जाते हैं।
4. डेस्मोनीम या वॉलवेण्ट (Desmoneme Or Volvent) :
सबसे छोटी, 9 μ व्यास की, नाशपाती के आकार की, गोल व अण्डाकार इन दंशिकाओं को सूत्र छोटा, मोटा, सिरे पर बन्द व कुन्दविहीन होता है। ये एक ही बार कुण्डलित होती हैं तथा इन पर केवल कुछ ही स्पाइन्स पाये जाते हैं।
5.दंशिकाओं का दगना या स्खलन (Dscharge of Nematocysts)
उत्तेजित होने पर दंश कोशिकाओं के सूत्र तुरन्त झटके के साथ ऑपरकुलम को धकेल कर बाहर निकल आते हैं। इस प्रकार भीतरी पदार्थ एवं काँटे सूत्र के साथ दंशिका की बाहरी सतह पर आ जाते हैं। इवान्जोफ (Iwanzoff, 1895) के मतानुसार दंशिका में जब भी द्रव्य का दबाव बढ़ता है तो यह स्खलित हो जाती है।
दंशिकाओं के कार्य
प्रश्न 5.
ज्वाला कोशिका किसे कहते हैं? यह किस जन्तु में पायी जाती हैं? इसके कार्य लिखिए। या ज्वाला कोशिकाओं की संरचना एवं कार्य समझाइए।
उत्तर :
ज्वाला कोशिकाएँ या शिखा कोशिकाएँ ये विशेष प्रकार की उत्सर्जी (excretory) कोशिकाएँ हैं जिनमें प्रमुखतः दो भाग होते हैं।
ज्वाला कोशिकाएँ प्लेटीहेल्मिन्थीज समूह की उत्सर्जन इकाइयाँ होती हैं। टीनिया जैसे अन्त:परजीवी जन्तुओं में इनका कार्य स्पष्ट नहीं है।
प्रश्न 6.
नर तथा मादा ऐस्कैरिस में अन्तर स्पष्ट कीजिए। या मनुष्य के शरीर में पाये जाने वाले गोलकृमि का वैज्ञानिक नाम व वासस्थान (अंग) लिखिए तथा उनके नर व मादा के एक-एक पहचान के लक्षण बताइए।
उत्तर :
मनुष्य में पाया जाने वाला गोलकृमि-ऐस्कैरिस लम्ब्रीकॉयडिस (Ascaris lumbricoides)। इसका वासस्थान (अंग)-मनुष्य की आँत।
नर तथा मादा ऐस्कैरिस में अन्तर
प्रश्न 7.
निम्नलिखित के नामांकित चित्र बनाइए
(क) मादा ऐस्कैरिस के मध्य भाग की अनुप्रस्थ काट।
(ख) नर ऐस्कैरिस के मध्य भाग की अनुप्रस्थ काट।
उत्तर :
(क)
मादा ऐस्कैरिस के मध्य भाग की अनुप्रस्थ काट
(ख)
नर ऐस्कैरिस के मध्य भाग की अनुप्रस्थ काट
प्रश्न 8.
केंचुए के आर्थिक महत्त्व का वर्णन कीजिए या “केंचुए किसानों के परम मित्र हैं?” संक्षेप में स्पष्ट कीजिए। या केंचुए की जैव पारिस्थितिकी एवं आर्थिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
केंचुए का आर्थिक महत्त्व केंचुए ‘किसान के मित्र’ कहे जाते हैं, क्योंकि वे खेतों की मिट्टी को सुरंगें बनाकर पोली कर देते हैं तथा नीचे की मिट्टी को ऊपर पलट देते हैं, जिससे भूमि अधिक उपजाऊ बनती है। इसके साथ ही केंचुए कार्बनिक पदार्थों को सुरंगों में ले जाते हैं जो खाद के रूप में सहायक होते हैं तथा केंचुए स्वयं भी मरकर सुरंगों के अन्दर खाद के रूप में बदल जाते हैं। केंचुए से मनुष्य को खेती के लिए उपजाऊ भूमि प्राप्त करने के अतिरिक्त अन्य लाभ भी हैं; जैसे
प्रश्नु 9.
किन्हीं दो ऐसे लक्षणों को लिखिए जो नॉन-कॉडेंट्स को कॉडेंट्स से पूर्णतः विभेदित करते हैं?
उत्तर :
कॉडेंट एवं नॉन-कॉडेंट में अन्तर
प्रश्न 10.
निम्नलिखित के संघ सहित जन्तु वैज्ञानिक नाम लिखिए
(क) जेली फिश (jelly fish)
(ख) सिल्वर फिश (silver fish)
(ग) स्टार फिश (star fish)
(घ) डॉग फिश (dog fish)
(ङ) कबूतर (pigeon)
(च) खरगोश (rabbit)
(छ) जोंक (leech)
उत्तर :
सामान्य नाम :
प्रश्न 11.
चमगादड़ का वर्गीकरण वर्ग तक कीजिए तथा इसके दो लक्षण लिखिए।या चमगादड़ चिड़ियों के समान उड़ता है फिर भी इसे स्तनी वर्ग में क्यों रखा गया है ?
उत्तर :
लक्षण :
प्रश्न 12.
कारण बताइए
(अ) हेल मछली नहीं, स्तनधारी है। क्यों?
(ब) एकिडना अण्डे देता है, फिर भी स्तनधारी वर्ग का सदस्य है। क्यों?
उत्तर :
ह्वेल मछली तथा एकिडना दोनों को ही संघ कॉडेंटा वर्ग-स्तनधारी में रखा गया है, क्योंकि इनमें बाल तथा स्तन ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं। दाँत, विषमदन्ती एवं गर्तदन्ती होते हैं। ग्रीवा कशेरुकाओं की संख्या सात होती है। मध्य कर्ण में तीन छोटी अस्थियाँ पाई जाती हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित जन्तुओं का वर्गीकरण कीजिए
(i) जेली फिश (jelly fish)
(ii) मेंढक (frog)
(iii) गौरेया (sparrow)
(iv) कुत्ता मछली (स्कोलिओडॉन) (dog fish)
(v) समुद्री घोड़ा (sea horse)
(vi) घरेलू छिपकली (wall lizard)
(vii) नाग(cobra)
(viii) कबूतर (pigeon)
(ix) आधुनिक मनुष्य (modern man)
(x) झींगा मछली (prawn)
(xi) तिलचट्टा (cockroach)
(xii) टोड (toad)
(xiii) ड्रैको (Draco)
(xiv) खरगोश (rabbit)
प्रश्न 2.
कॉडेटा संघ के प्राणियों के मूल लक्षणों का सविस्तार वर्णन कीजिए। स्तनी वर्ग के प्राणियों को उपवर्ग तक प्रमुख लक्षणों एवं उदाहरण सहित वर्गीकृत कीजिए। या स्तनी वर्ग के प्राणियों के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए तथा प्रोटोथेरिया, मेटाथेरिया एवं यूथेरिया में उदाहरणों सहित अन्तर बताइए। या पृष्ठवंशी के चार मूल लक्षणों को लिखिए।
उत्तर :
संघ-कॉडेंटा के प्रमुख लक्षण
स्तनधारियों (मैमेलिया) के प्रमुख लक्षण
स्तनधारियों का वर्गीकरण
पुराने वर्गीकरण में वर्ग मैमेलिया को सीधे तीन उपवर्गों (subclasses) में बाँट दिया करते थे-प्रोटोथेरिया, मेटाथेरिया तथा यूथेरिया किन्तु वर्तमान में वर्ग मैमेलिया को दो उपवर्गो-प्रोटोथेरिया (prototheria) तथा थेरिया (theria) में वर्गीकृत करते हैं।
उपवर्ग 1.
प्रोटोथेरिया :
उदाहरण :
(i) डकबिल प्लेटोपस (Duckbill platypus) या ऑर्निथोरिंकस (Ornithorhynchus),
(ii) एकिडना (echidna) आदि।
उपवर्ग 2.
थेरिया
अधिवर्ग 1 :
पैण्टोथेरिया (Pantotheria) :
सभी जन्तु विलुप्त हो चुके हैं।
अधिवर्ग 2 :
मेटाथेरिया (Metatheria) :
कुछ ही जन्तु जीवित हैं। इनके निम्नलिखित लक्षण हैं।
उदाहरण :
(i) ऑस्ट्रेलिया का कंगारू (Macropus)
(ii) तस्मानिया का डैसीयूरस (Dasyurus)
(iii) अमेरिका : का ओपोसम (Opossum or Didelphis)
अधिवर्ग 3.
यूथेरिया (Eutheria) :
पूर्ण विकसित स्तनी हैं। इनके निम्नलिखित लक्षण हैं।
उदाहरण :
(i) चूहा
(ii) खरगोश
(iii) चमगादड़
(iv) ह्वेल
(v) हाथी
(vi) मनुष्य आदि।
प्रश्न 3.
उभयचर वर्ग के प्राणियों के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए। इस वर्ग को गण तक उनके लक्षणों एवं उदाहरणों सहित वर्गीकृत कीजिए। या उभयचर वर्ग (क्लास एम्फिबिया) के दो प्राणियों के जन्तु-वैज्ञानिक नाम लिखिए तथा उनके चार प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर :
उभयचरों के प्रमुख लक्षण
उदाहरण :
1. सामान्य मेंढक :
राना टिग्रीना तथा
2. टोड :
ब्यूफो मिलेनोस्टिक्टस
उभयचरों का वर्गीकरण
विलुप्त तथा जीवित सभी उभयचरों को पाँच उपवर्गों तथा 10 गणों में वर्गीकृत किया गया है।
A.
उपवर्ग लेबरिन्थोडोन्शिया (Labrinthodontia) :
विकास में पहले उभयचर। केवल विलुप्त जातियाँ। तीन गणों (orders) में वर्गीकृत; जैसे – सेमूरिया (Seymouria)
B.
उपवर्ग लीपोस्पोन्डाइली (Lepospondyli) :
सभी विलुप्त पुरातन उभयचर। तीन गंणों में वर्गीकृत; जैसे-डिप्लोकॉलस (Diplocaulus)।
C.
उपवर्ग सैलेन्शिया (Salientia) :
दो गण
लक्षण :
D.
उपवर्ग यूरोडेला (Urodela) :
विलुप्त एवं विद्यमान जातियाँ, एक ही गण, कॉडेटा (Caudata)
लक्षण :
E.
उपवर्ग ऐपोडा (Apoda) :
एक गण जिम्नोफियोना (Gymnophiona)
लक्षण :
प्रश्न 4.
सरीसृप वर्ग के प्राणियों के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए तथा गण तक उदाहरण सहित वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर :
वर्ग रेप्टीलिया (सरीसृप) के प्रमुख
लक्षण :
सरीसृपों का वर्गीकरण
सरीसृप वर्ग को निम्नलिखित 6 उपवर्गों में बाँटा गया है।
(क)
उपवर्ग ऎनेप्सिडा (Subclass Anapsida) :
करोटि का पृष्ठ भाग पूर्ण अर्थात् इसके टेम्पोरल क्षेत्र में कोई छिद्र (fossa) नहीं, क्वाड्रेट अस्थि कर्ण अस्थि से समेकित। तीन गण (orders), दो में केवल विलुप्त जातियाँ, केवल एक (किलोनिया) में विलुप्त एवं विद्यमान जातियाँ। गण किलोनिया (Order Chelonia)-विभिन्न प्रकार के कछुए (turtles, tortoises and terrapins)।
उदाहरण :
ट्रायोनिक्स (Trionyx) :
भारतीय नदियों का कछुआ
(ख)
उपवर्ग यूरेऐप्सिडा (Subclass Euryapsida) :
विलुप्त जातियाँ, दो गण।
(ग)
उपवर्ग सिनेप्सिडा (Subclass Synapsida) :
विलुप्त जातियाँ, दो गण।
(घ)
उपवर्ग इथिओप्टेरीजिया (Subclass Ichthyopterygia) :
विलुप्त जातियाँ, एक गण।
(ङ)
उपवर्ग लेपिडोसॉरिया (Subclass Lepidosauria) :
एक विलुप्त तथा दो विलुप्त एवं विद्यमान जातियों के गण।करोटि (skull) के टेम्पोरल क्षेत्र में दो जोड़ी टेम्पोरल छिद्र (temporal fossae)
विलुप्त एवं विद्यमान जातियों के दो गण निम्नलिखित हैं
1.
गण रिकोसिफैलिया (Order Rhynchocephalia) :
इसकी अब एक ही जाति स्फीनोडॉन पंक्टेटस (Sphenodon punctatus)-न्यूजीलैण्ड के निकट छोटे-छोटे द्वीपों में पाई जाती है। इसे स्थानीय लोग टुआटरा (Tuatara) कहते हैं। इसके लक्षण विलुप्त सरीसृपों जैसे हैं। अतः ये “जिन्दा जीवाश्म (living fossils)’ कहलाते हैं। लगभग 55 सेमी लम्बा शरीर छिपकली-जैसा और बहुत सुस्त। बिलों से रात्रि में निकलकर (nocturnal) केंचुओं, घोंघों, कीड़ों आदि को खाते हैं। उपापचय (metabolism) की दर बहुत कम, परन्तु आयु लगभग 100 वर्ष मध्यवर्ती तीसरा नेत्र तथा त्वचा की शल्कें दानों के रूप में। नर में मैथुन अंग नहीं। अण्डे छोटे। अवस्कर छिद्र दरार जैसा।
2.
गण स्क्वै मैटा (Order Squamata) :
छिपकलियाँ (lizards) एवं सर्प (snakes)
(अ)
उपगण लैसरटिलिया या सॉरिया (Suborder Lacertilia or Sauria) छिपकलियाँ।
(ब)
उपगण ओफीडिया या सर्पेन्टीज (Suborder Ophidia or Serpentes) सर्प।
उदाहरण :
(i) अजगर (Python)
(ii) काला नाग या कोबरा (Cobra-Ngja)
(iii) करैत (Bungarus)
(iv) वाइपर (Viper)
(च)
उपवर्ग आर्कोसॉरिया (Subclass Archosauria) :
चार विलुप्त जातियों के गण। केवल एक गण, क्रोकोडिलिया, में विद्यमान जातियाँ।
गण क्रोकोडिलिया या लोरीकैटा (Order Crocodilia or Loricata) :
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