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Ncert class 12 biology solution Chapter 1. जीवों में जनन

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Chapter 1 Reproduction in Organisms (जीवों में जनन)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जीवों के लिए जनन क्यों अनिवार्य है?
उत्तर
जनन जीवों का एक अति महत्त्वपूर्ण लक्षण है। यह एक अति आवश्यक जैविक प्रक्रिया है। जिसके द्वारा न सिर्फ जीवों की उत्तरजीविता में मदद मिलती है बल्कि इससे जीव-जाति की निरन्तरता भी बनी रहती है। जनन जीवों के अमरत्व में भी सहायक होता है। प्राकृतिक मृत्यु, वयता वे जीर्णता के कारण होने वाले जीव ह्रास की आपूर्ति, जनन द्वारा ही होती है। जनने से जीवों की संख्या बढ़ती है। जनन एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा लाभदायक विभिन्नताएँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानान्तरित होती हैं। अत: जनन जैव विकास में भी सहायक होता है। इन समस्त कारणों के आधार पर कहा जा सकता है कि जनन जीवों के लिए अनिवार्य है।

प्रश्न 2.
जनन की अच्छी विधि कौन-सी है और क्यों ?
उत्तर
प्राय: लैंगिक जनन (sexual reproduction) को जनन की श्रेष्ठ विधि माना गया है। लैंगिक जनन के दौरान गुणसूत्रों की अदला-बदली होती है जिससे युग्मकों (gametes) में नये लक्षण विकसित होते हैं तथा नये जीव का विकास होता है जो अपने जनकों से भिन्न होता है। अतः लैंगिक जनन जैव विकास में सहायक होता है। लैगिक जनन द्वारा जीवों के जीवित रहने के अवसर अधिक होते हैं, क्योंकि आनुवंशिक विभिन्नताओं के कारण जीव अधिक क्षमतावान होता है। लैंगिक जनन से जीवों की संख्या भी बढ़ती है। अत: लैंगिक जनन ही, जनन की अच्छी विधि है।

प्रश्न 3.
अलैगिक जनन द्वारा उत्पन्न हुई सन्तति को क्लोन क्यों कहा गया है ?
उत्तर
आकारिकीय व आनुवंशिक रूप से एक समान जीव क्लोन (clone) कहलाते हैं। अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न सन्तति आनुवंशिक व आकारिकीय रूप से अपने जनक के एकदम समान होती है, अत: इसे क्लोन कहते हैं।

प्रश्न 4.
लैगिक जनन के परिणामस्वरूप बनी सन्तति के जीवित रहने के अच्छे अवसर होते हैं। क्यों ? क्या यह कथन हर समय सही होता है ?
उत्तर
लैंगिक जनन के दौरान गुणसूत्रों का विनिमय होने से आनुवंशिक विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं। जो जनक से सन्तति में स्थानान्तरित होती हैं। युग्मकों की उत्पत्ति व निषेचन के कारण नये तथा बेहतर गुणों युक्त सन्तति का जन्म होता है। अत: लैंगिक जनन के परिणामस्वरूप उत्पन्न सन्तति के जीवित रहने के अच्छे अवसर होते हैं।

यह कथन सदैव सही नहीं होता है। जनकों के रोगग्रस्त होने पर वह रोग आने वाली पीढ़ियों में स्थानान्तरित हो जाता है।

प्रश्न 5.
अलैगिक जनन द्वारा बनी सन्तति लैगिक जनन द्वारा बनी सन्तति से किस प्रकार से भिन्न है?
उत्तर
अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न सन्तान आनुवंशिक व संरचनात्मक रूप से जनक के समान होती है अर्थात् अपने जनक का क्लोन (clone) होती है। इसके विपरीत लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न सन्तान आनुवंशिक रूप से जनक से भिन्न होती है।

प्रश्न 6.
अलैगिक तथा लैगिक जनन के मध्य विभेद स्थापित करो। कायिक जनन को प्रारूपिक अलैगिक जनन क्यों माना गया है ?
उत्तर
अलैंगिक तथा लैंगिक जनन के मध्य विभेद निम्नलिखित हैं
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 1 Reproduction in Organisms Q.6


कायिक जनन (vegetative reproduction), अलैंगिक जनन की ऐसी विधि है जिसमें पौधे के कायिक भाग से नये पौधे का निर्माण होता है। अतः इसमें एक ही जनक भाग लेता है तथा इसके द्वारा उत्पन्न सन्तति आनुवंशिक व आकारिकी में अपने जनक के समान होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कायिक जनन वास्तव में प्रारूपिक अलैंगिक जनन है।

प्रश्न 7.
कायिक प्रवर्धन से आप क्या समझते हैं ? कोई दो उपयुक्त उदाहरण दो।
उत्तर
कायिक प्रवर्धन जनन की ऐसी विधि है जिसमें पौधे के शरीर का कोई भी कायिक भाग प्रवर्धक का कार्य करता है तथा नये पौधे में विकसित हो जाता है। मातृ पौधे के कायिक अंग; जैसे-जड़, तना, पत्ती, कलिका आदि से नये पौधे का पुनर्जनन, कायिक प्रवर्धन कहलाता है। कायिक प्रवर्धन के दो उदाहरण निम्न हैं –

  1. आलू के कन्द में उपस्थित पर्वसन्धियाँ (nodes) कायिक प्रवर्धन में सहायक होती हैं। पर्वसन्धियों में कलिकाएँ स्थित होती हैं तथा प्रत्येक कलिको नये पौधे को जन्म देती है।

प्रश्न 8.
व्याख्या कीजिए –
(क) किशोर चरण
(ख) प्रजनक चरण
(ग) जीर्णता चरण या जीर्णावस्था।
उत्तर
(क) किशोर चरण (Juvenile phase) – सभी जीवधारी लैंगिक रूप से परिपक्व होने से पूर्व एक निश्चित अवस्था से होकर गुजरते हैं, इसके पश्चात् ही वे लैंगिक जनन कर सकते हैं। इस अवस्था को प्राणियों में किशोर चरण यो अवस्था तथा पौधों में कायिक अवस्था (vegetative phase) कहते हैं। इसकी अवधि विभिन्न जीवों में भिन्न-भिन्न होती है।

(ख) प्रजनक चरण (Reproductive phase) – किशोरावस्था अथवा कायिक प्रावस्था के समाप्त होने पर प्रजनक चरण अथवा जनन प्रावस्था प्रारम्भ होती है। पौधों में इस अवस्था को स्पष्ट पहचाना जा सकता है। क्योंकि पौधों में पुष्पन (flowering) प्रारम्भ हो जाता है। प्राणियों में भी अनेक शारीरिकी एवं आकारिकी परिवर्तन आ जाते हैं। इस चरण में जीव संतति उत्पन्न करने
योग्य हो जाता है। यह अवस्था विभिन्न जीवों में अलग-अलग होती है।

(ग) जीर्णता चरण या जीर्णावस्था (Senescent phase) – यह जीवन चक्र की अन्तिम अवस्था अथवा तीसरी अवस्था होती है। प्रजनन आयु की समाप्ति को जीर्णता चरण या जीर्णावस्था की प्रारम्भिक अवस्था माना जा सकता है। इस चरण में उपापचय क्रियाएँ मन्द होने लगती हैं, ऊतकों का क्षय होने लगता है तथा शरीर के अंग धीरे-धीरे कार्य करना बन्द कर देते हैं और अन्ततः जीव की मृत्यु हो जाती है। इसे वृद्धावस्था भी कहते हैं।

प्रश्न 9.
अपनी जटिलता के बावजूद बड़े जीवों ने लैगिक प्रजनन को पाया है, क्यों ?
उत्तर
लैंगिक प्रजनन जटिल तथा धीमी गति से होने के बावजूद भी अनेक रूप से उत्तम है। इस प्रकार के जनन के दौरान गुणसूत्रों का विनिमय होने से नये लक्षण विकसित होते हैं जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थानान्तरित होते रहते हैं। गुणसूत्रों के आदान-प्रदान से विभिन्नताएँ भी उत्पन्न होती हैं, जो जैव विकास में सहायक होती हैं। अपने इन्हीं गुणों के कारण बड़े जीवों में लैंगिक जनन पाया जाता है।

प्रश्न 10.
व्याख्या करके बताएँ कि अर्द्धसूत्री विभाजन तथा युग्मकजनन सदैव अन्तर-सम्बन्धित (अन्तर्बद्ध) होते हैं।
उत्तर
लैंगिक जनन करने वाले जीवधारियों में प्रजनन के समय अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis) तथा युग्मकजनन (gametogenesis) प्रक्रियाएँ होती हैं। सामान्यतया लैंगिक जनन करने वाले जीव द्विगुणित (diploid) होते हैं। युग्मक निर्माण प्रक्रिया को युग्मकजनन (gametogenesis) कहते हैं। शुक्राणुओं के निर्माण को शुक्रजनन तथा अण्डाणुओं के निर्माण को अण्डजनन कहते हैं। इनका निर्माण क्रमशः नर तथा मादा जनदों (gonads) में होता है। युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है, अर्थात् युग्मक अगुणित (haploid) होते हैं। युग्मकजनन प्रक्रिया अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा होती है। अतः युग्मकजनन तथा अर्द्धसूत्री विभाजन क्रियाएँ अन्तरसम्बन्धित (अन्तर्बद्ध) होती हैं। निषेचन के फलस्वरूप नर तथा मादा अगुणित युग्मक संयुग्मन द्वारा द्विगुणित युग्माणु (diploid zygote) बनाता है। द्विगुणित युग्माणु से भ्रूणीय परिवर्धन द्वारा नए जीव का विकास होता है।

प्रश्न 11.
प्रत्येक पुष्पीय पादप के भाग को पहचानिए तथा लिखिए कि वह अगुणित (n) है या द्विगुणित (2n)


उत्तर
पुष्पीय भाग –

[युग्मनज (zygote) शुक्राणु तथा अण्ड के मिलने से बनी द्विगुणित संरचना (2n) होती है।

प्रश्न 12.
बाह्य निषेचन की व्याख्या कीजिए। इसके नुकसान बताइए।
उत्तर
बाह्य निषेचन (External Fertilization) – शुक्राणु (नरे युग्मक) तथा अण्ड (मादा युग्मक) के संयुग्मन या संलयन को निषेचन कहते हैं। इसके फलस्वरूप द्विगुणित युग्माणु (diploid zygote) का निर्माण होता है। अधिकांश शैवालों, मछलियों में और उभयचर प्राणियों में शुक्राणु (नर युग्मक) तथा अण्ड (मादा युग्मक) का संलयन शरीर से बाहर जल में होता है, इसे बाह्य निषेचन (external fertilization) कहते हैं।

बाह्य निषेचन से हानियाँ (Disadvantages of External Fertilization) –

प्रश्न 13.
जूस्पोर (अलैगिक चल बीजाणु) तथा युग्मनज के बीच विभेद करें।
उत्तर
जूस्पोर (अलैंगिक चल बीजाणु) – यह नग्न, चल, कशाभिका युक्त संरचना है जो अलैंगिक जनन की इकाई है। इनका निर्माण जनक कोशिका के जीवद्रव्य से सूत्री विभाजन द्वारा होता है। इनके अग्र भाग पर स्थित कशाभिका जल में तैरने हेतु सहायक होती हैं। ये चलबीजाणु धानी में बनते हैं। उदाहरण – यूलोथ्रिक्स, क्लेमाइडोमोनास आदि।

युग्मनज (Zygote) – लैंगिक जनन के दौरान नर तथा मादा युग्मकों (gametes) के निषेचन से बनी रचना, युग्मनज कहलाती है। यह द्विगुणित (diploid = 2n) होता है तथा विकसित होकर भ्रूण अथवा लार्वा में परिवर्तित हो जाता है। लैंगिक जनन करने वाले जीवों का विकास युग्मनज से होता है। बाह्य निषेचन करने वाले जीवों में युग्मनज का निर्माण बाह्य माध्यम (जल) में होता है; जैसे – मेढ़क जबकि आन्तरिक निषेचन करने वाले जीवों में यह मादा के शरीर में विकसित होता है; जैसे – मनुष्य आदि।

प्रश्न 14.
युग्मकजनन एवं भ्रूणोद्भव के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

प्रश्न 15.
एक पुष्प में निषेचन-पश्च परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
पुष्प में निषेचन-पश्च परिवर्तन (Post fertilization development in a flower)-पुष्पीय पौधों में दोहरा निषेचन तथा त्रिक संलयन (double fertilization and triple fusion) होता है। इसके फलस्वरूप भ्रूणकोष (embryo sac) में द्विगुणित युग्मनज (zygote) तथा त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक (primary endospermic nucleus) बनता है। इनसे क्रमशः भ्रूण (embryo) तथा भूणपोष (endosperm) बनता है। भ्रूणपोष विकासशील भ्रूण को पोषण प्रदान करता है। इसके साथ-साथ बीजाण्ड में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं जिसके फलस्वरूप बीजाण्ड से बीज तथा अण्डाशय से फलावरण (pericap) का निर्माण होता है।

  1. बीजाण्डवृन्त – बीजवृन्त बनाता है।
  2. अध्यावरण – बीजावरण बनाता है।
  3. अण्डद्वार – बीजद्वार बनाता है।
  4. बीजाण्डकाय (nucellus) – प्रायः नष्ट हो जाता है, कभी-कभी भोजन संचित होने के कारण पेरिस्पर्म (perisperm) बनाता है।
  5. भ्रूणकोष (embryosac)
    • अण्ड कोशिका (egg cell) – भ्रूण (embryo) बनाती है।
    • सहायक कोशिकाएँ (synergids) – नष्ट हो जाती हैं।
    • प्रतिमुख कोशिकाएँ (antipodal cells) – नष्ट हो जाती हैं।
    • ध्रुवीय केन्द्रक (polar nuclei) – भ्रूणपोष बनाता है।
  6. अण्डाशय की भित्ति – फलभित्ति बनाती है। बीज में भ्रूण सुप्तावस्था में रहता है। बीज चारों ओर से बाह्यकवच तथा अन्त:कवच (testa & tegmen) से बने अध्यावरण से घिरा होता है। भ्रूण बीजपत्रों के मध्य स्थित होता है। फलभित्ति की संरचना के आधार पर फल सरस अथवा शुष्क होते हैं।

प्रश्न 16.
एक द्विलिंगी पुष्प क्या है? अपने आस-पास से पाँच द्विलिंगी पुष्पों को एकत्र कीजिए और अपने शिक्षक की सहायता से इनके सामान्य (स्थानीय) एवं वैज्ञानिक नाम पता कीजिए।
उत्तर
द्विलिंगी पुष्प (Bisexual flower) – जब पुष्प में पुमंग (androecium) तथा जायांग (gynoecium) दोनों होते हैं तो पुष्प द्विलिंगी (bisexual) कहलाता है। सामान्यतया समीपवर्ती क्षेत्रों में पाए जाने वाले द्विलिंगी पुष्प जैसे –

प्रश्न 17.
किसी भी कुकुरबिट पादप के कुछ पुष्पों की जाँच कीजिए और पुंकेसरी व स्त्रीकेसरी पुष्पों को पहचानने की कोशिश कीजिए। क्या आप अन्य एकलिंगी पौधों के नाम जानते हैं?
उत्तर
कुकुरबिट पादप पुष्प एकलिंगी होते हैं। नर पुष्प में जायांग अनुपस्थित होता है। पुष्प में पाँच पुंकेसर होते हैं। ये प्राय: 2 + 2 + 1 के रूप में संयुक्त रहते हैं। इनके परागकोश व्यावृत (twisted) होते हैं।

मादा पुष्प में पुमंग (androecium) अनुपस्थित होता है। जायांग त्रिअण्डपी, युक्ताण्डपी, एककोष्ठीय तथा अधोवर्ती अण्डाशय से बना होता है। इसमें भित्तिलग्न बीजाण्डन्यास होता है। अण्डाशय से विकसित सरल सरस फल पेपो (pepo) कहलाता है।
अन्य एकलिंगी पौधे –

प्रश्न 18.
अण्डप्रजक प्राणियों की सन्तानों का उत्तरजीवन (सरवाइवल) सजीवप्रजक प्राणियों की तुलना में अधिक जोखिमयुक्त क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर
अण्डप्रजक (oviparous) प्राणियों में निषेचित अण्डे (युग्मनज) का विकास मादा प्राणी के शरीर से बाहर होता है। मादा कैल्सियमयुक्त कवच से ढके अण्डों को सुरक्षित स्थान पर निक्षेपित करती है। अण्डों में भ्रूणीय विकास के फलस्वरूप शिशु का विकास होता है। शिशु निश्चित अवधि के पश्चात अण्डे के स्फुटन के फलस्वरूप मुक्त हो जाता है। अण्डप्रजक में बाह्य परिवर्द्धन (external development) होता है। यह पर्यावरणीय प्रतिकूल परिस्थितियों तथा शिकारी प्राणियों से प्रभावित होता है। इसके फलस्वरूप इन प्राणियों की उत्तरजीविता अधिक जोखिमयुक्त होती है। अण्डप्रजक प्राणियों को विकास के लिए कम समय मिलता है। अत: इन जीवों में आन्तरिक परिपक्वता सजीवप्रजक की तुलना में कम होती है। जैसे – मत्स्य, उभयचर, सरीसृप तथा पक्षी वर्ग के प्राणी अण्डप्रजक होते हैं।

सजीवप्रजक (जरायुज – viviparous) में निषेचित अण्डे (युग्मनज) का परिवर्द्धन मादा प्राणी के शरीर में होता है। इसे आन्तरिक परिवर्द्धन (internal development) कहते हैं। शिशु का विकास पूरा होने के पश्चात् प्रसव द्वारा इनका जन्म होता है, शिशु का विकास आन्तरिक होने के कारण और परिवर्द्धन में अधिक समय लगने के कारण इनकी उत्तरजीविता अपेक्षाकृत कम जोखिमपूर्ण होती है। आन्तरिक परिवर्द्धन होने के कारण ये बाह्य वातावरण तथा बाह्य परभक्षी जीवों से सुरक्षित रहते हैं। यही कारण है कि सजीवप्रजक की उत्तरजीविता अण्डप्रजक की अपेक्षा अधिक होती है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पौधों के निम्नलिखित अंगों में कौन-सा कायिक प्रजनन के लिए सर्वाधिक अनुकूल है?
(क) जड़
(ख) तना।
(ग) पत्ती
(घ) पत्र-प्रकलिका
उत्तर
(ख) तना

प्रश्न 2.
शकरकन्द एवं डहेलिया में कायिक जनन होता है
(क) पत्तियों द्वारा
(ख) पुष्पों द्वारा
(ग) जड़ों द्वारा
(घ) तनों द्वारा
उत्तर
(ख) पुष्पों द्वारा

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प्रश्न 3.
निम्न में कृत्रिम कायिक प्रवर्धन सम्भव है
(क) आलू में
(ख) अजूबा में
(ग) आम में
(घ) प्याज में
उत्तर
(ग) आम में

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जनन किसे कहते हैं?
उत्तर
वह क्रिया जिसमें जीव अपने समान जीव को उत्पन्न करता है, जनन कहलाती है।

प्रश्न 2.
जनन कितने प्रकार का होता है?
उत्तर

प्रश्न 3.
मुकुलन पर टिप्पणी लिखिए। (2017)
उत्तर
मुकुलन (Budding) – इस प्रकार का विभाजन यीस्ट (Yeast) एवं कुछ जीवाणुओं में पाया जाता है। इस प्रक्रिया में कोशिका में बाह्य वृद्धि होकर एक या एक-से-अधिक छोटी रचनाएँ बन जाती हैं तथा केन्द्रक सूत्री-विभाजन (mitosis) द्वारा (Lindgreen, 1949 के अनुसार) विभाजित होकर दो भागों में बँट जाता है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार केन्द्रक का यह विभाजन असूत्री विभाजन या अमाइटोसिस (amitosis) प्रकार का होता है। प्रत्येक मुकुल (bud) मातृ कोशिका से अलग होकर यीस्ट की नई कोशिका में परिवर्तित हो जाती है। इस क्रिया को मुकुलन (budding) कहते हैं। जब ये उर्द्ध रचनाएँ (outgrowths) अपनी मातृ-कोशिका से अलग नहीं होती तो श्रृंखला बनाती हैं, जिसे स्युडोमाइसीलियम कहते हैं। परन्तु अन्त में ये अलग हो जाती हैं।

प्रश्न 4.
कृत्रिम कायिक प्रवर्धन की दो विधियों के नाम लिखिए।
उत्तर

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पौधों में जनन की कितनी विधियाँ पायी जाती हैं? प्रत्येक का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर
पौधों में जनन की विधियाँ
पौधों में मुख्य रूप से जनन की निम्नलिखित दो विधियाँ पायी जाती हैं –
1. अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) – यह जनन का एक सामान्य प्रकार है जिसमें केवल एक ही जीव या जनक (Parents) भाग लेता है। इस विधि में वयस्क बनने के बाद जीव अपनी हूबहू प्रतिलिपियों (identical copies) के रूप में सन्ततियाँ उत्पन्न करता है। अतः जनक तथा सन्ततियों के बीच आनुवंशिक पदार्थ एवं लक्षणों में कोई अन्तर नहीं होता है। इसीलिए अलैंगिक जनन के फलस्वरूप उत्पन्न सन्ततियों को क्लोन (clone) कहते हैं। ऐसा जनन अपेक्षाकृत तीव्र दर से होता है। इसके लिए शरीर में कोई विशिष्ट ऊतक या अंग नहीं होते।

2. लैंगिक जनन (Sexual Reproduction) – लैंगिक जनन की प्रक्रिया जटिल होती है। इसके लिए शरीर में विशेष प्रकार के जननांग (reproductive organs) होते हैं। शरीर की सामान्य दैहिक कोशिकाओं (somatic cells) से भिन्न प्रकार की दो अगुणित (haploid = n) कोशिकाओं का संयुग्मन लैंगिक जनन की आधारभूत प्रक्रिया होती है। इन अगुणित कोशिकाओं को लैंगिक कोशिकाएँ (sex cells) या युग्मक (gamets) कहते हैं। शरीर की दैहिक कोशिकाएँ द्विगुणित (diploid) होती हैं। लैंगिक कोशिकाएँ प्रमुख जननांगों अर्थात् जनदों (gonads) की जनन कोशिकाओं (germ cells) में विशेष प्रकार के अर्धसूत्री या मीयोटिक विभाजन (reductional or meiotic division) से बनती हैं। इनके बनने की इस प्रक्रिया को युग्मकजनन (gametogenesis) कहते हैं।

संयुग्मन में भाग लेने वाली दो लैंगिक कोशिकाएँ भिन्न प्रकार की होती हैं – एक नर युग्मक कोशिका तथा दूसरी मादा युग्मक कोशिका इनके संयुग्मन से बनी द्विगुणित कोशिका को युग्मनज अर्थात् जाइगोट (zygote) कहते हैं। इसी से नई सन्तान का प्रारम्भ होता है। जनन कोशिकाओं के अर्धसूत्री विभाजन द्वारा बनी युग्मक कोशिकाओं में जनन कोशिकाओं के जोड़ीदार अर्थात् समजात गुणसूत्रों (homologous chromosomes) का बँटवारा अनियमित एवं संयोगिक (random) होता है। फिर युग्मनजों (zygotes) के बनने में नर व मादा युग्मक का संयुग्मन भी संयोगिक होता है। इसके कारण युग्मनजों के जीन प्रारूप (genotypes) जनन कोशिकाओं के जीन प्रारूपों से कुछ भिन्न होते हैं। इसी कारण लैंगिक जनन के फलस्वरूप बनी सन्तति माता-पिता से थोड़ी भिन्न दिखाई देती है।

प्रश्न 2.
टिप्पणी लिखिए-ब्रायोफाइट्स में वर्षी प्रजनन। (2015)
उत्तर
ब्रायोफाइट्स के युग्मकोभिद् में अनेक प्रकार का वर्षी प्रजनन होता है। उदाहरणार्थ-विखण्डन, जेमा, कन्दे, पुंतन्तु, पत्र-प्रकलिका द्वारा। विखण्डन विधि में बहुकोशिकीय जनक पौधे का शरीर दो या दो से अधिक टुकड़ों में विखण्डित हो जाता है तथा प्रत्येक टुकड़ा पुनरुद्भवन द्वारा एक नई वयस्क सन्तति में विकसित हो जाता है। कभी-कभी पौधे की पत्ती व तने के अग्र भाग पर बहुकोशिकीय एवं हरे रंग की रचनाएँ निकलती हैं, जिन्हें जेम्यूल कहते हैं। ये अलग होकर अंकुरण द्वारा नये पौधे को जन्म देती हैं। पौधों के कन्द तथा पुंतन्तु भी नये पौधों को जन्म देते हैं। ब्रायोफाइट्स में पत्र-प्रकलिकाओं द्वारा भी वर्दी प्रजनन होता है। वे कलिकाएँ जिनमें खाद्य-पदार्थ संचित रहता है, पत्र-प्रकलिकाएँ कहलाती हैं। ये कलिकाएँ मातृ पौधे से टूटकर भूमि पर गिर जाती हैं। तथा अनुकूल मौसम में इनमें अपस्थानिक जड़े निकल आती हैं जो भूमि से जल एवं खनिज लवणों का अवशोषण करती हैं तथा प्रकलिकाएँ वृद्धि करके नवीन पौधे बनाती हैं।

प्रश्न 3.
सूक्ष्म प्रवर्धन (माइक्रो प्रोपेगेशन) पर एक टिप्पणी लिखिए। (2015)
या
ऊतक संवर्धन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2018)
उत्तर
यह कायिक प्रवर्धन की सबसे आधुनिक विधि है। इस विधि में मातृ पौधे के थोड़े से ऊतक से हजारों की संख्या में पादपों (plants) को प्राप्त किया जा सकता है। यह विधि ऊतक तथा कोशिका संवर्धन तकनीकी (tissue and cell culture technique) पर आधारित है।

इस विधि में जिस पौधे से प्रवर्धन करना होता है, उसके किसी भाग से ऊतक (tissue) का छोटा भाग अलग कर लिया जाता है। अब इस ऊतक की अजर्म परिस्थितियों (aseptic conditions) में किसी उचित संवर्धन माध्यम (culture medium) में वृद्धि कराते हैं। यह ऊतक पोषक पदार्थों का अवशोषण करके वृद्धि करता है जिससे कोशिकाओं के गुच्छे बन जाते हैं जिन्हें कैलस (callus) कहा जाता है। इस कैलस को लम्बे समय तक गुणन के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है। आवश्यकता पड़ने पर कैलस का एक छोटा टुकड़ा दूसरे ऐसे माध्यम पर स्थानान्तरित कर दिया जाता है जहाँ यह वृद्धि करके नन्हे पौधे के रूप में विकसित होता है। इस पादप को निकालकर मृदा में लगा दिया जाता है। इस विधि में एक बार ऊतक संवर्धन करके लम्बे समय तक पौधे प्राप्त किए जाते हैं और ये अधिक संख्या में प्राप्त होते हैं। यह विधि आर्किड्स (Orchids), कार्नेशन्स (Carnations), गुलदाऊदी (Chrysanthemum) एवं सतावर (Asparagus) में अधिक सफल है। इस विधि से मशरूमों (Mushrooms) का भी संवर्धन किया जाता है।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कायिक जनन किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार का होता है? प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन का विस्तृत वर्णन कीजिए। (2014, 15, 16, 17)
या
कायिक प्रवर्धन किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार का होता है? (2014, 16)
या
प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन पर टिप्पणी लिखिए। (2015)
या
पौधों में कायिक जनन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2018)
उत्तर
पौधों में कायिक जनन
कायिक जनन प्रजनन की अथवा नए पौधे के पुनर्निर्माण (regeneration) की क्रिया है। इस क्रिया में नया पौधा मातृ पौधे के किसी भी कायिक भाग से बनता है। इसके सभी लक्षण व गुण मातृ पौधे के समान ही होते हैं। कायिक जनन को कायिक प्रवर्धन (vegetative propagation) के नाम से भी जाना जाता है।

मातृ पौधे के कायिक अंगों द्वारा नये पादपों का बनना कायिक जनन या कायिक प्रवर्धन कहलाता है।
यह क्रिया निम्न पादपों (lower plants) में सामान्य रूप से देखने को मिलती है जबकि उच्च श्रेणी के पौधों (higher plants) में यह केवल निम्न दो प्रकार से होती है –

प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन
यह क्रिया प्रकृति में मिलती है। इस क्रिया के अन्तर्गत पादप का कोई अंग अथवा रूपान्तरित भाग मातृ पौधे से अलग होकर नया पौधा बनाता है। यह क्रिया अनुकूल परिस्थितियों में होती है। पौधे का कायिक भाग; जैसे-जड़, तना व पत्ती इस क्रिया में भाग लेते हैं। ये भाग इस प्रकार से रूपान्तरित होते हैं कि वे अंकुरित होकर नया पौधा बना सकें। विभिन्न प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन की विधियाँ अग्रवत् हैं

(A) भूमिगत तना
तने का मुख्य भाग अथवा कुछ भाग भूमिगत वृद्धि करता है तथा एक प्रकार से भोजन संग्रह करने वाले अंग के रूप में रूपान्तरित हो जाता है। परन्तु इस पर कक्षस्थ कलिकाएँ मिलती हैं जिनसे नया पौधा विकसित होता है अथवा शाखाएँ निकलती हैं जो मृदा से बाहर आकर नया पौधा बना लेती हैं। उदाहरण के लिए –

(i) कन्द (Tuber) – वृद्धि असमान (diffuse) होती है; जैसे – आलू (potato)। इस पर आँख (eye) मिलती है, जिसमें कक्षस्थ कलिका (axillary bud) शल्क पत्रों से ढकी रहती है। यह कक्षस्थ कलिका अनुकूल समय में अंकुरित होकर नया पौधा बना लेती है। निश्चित पर्व सन्धियाँ नहीं मिलती हैं।

(ii) प्रकन्द (Rhizome) – यह भूमिगत तना मृदा के भीतर समानान्तर अथवा क्षैतिज (horizontal) वृद्धि करता है। इस पर पर्व (internode) व पर्वसन्धियाँ (nodes) मिलती हैं। पर्व संघनित (condensed) होते हैं। पर्वसन्धियाँ शल्कपत्रों से ढकी रहती हैं जिनमें कक्षस्थ कलिका मिलती है। इन कक्षस्थ कलिकाओं से नए पौधे निकलते हैं; जैसे—अदरक (ginger), हल्दी (Curcuma) आदि।

(iii) घनकन्द (Corm) – यह भूमिगत तना मृदा में ऊर्ध्व वृद्धि करता है। इसमें पर्वसन्धियों (node) पर शल्कपत्रों से कलिकाएँ ढकी रहती हैं जिनसे नया पोधा बनता है; जैसे – अरबी (Colocasia), केसर (Crocus), जिमीकन्द (Amorphophalus) आदि।

(iv) शल्ककन्द (Bulb) – यह प्ररोह का वह रूपान्तरण है जहाँ तना छोटा होता है तथा इसे समानीत तने के चारों ओर रसीले गूदेदार शल्क पत्र मिलते हैं। शल्क पत्रों के कक्ष में कक्षस्थ कलिकाएँ होती हैं जो नये पौधे को जन्म देती हैं; जैसे – प्याज (Allium cepa), ट्यूलिप (Tulip), रजनीगंधा (Narcissus) आदि।

(B) अर्धवायवीय तना
यह तना भूमि के समानान्तर क्षैतिज वृद्धि करता है। प्रत्येक पर्वसन्धि (node) से जड़े तथा प्ररोह (शाखा) निकलते हैं। कभी-कभी पर्वसन्धि का कुछ भाग मृदा में अथवा जल में मिलता है। उदाहरण के लिए –

(i) ऊपरी भूस्तारी (Runner) – यह तना विसर्गी होता है तथा मृदा के बाहर की ओर क्षैतिज रूप से मिलता है। प्रत्येक पर्वसन्धि (node) से जड़े फूटती हैं तथा प्ररोह (शाखा) निकलता है जो विपरीत दिशा में वायु में वृद्धि करता है। पर्वसन्धि से निकलती प्रत्येक शाखा एक नया पौधा बना लेती है; जैसे—दूब घास (Cyan Odon), खट्टी बूटी (Oxalis), सेन्टेला (Cantele) आदि।

(ii) भूस्तारी (Stolon) – इनमें पर्वसन्धियों से जड़े एवं वायवीय भाग निकलते हैं। भूस्तारी के टूटने पर प्रत्येक वायवीय शाखा स्वतन्त्र पौधा बन जाती है; उदाहरण–अरवी, केला आदि।

(iii) भूस्तारिका (Offset) – जलोभिद होने के कारण इनकी पर्वसन्धियाँ जल निमग्न होती हैं। प्रत्येक पर्वसन्धि से पत्तियों का एक समूह (tuft) निकलता है, जिसमें नीचे जड़ों का गुच्छा होता है जो मातृ पादप से अलग होकर नया पादप बनाता है; जैसे–समुद्र सोख (Water hyacinth), पिस्टिया (Pistia) आदि।

(iv) अन्त:भूस्तारी (Sucker) – मुख्य तना (पर्व) मृदा के भीतर क्षैतिज रूप (horizontal) में बढ़ता है। शाखाएँ प्रत्येक पर्वसन्धि से मृदा के बाहर निकल आती हैं; जैसे-पोदीना (mint)

(C) मूल
कुछ पौधों के मूल (जड़) कायिक प्रवर्धन करते हैं; जैसे – शकरकन्द (Ipomoea batatas), सतावर, डेहलिया (Dahelia), याम (Dioscored) आदि में अपस्थानिक कलिकाएँ (adventitious buds) निकलती हैं जो नया पौधा बना लेती हैं। कुछ काष्ठीय पौधों की जड़ों; जैसे-मुराया (Muraya), एल्बीजिया (Albuzzia), शीशम (Dahlbergian) आदि से भी प्ररोह (shoot) निकलते हैं। जिनकी वृद्धि नए पौधे के रूप में होती है।

(D) पत्ती
पत्तियों द्वारा कायिक प्रवर्धन सामान्यतः कम ही मिलता है। कुछ पौधों; जैसे–ब्रायोफिल्लम (Bryophyllum) तथा केलेन्चो (Kalanchoe) में पत्ती के किनारों (leaf margins) पर पत्र कलिकाएँ बनती हैं जिनसे छोटे-छोटे पौधे विकसित होते हैं। बिगोनिया (Begonia) अथवा एलिफेन्ट इअर प्लान्ट में पत्र कलिकाएँ पर्णवृन्त तथा शिराओं आदि पर व पूर्ण सतह पर निकलती हैं।

(E) बुलबिल
ये प्रकलिकाएँ कायिक प्रवर्धन करने वाले जनन अंग हैं। ग्लोबा बल्बीफेरा (Globba bulbifera) में पुष्पक्रम के निचले भाग के कुछ पुष्प बुलबिल अथवा प्रकलिकाएँ बनाते हैं जो रूपान्तरित बहुकोशिकीय संरचनाएँ हैं। प्याज (Allium cepg), अमेरिकन एलोइ (Agave) आदि में भी प्रकलिकाएँ मिलती हैं जो बहुत-से पुष्पों के परिवर्तन से बनती हैं। प्रकलिकाएँ मातृ पौधे से अलग होकर नए पौधे के रूप में विकसित होती हैं।

डायोस्कोरिया बल्बीफेरा (Dioscored butbiferg) की जंगली प्रजाति तथा लिलियम बल्बीफेरम (Lilium bulbiferum) आदि में प्रकलिका (bulbil) पत्ती के अक्ष से निकलती है। खट्टी बूटी (Oxalis) में प्रकलिकाएँ कन्दिल मूल (tuberous root) के फूले हुए भाग से निकलती हैं। ये सभी प्रकलिकाएँ मातृ पादप से अलग होकर नए पादप में विकसित होती हैं।


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Aman Singh

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