International Women’s Day 2022: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कब मनाया जाता है, थीम, महत्व, निबंध, भाषण, स्पीच, विषय, स्लोगन व नारे (International Women’s Day 2022 in Hindi) (Quotes, Slogan, Theme, History, Events, Celebrated on)
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है, परंतु जब इस मुद्दे पर एकांत में विचार किया जाए, तो मन में एक सवाल जन्म लेता है कि आखिर ऐसी क्या दिक्कत थी, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को सम्मान देने के लिए एक दिन की घोषणा करनी पड़ी?? क्या इसका उद्देश्य शुरुआत से ही केवल महिलाओं को सम्मान देना था, या उन्होने अपनी परेशानियों से तंग आकार आक्रोश में इस दिन को मनाना शुरू किया?? क्या भारत की ही तरह संपूर्ण विश्व में भी महिलाओं को अपने अधिकार अपने सम्मान को पाने के लिए चुनोतियों का सामना करना पड़ा ?? आज हम अपने इस आर्टिकल से आपके इन सवालों का जवाब देने और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के संबंध में संपूर्ण जानकारी देने का प्रयत्न कर रहे है, उम्मीद करते है कि यह आपके लिए उपयोगी होगा.
नाम | अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस |
कब मनाया जाता है | 8 मार्च |
शुरुआत कब हुई | सन 1911 में |
शुरुआत कहां हुई | न्यूयॉर्क |
इस साल कौन सा महिला दिवस है | 111 वां |
विषय 2022 | जल्द ही घोषित किया जायेगा |
महिला दिवस की शुरुआत साल 1908 में न्यूयॉर्क से हुई थी, उस समय वहाँ मौजूद महिलाओं ने बड़ी संख्या में एकत्रित होकर अपनी जॉब में समय को कम करने की मांग को लेकर मार्च निकाला था. इसी के साथ उन महिलाओं ने अपने वेतन बढ़ाने और वोट डालने के अधिकार की भी मांग की थी. इसके एक वर्ष पश्चात अमेरिका में इस दिन को राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया गया.
इसके बाद साल 1910 में क्लारा जेटकिन ने कामकाजी महिलाओं के एक अंतराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान इस दिन को अंतराष्ट्रीय स्तर पर मनाने का सुझाव दिया. इस सम्मेलन में 17 देशों के करीब 100 कामकाजी महिलाएं उपस्थित थी, इन सभी महिलाओं ने क्लेरा जेटकिन के सुझाव का समर्थन किया. इसके बाद साल 1911 में सर्वप्रथम 19 मार्च के दिन कई देशो में यह दिन एक साथ मनाया गया. इस तरह से यह प्रथम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस था. परंतु अब तक इसे मनाने के लिए कोई दिन निश्चित नहीं था.
इसके बाद 1917 में प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान रूस की महिलाओं ने तंग आकर खाना और शांति (ब्रेड एंड पीस) के लिए विरोध प्रदर्शन किया. यह विरोध इतना संगठित था कि सम्राट निकोस को अपना पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पढ़ा और इसके बाद यहां महिलाओं को वोट देने का अधिकार भी मिला. रूसी महिलाओं ने जिस दिन इस हड़ताल कि शुरुआत की थी, वह दिन 28 फरवरी था और ग्रेगेरियन केलेण्डर में यह दिन 8 मार्च था, तब ही से 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाने लगा.
इस सब के बावजूद इसे आधिकारिक मान्यता कई वर्षों बाद 1975 में मिली, इसी वर्ष से संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसे एक थीम के साथ मनाने का निर्णय लिया गया था. इसकी सबसे पहली थीम “सेलीब्रेटिंग द पास्ट एंड प्लानिंग फॉर द फ्युचर” थी.
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को मनाने के उद्देश्य समय के साथ और महिलाओं की समाज में स्थिति बदलने के साथ परिवर्तित होते आ रहे है. शुरुआत में जब 19 वीं शताब्दी में इसकी शुरुआत की गई थी, तब महिलाओं ने मतदान का अधिकार प्राप्त किया था, परंतु अब समय परिवर्तन के साथ इसके उद्देश्य कुछ इस प्रकार है.
अगर हम 1911 में जब इसे कई देशों में एक साथ मनाया गया था, तब से लेकर इस वर्ष तक गिनती लगाए, तो साल 2022 में यह 111 वां महिला दिवस होगा, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाएगा. यह दिन पूरे विश्व में एक साथ 8 मार्च 2022 को अपने-अपने तरीके से सेलिब्रेट किया जायेगा.
साल 1996 से लगातार महिला दिवस किसी निश्चित थीम के साथ ही मनाया जाता आ रहा है, सर्वप्रथम 1996 में इसकी थीम अतीत का जश्न और भविष्य के लिए योजना है. इसके बाद लगातार हर साथ एक नई थीम और नए उद्देश्य के साथ इसे कई देश एक साथ मनाते आ रहें है. पिछले बीते 10 सालों में महिला दिवस की थीम्स इस प्रकार थी –
साल | थीम |
2009 | इस वर्ष की महिला दिवस की थीम महिला व लड़कियों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों के विरूध्द महिला व पुरुष एक साथ मिलकर प्रयत्न करें, इस मुद्दे पर विचार किया गया था |
2010 | इस वर्ष महिलाओं को पुरुषो के समान अधिकार और समान अवसर प्रदान कर उनकी तरक्की की और ध्यान केन्द्रित किया गया था |
2011 | इस वर्ष शिक्षा, प्रशिक्षण एवं विज्ञान और प्रोद्योगिकी आदि क्षेत्रों में महिलाओं को समान अधिकार देकर इन क्षेत्रों में इनकी तरक्की का मार्ग खोला गया था |
2012 | इस वर्ष गाँव की महिलाओं को समान अवसर देकर उन्हे सशक्त बनाने का प्रयास किया गया था, साथ ही गरीबी और भुखमरी जैसी समस्या पर भी ध्यान केन्द्रित किया गया था |
2013 | इस वर्ष महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के लिए कार्यवाही के समय को निश्चित करने की मांग की गई थी |
2014 | इस वर्ष नारी के लिए समानता और उनकी तरक्की ही इस दिन का विषय था |
2015 | इस वर्ष महिलाओं की तरक्की से समस्त मानव जाती की तरक्की को जोड़ा गया था |
2016 | इस वर्ष आने वाले आगामी 12 सालों में महिला व पुरुष का अनुपात बराबर करने का निर्णय लिया गया था |
2017 | इस वर्ष बदलती दुनिया में महिलाओं की स्थिति के साथ आगामी सालों में लिंग अनुपात को बराबर करने पर ध्यान केन्द्रित किया गया था |
2018 | इस वर्ष की थीम का उद्देश्य महिलाओं को उनके विकास के लिए प्रोत्साहित करना था |
2019 | थिंक इक्वल, बिल्ड स्मार्ट, इनोवेट फॉर चेंज |
2020 | ईच फॉर इक्वल (Each For Equal) |
2021 | महिला नेतृत्व: कोविड-19 की दुनिया में एक समान भविष्य को प्राप्त करना |
2022 | जल्द ही घोषित किया जायेगा |
अफगानिस्तान, चीन, कंबोडिया, नेपाल और जार्जिया जैसे कई देशों में इस दिन अवकाश घोषित किया गया है, कुछ देशों में पूरे दिन का अवकाश ना देकर हाफ डे दिया जाता है. वहीं कुछ देशों में इस दिन बच्चे अपनी माँ को गिफ्ट देते है और यह दिन माँ को समर्पित होता है, तो कई देशों में इस दिन पुरुष अपनी पत्नी, फ़्रेंड्स, माँ बहनों आदि को उपहार स्वरूप फूल प्रदान करते है. भारत में इस दिन कई संस्थानों द्वारा नारी को सम्मान देकर प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से कई कार्यक्रम किए जाते है. भले ही हर देश में इस दिन को मनाने का तरीका अलग हो सकता है परंतु सब जगह इसका उद्देश्य एक ही है, हर जगह हर क्षेत्र में महिलाओं के लिए समानता.
नारी, यह कोई समान्य शब्द नहीं बल्कि एक ऐसा सम्मान हैं जिसे देवत्व प्राप्त हैं. नारियों का स्थान वैदिक काल से ही देव तुल्य हैं इसलिए नारियों की तुलना देवी देवताओं और भगवान से की जाती हैं. जब भी घर में बेटी का जन्म होता हैं, तब यही कहा जाता हैं कि घर में लक्ष्मी आई हैं. जब घर में नव विवाहित बहु आती हैं, तब भी उसकी तुलना लक्ष्मी के आगमन से की जाती हैं. क्या कभी आपने कभी सुना हैं बेटे के जन्म कर ऐसी तुलना की गई हो? कि घर में कुबेर आये हैं या विष्णु का जन्म हुआ हैं, नहीं. यह सम्मान केवल नारी को प्राप्त हैं जो कि वेदों पुराणों से चला आ रहा हैं जिसे आज के समाज ने नारी को वह सम्मान नहीं दिया जो जन्म जन्मान्तर से नारियों को प्राप्त हैं.
हमेशा ही नारियों को कमजोर कहा जाता हैं और उन्हें घर में खाना बनाकर पालन पोषण करने वाली कहा जाता हैं, उसे जन्म देने वाली एक अबला नारी के रूप में देखा जाता हैं और यह कहा जाता हैं कि नारी को शिक्षा की आवश्यक्ता ही नहीं, जबकि जिस भगवान को समाज पूजता हैं वहां नारी का स्थान भिन्न हैं. माँ सरस्वती जो विद्या की देवी हैं वो भी एक नारी हैं और यह समाज नारी को ही शिक्षा के योग्य नहीं समझता. माँ दुर्गा जिसने राक्षसों का वध करने के लिए जन्म लिया वह भी एक नारी हैं और यह समाज नारी को अबला समझता हैं. कहाँ से यह समाज नारी के लिए अबला, बेचारी जैसे शब्द लाता हैं एवम नारि को शिक्षा के योग्य नहीं मानता, जबकि किसी पुराण, किसी वेद में नारि की वह स्थिती नहीं जो इस समाज ने नारी के लिए तय की हैं. ऐसे में जरुरत हैं महिलाओं को अपनी शक्ति समझने की और एक होकर एक दुसरे के साथ खड़े होकर स्वयम को वह सम्मान दिलाने की, जो वास्तव में नारी के लिए बना हैं.
वूमेन डे प्रति वर्ष 8 मार्च को मनाया जाता हैं. लेकिन आज जो औरत की हालत हैं वो किसी से नहीं छिपी हैं और ये हाल केवल भारत का नहीं, पुरे दुनियाँ का हैं. जहाँ नारि को उसका ओदा नहीं मिला हैं. एक दिन उसके नाम कर देने से कर्तव्य पूरा नहीं होता. आज के समय में नारी को उसके अस्तित्व एवम अस्मिता के लिए प्रतिपल लड़ना पड़ता हैं. यह एक शर्मनाक बात हैं कि आज हमारे देश में बेटी बचाओ जैसी योजनाये हैं, आज घर में बेटी को जन्म देने के लिए सरकार द्वारा दबाव बनाया जा रहा हैं क्या बेटियाँ ऐसा जीवन सोचकर आती हैं जहाँ उसके माँ बाप केवल एक डर के कारण उसे जीवन देते हैं. समाज के नियमो ने समाज में कन्या के स्थान को कमजोर किया हैं जिन्हें अब बदलने की जरुरत हैं. आज तक जो हो रहा हैं उसे बदलने की जरुरत हैं जिसके लिए सबसे पहले कन्या को जीवन और उसके बाद शिक्षा का अधिकार मिलना जरुरी हैं तब ही इस देश में महिला की स्थिती में सुधार आएगा.
यह अनमोल वचन महिलाओं के लिए कई महानतम लोगो ने कहे हैं .दुनियाँ के महान लोग भी नारि शक्ति को मानते आये हैं उनका सम्मान करते आये. इतिहास गवाह जो भी देशभक्त हुए हैं वे सभी नारी का सम्मान करते आये हैं तब ही उन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ हैं और जिन्होंने नारियों पर कुदृष्टि रखी हैं उन्होंने कितना भी अच्छा काम क्यूँ ना किया हो उन्हें वो सम्मान नहीं मिला जो मिलना था. इस नारी शक्ति को वही नहीं समझ सकते, जो खुद मानसिक रोग से पीढित हैं.
नारियाँ नहीं कभी बैचारी
नारियों में निहित हैं शक्ति सारी
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जहाँ होता स्त्रियों का अपमान
हैं वो जगह नरक समान
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देवियों का स्थान प्राप्त हैं नारियों को
क्या ये समाज दे सकेगा यह मान उसको ?
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जिस औरत को नहीं देता समाज स्थान
वही औरत हैं इस समाज का आधार
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नारी सम्मान हैं, स्वर्ग का द्वार
उसका अपमान हैं, नरक समान
आने वाले साल में भी इस दिन को हर देश मनाएगा, परंतु इसका उद्देश्य तब ही पूरा होगा, जब महिलाओं के खिलाफ होने वाले शोषण कम होंगे, जब महिलाओं के खिलाफ होने वाले आपराधिक मामले शून्य होंगे, जब महिला पुरुष को समान दर्जा मिलेगा. काश हम वो दिन जल्द ही देख पाएंगे जब महिलाओं की लैंगिक समानता के साथ उसे हर क्षेत्र में समान दर्जा उपलब्ध होगा.
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Q : अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कब मनाया जाता है ?
Ans : 8 मार्चQ : पहला अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कब मनाया गया था ?
Ans : सन 1911 मेंQ : पहला महिला दिवस कहां मनाया गया था ?
Ans : न्यूयॉर्कQ : पहला महिला दिवस कब मनाया गया था ?
Ans : सन 1908 मेंQ : अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2022 की थीम क्या है ?
Ans : जल्द ही घोषित की जाएगी.
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