Kurma Avatar Story भगवान विष्णु के कुर्म अवतार की कहानी एवम जयन्ती (Kurma Avatar, Jayanti, Story of lord vishnu in hindi)
ब्रह्मा, विष्णु और महेश यह तीन देवता सृष्टि के, रचियता है . यह बात हम पुराणिक कथाओ मे, सुनते आये है और, कई ऐसे उदहारण हमारे धार्मिक ग्रंथो मे लिखे है जहा, अलग-अलग युग मे भगवान ने अलग-अलग अवतार लेकर, अपने भक्तो के कष्ट हरे है.
- भगवान विष्णु के कुर्मा अवतार की कहानी एवम जयन्ती महत्व
- कुर्मा अवतार का इतिहास (Kurma Avatar History)
- कुरमा अवतार / जयन्ती की कथा ( Kurma Avatar story of Lord Vishnu in hindi)
- समुद्रमंथन का सार (Samudra Manthan Ratnas)
- कुरमा जयन्ती को मनाने की विधी (Kurma Jayanti Celebration vidhi)
- कुर्मा जयंती का महत्व (Significance of Kurma avatar)
- कुरमा जयंती 2022 मे कब है और उसका विशेष महत्व (Kurma jayanti Date)
कथाओ के अनुसार, जब भी संकट आया है तब, समय-समय पर अलग-अलग अवतार लेकर भगवान ने, राक्षसों और दानवों का भी वध किया है . ऐसे ही माना जाता है कि भविष्य में भगवान विष्णु अपने आखिरी कल्कि अवतार में जन्म लेंगे. इन्ही सभी मान्यताओं के अनुसार एक कथा जुडी है कुरमा जयन्ती की जोकि, हम आगे विस्तृत रूप मे बतायेंगे .
भगवान विष्णु के कुर्मा अवतार की कहानी एवम जयन्ती महत्व
- कुरमा जयन्ती का इतिहास
- कुरमा जयन्ती की कथा
- समुद्रमंथन का सार
- कुरमा जयन्ती को मनाने की विधी
- कुरमा जयन्ती महत्व
- अग्रीम पांच सालो की जयंती की दिनाक
- कुरमा जयंती 2017 मे कब है

कुर्मा अवतार का इतिहास (Kurma Avatar History)
कुरमा क्या है ? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है . बहुत ही प्राचीन भाषा है संस्कृत . संस्कृत भाषा के अनुसार, कछुआ जो होता है उसे, कुरमा कहा जाता है . देवताओं को राक्षकों से बचाने के लिये, भगवान श्रीविष्णु ने, कुरमा अवतार लिया था, जिसके कारण ही सदियों से, वैशाख की पूर्णिमा को ,कुरमा जयन्ती को बनाते आ रहे है .
कुरमा अवतार / जयन्ती की कथा ( Kurma Avatar story of Lord Vishnu in hindi)
पुराणों के अनुसार , देवता और असुरो मे युद्ध होता रहता था. सभी देवतागण युद्ध मे, असुरो द्वारा पराजित हो गये और परेशान होकर, भगवान विष्णु जी की शरण मे गये और देवतागण ने, भगवान विष्णु से कहा आपके श्रीकमल चरणों मे हमारा प्रणाम स्वीकार करे. तब भगवान विष्णु ने देवताओ से पूछा, आप सभी देवतागण इतने परेशान क्यों है तब देवताओ ने, उत्तर दिया, हमे असुरो ने युद्ध मे हरा दिया है तो, प्रभु असुरो से जीतने का कोई उपाय बताये. तब भगवान विष्णु बोले, देवगण आप सभी समुद्रतट पर जाकर असुरो से, समझोता कर ले और मंदराचल पर्वत को, मथानी बना कर वासुकी नाग से, रस्सी का काम ले.
तब पर्वतों से जडीबुटीया हटा कर समुद्र मे डाले, और असुरो के साथ समुद्र मंथन कर ले. उसके पश्चात् समुद्र मंथन मे, अमृत उत्पन्न होगा जिसे पीकर, देवता अमृत शक्ति को प्राप्त कर अमर हो जायेंगे जिससे, उसी के साथ सभी देवगण शक्तिशाली हो जायेंगे और उसी शक्ति से, देवगण असुरो को हरा पाएंगे. उसके बाद भगवान विष्णु को प्रणाम कर ,सभी देवताओ ने असुरो के साथ समझोता किया और, समुद्रमंथन की तैयारी मे लग गये.
फिर असुर भगवान विष्णु के पास पहुचे और बोले कि, मैंने मंदराचल पर्वत को उखाड़ कर समुद्र मे डाल दिया. भगवान विष्णु की आज्ञा से, वासुकी नाग वहा आये, और स्वयं विष्णुजी भी वहा उपस्थित हुए और सभी ने, प्राथना करी कि, हे भगवान! हमे आशीर्वाद दे कि, हम समुद्रमंथन मे सफल हो जाये. समुद्रमंथन मे भगवान विष्णु ने, असुरो को नाग के शीर्ष भाग अर्थात् मुख की और तथा देवताओ को, नाग की अंतिम छोर अर्थात् पूछ की और रखा. मंथन शुरु होने पर आधार ना होने के कारण, मंदराचल पर्वत समुद्र मे डूबने लगा. तब भगवान विष्णु ने सोचा, अब मुझे ही कुछ करना होगा तब भगवान ने, कुर्म रूप धारण किया और मंदराचल पर्वत के नीचे, घुस कर उसका आधार बने.
समुद्रमंथन कई चरणों मे हुआ समुद्रमंथन जिसमे सबसे पहले, कालकठ नामक जहर पैदा हुआ जिसे, सापों ने पी लिया. दुसरे मंथन मे, ऐरावत हाथी और उच्यश्रवर घोडा उत्पन्न हुए. तृतीय मंथन मे, बहुत सुंदर स्त्री उर्वशी प्रकट हुई, और चौथी बार मे, महावृक्ष पारिजात प्रकट हुआ. पांचवी बार मे, क्षीरसागर से चंद्रमा प्रकट हुए जिसको, भगवान शिव ने अपने मस्तक पर लगा लिया. इसके अलावा रत्नभूषण और अनेक देवपुरुष पैदा हुए. मंथन के चलते वासुकी नाग की जहरीली फुंकार से विष निकाला, जिससे कई असुर मर गये या शक्ति विहीन हो गये. उसके बाद समुद्रमंथन मे, माँ लक्ष्मीजी उत्पन्न हुई जो, भगवान विष्णु के ह्रदय मे विराजित हुई.
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इसके बाद क्षीर सागर से, अमृत का घडा लेकर भगवान धन्वन्तरी प्रकट हुए तब असुरो ने कहा कि, देवताओ ने धनसम्पति की स्वामी लक्ष्मीजी को विष्णु जी के पास जाने दिया. इसलिये हम ये अमृत ले कर जा रहे है तब, भगवान विष्णु ने एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया, और असुरो के पास गये तब असुरो ने कहा, वाह क्या सुंदर स्त्री है यह तो बिल्कुल लक्ष्मीजी की तरह है हमे ये स्त्री ही चाहिये. स्त्री के मोहवश उन्होंने, अमृत का कलश जमीन पर रख दिया तभी, भगवान विष्णु ने वह घडा उठा कर देवताओ को दे दिया और कहा कि, असुर उस स्त्री के मोह के कारण अमृत को भूल गये है तो, देवगण आप सभी इस अमृत का पान कर ले. अमृत पीने के बाद देवताओ ने, असुरो को युद्ध मे हरा दिया. इस प्रकार भगवान विष्णु ने, देवताओ के भले के लिये समुद्रमंथन किया और कुर्मावतार लिया.
समुद्रमंथन का सार (Samudra Manthan Ratnas)
चरण | उत्पत्ति |
प्रथम चरण | विष |
दूसरा चरण | ऐरावत हाथी और उच्यश्रवर घोडा |
तीसरा चरण | उर्वशी |
चतुर्थ चरण | पारिजात |
पंचम चरण | चंद्रमा |
इसके पश्चात् क्रमशः रत्नआभूषण उत्पन्न हुए. | |
तदुपरान्त माता लक्ष्मीजी प्रकट हुई. | |
अंत मे अमृत उत्पन्न हुआ. |
कुरमा जयन्ती को मनाने की विधी (Kurma Jayanti Celebration vidhi)
कुरमा जयन्ती वैशाख की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है . इस दिन का बहुत अधिक महत्व है जिस भी जगह भगवान विष्णु का मंदिर है, वहा यह पर्व बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है . लोग एक दिन पूर्व से व्रत या उपवास रखते है . अपनी श्रध्दा भक्ति के अनुसार इस व्रत को किया जाता है, जिसे फलाहार से करना हो वो फलाहार से करता है, कोई एक समय भोजन ग्रहण करके करता है तो कोई निराहार भी करता है . उपवास के बाद मंदिर मे सेवा पूजा कर अपनी इच्छानुसार दान धर्म और ब्राह्मण को दक्षिणा दी जाती है .
कुर्मा जयंती का महत्व (Significance of Kurma avatar)
कुर्मा जयंती हिन्दुओं के लिए एक शुभ त्यौहार है. हिन्दुओं ने इस दिन को भगवान विष्णु के कुर्मा (कछुए का ) अवतार के रूप में सम्मानित किया. हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार, ‘क्षीर सागर मंथन’ की दिव्य घटना के दौरान महासागर में मंथन करने के लिए ‘मंदरांचल पर्वत’ का उपयोग किया गया. हालाँकि जब पहाड़ सिकुड़ना शुरू हुआ, तो भगवान विष्णु एक कछुए के रूप में सामने आये और मंदरांचल पर्वत को अपनी पीठ पर रखा. भगवान विष्णु के इस कुर्म अवतार के बिना “क्षीर सागर का मंथन” नहीं किया जा सकता था, और 14 दिव्य उपहार या ‘रत्न’ देवताओं को नहीं मिल पाते. इसलिए तब से कुर्मा जयंती का हिन्दुओं के लिए धार्मिक महत्व हो गया, और भक्त भगवान विष्णु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने लगे.
किसी भी निर्माण कार्य को शुरू करने के लिए कुर्मा जयंती सबसे शुभ दिन माना जाता है, और साथ ही लोगों का ऐसा मानना है कि भगवान विष्णु के कुर्मा अवतार में योगमाया का स्थान निहित है. यह दिन वास्तु से संबंधित किसी नये घर या काम को बदलने के लिए भी शुभ माना जाता है.
कुरमा जयंती 2022 मे कब है और उसका विशेष महत्व (Kurma jayanti Date)
इस साल कुरमा जयंती 15 May को है. जिस दिन भगवान विष्णु ने कुरमा रूप धारण किया था, उसी दिन को कुरमा जयंती के रूप मे मनाया जाता है.
कूर्म अवतार क्या होता है?

कूर्म अवतार को ‘कच्छप अवतार‘ (कछुआ के रूप में अवतार) भी कहते हैं। कूर्म के अवतार में भगवान विष्णु ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन के समय मंदार पर्वत को अपने कवच पर संभाला था।
कूर्म अवतार कब हुआ?

कूर्म अवतार वैशाख मास की पूर्णिमा को हुआ था।
कूर्म अवतार क्यों लिया गया था?

मानव जाति को दानवों से बचाने के लिए , भगवान विष्णु ने एक कूर्म का अवतार लिया।